डा. सुरेन्द्र डबास ने बीएलके मैक्स हॉस्पिटल में असाध्य रोग फेस ट्यूमर का बेदाग किया सफल ऑपरेशन

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
दूरभाष – 9416191877

अंतरराष्ट्रीय चिकित्सा जगत में सर्जरी के कार्य में अपनी अलग पहचान रखते है डा. सुरेन्द्र डबास।

रोहतक 29 जनवरी : कैंसर के इलाज में अभिनव और नायाब तकनीक का इस्तेमाल करते हुए बीएलके – मैक्स सुपर स्पेशियल्टी हॉस्पिटल के आंको सर्जनों ने हाल ही में रोबोटिक तरीके से 46 साल के एक ऐसे मरीज की बेदाग सर्जरी कर कैंसर ट्यूमर निकालने में सफलता पाई जिसे दूसरे चरण का ओरल कैंसर था।
बीएलके- मैक्स हॉस्पिटल, शालीमार बाग में सर्जिकल आंकोलाजी एंड रोबोटिक सर्जरी के वरिष्ठ निदेशक और विभाग प्रमुख डॉ. सुरेंद्र कुमार डबास ने यह सर्जरी की। इसके लिए उन्होंने मरीज के कॉलर बोन के नीचे 8 एमएम के चार छोटे – छोटे छेद बनाते हुए ओरल कैविटी तक पहुंच बनाई। मरीज के दाहिने गाल के निचले हिस्से और जीभ के पास बने अल्सर के रूप में कैंसर मौजूद था।
ओरल कैंसर के ज्यादातर मरीजों को लेकर सबसे बड़ी चिंता सर्जरी के बाद उसका सौंदर्य और चेहरे का स्वरूप बिगड़ने को लेकर रहती है। इस वजह से मरीज की जीवन गुणवत्ता भी प्रभावित हो सकती है, मसलन आवाज में बदलाव ( जीभ का आपरेशन होने या स्वरूप बिगड़ने के कारण ), लार टपकते रहना और/या निगलने में कठिनाई आदि।
विशेष तरह से आपरेशन होने के कारण ओरल कैंसर के मरीज के चेहरे और गर्दन वाले हिस्से पर बड़ा सा दाग पड़ जाता है जिस वजह से आपरेशन का दायरा बढ़ाते हुए मल्टीपल प्लास्टिक रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी भी करानी पड़ जाती है।
सोनीपत के मरीज सुजिंदर सिंह को जब बीएलके – मैक्स सुपर स्पेशियल्टी हॉस्पिटल लाया गया था तो उसके दाहिने गाल और जीभ में कैंसर था। ओरल कैविटी कैंसर का एक आम रूप होता है।
इस अत्याधुनिक और अभिनव तकनीक की मदद से डॉक्टरों ने उसके कैंसर के स्थान का संपूर्ण परीक्षण करने के बाद दागरहित रोबोटिक सर्जरी करने की योजना बनाई। इस सर्जरी से सुनिश्चित हुआ कि मरीज के चेहरे और गर्दन पर बाहर की ओर से कोई कट नहीं लगा।
डॉ. डबास ने कहा मरीज सर्जरी के बाद अपने सौंदर्य बिगड़ने को लेकर बहुत सतर्क था। हमने उन्हें आश्वस्त किया कि अच्छे कॉस्मेटिक परिणाम के लिए उसके चेहरे और गर्दन पर कोई कट नहीं लगेगा। रोबोट की मदद से कैंसरयुक्त ट्यूमर निकालने के बाद उसकी जांघ से 6 सेमी लंबाई और चौड़ाई वाली त्वचा काटकर निकाली गई और इसे गाल में बने गड्ढ़े में इसका इस्तेमाल किया गया।
डॉ. डबास ने बताया सिर और गर्दन वाले हिस्से में इस तरह की सफल दागरहित सर्जरी करने के लिए पहली बार इस तकनीक को आजमाया गया था। सर्जरी के दौरान कोई भी कट नहीं लगाया गया और यही वजह है कि ओरल कैंसर की जड़ से सर्जरी करने के बावजूद मरीज का सौंदर्य बना रहा। इसके बाद से हमने ओरल कैंसर के कई और मरीजों पर इसी तरह की सर्जरी को अंजाम दिया। इस प्रक्रिया से सर्जरी संबंधी कंधे में कमजोरी, गर्दन में अकड़न या चेहरे पर दाग बनने जैसी समस्या भी नहीं आई। इस सफल ऑपरेशन में पूरी टीम का सहयोग रहा।

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