उतराखंड: तो कांगेस के विधायकों की चली जाएगी कुर्सी,

देहरादून: 2022 के विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद कांग्रेश के पास 70 में से 19 विधायक हैं इन विधायकों पर किस प्रकार दल बदल का कानून लागू होगा यह जानना बहुत जरूरी है
उत्तराखंड में कांग्रेस की लड़ाई सड़कों पर आ रखी है जो लोग नेता प्रतिपक्ष से लेकर प्रदेश अध्यक्ष और उप नेता सदन नहीं बन पाए उनको लेकर चर्चाएं चरम पर है

इस बीच तमाम मीडिया हाउस में कांग्रेस के विधायकों के भाजपा में शामिल होने की खूब खबरें चल रही हैं
क्या इन विधायकों का इस प्रकार भाजपा में शामिल होना संभव है कानून क्या कहता है क्या इन परिस्थितियों में यह लोग भाजपा में शामिल होंगे यह है कानूनी पक्ष

दल-बदल का साधारण अर्थ एक-दल से दूसरे दल में सम्मिलित होना हैं। संविधान के अनुसार भारत में निम्नलिखित स्थितियाँ सम्मिलित हैं –

किसी विधायक का किसी दल के टिकट पर निर्वाचित होकर उसे छोड़ देना और अन्य किसी दल में शामिल हो जाना।
मौलिक सिध्दान्तों पर विधायक का अपनी पार्टी की नीति के विरुध्द योगदान करना।

किसी दल को छोड़ने के बाद विधायक का निर्दलीय रहना।
परन्तु पार्टी से निष्कासित किए जाने पर यह नियम लागू नहीं होगा।
सारी स्थितियों पर यदि विचार करें तो दल बदल की स्थिति तब होती है जब किसी भी दल के सांसद या विधायक अपनी मर्जी से पार्टी छोड़ते हैं या पार्टी व्हिप की अवहेलना करते हैं। इस स्थिति में उनकी सदस्यता को समाप्त किया जा सकता है और उनपर दल बदल निरोधक कानून लागू होगा।

पर यदि किसी पार्टी के एक साथ दो तिहाई सांसद या विधायक (पहले ये संख्या एक तिहाई थी) पार्टी छोड़ते हैं तो उन पर ये कानून लागू नहीं होगा पर उन्हें अपना स्वतन्त्र दल बनाने की अनुमति नहीं है वो किसी दूसरे दल में शामिल हो सकते हैं।

दल बदल के लिए एक प्रसिद्ध जुमला प्रयोग किया जाता है जो इस प्रकार है आया राम गया राम

भारतीय इतिहास में यह जुमला हे दृष्टि से देखा जाता है इस स्लोगन का प्रतिपादन चौथे आम चुनावों के बाद हुआ था वर्तमान में भारतीय राजनीति में बहुत से दलों का निर्माण हो चुका है जो एक चिंता का विषय है अगर सभी लोग राजनीति में अपनी भागीदारी दिखाने लगेंगे तो जनता का विकास संभव नहीं हो पाएगा क्योंकि राजनीति में शिक्षित लोगों का होना आवश्यक है अथवा अनिवार्य तत्व है दल छोड़कर गये सदस्य के खिलाफ कार्रवाई करने अधिकार सदन के अद्यक्ष को होता हे। दल बदल करने के लिए 2/3 सदस्य कि आवश्यकता होती हैं I

अपवाद

1) दल बदल कानून लोकसभा या विधान सभा अध्यक्ष पर लागू नहीं होता है, मतलब यदि लोकसभा या विधान सभा का कोई सदस्य अध्यक्ष नियुक्त होने के बाद अपने दल की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दे या फिर दल के व्हिप के विरुद्ध जाकर मतदान कर दे तो उस पर ये कानून लागू नहीं होता है | 2) राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति चुनाव में मतदान के दौरान दल के व्हिप का उलंघन करने पर भी सदस्यों पर दल बदल कानून लागू नहीं होता है |

दल बदल कानून के तहत सदन की सदस्यता से अयोग्य घोषित व्यक्ति तब तक मंत्री बनने के लिए अयोग्य रहता है जब तब वह दुबारा चुन कर सदन का सदस्य न बन जाए

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uttarakhand reporter

साग़र मलिक उतराखंड प्रभारी(वी वी न्यूज़)

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