लूर फिर हुई जीवंत – हरियाणा के युवाओं की लगन परंपरा बचाने में दे रहीं योगदान

छोटी-छोटी चोटें भी न रोक सकीं हौसला, परंपरा को बचाने का जज्बा था मन में।
कुरुक्षेत्र, वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक 28 अक्टूबर : यह विश्वास करना कठिन है कि हरियाणा के कॉलेज के युवा सदियों पुरानी सांस्कृतिक परंपरा को जीवित रखने का बीड़ा उठा रहे हैं। हृदय को छू लेने वाली इस पहल में बड़ी संख्या में विद्यार्थियों ने पारंपरिक ‘लूर’ नृत्य को जीवित रखने के लिए आगे आकर काम किया कृ एक ऐसा लोकनृत्य जो राज्य की सांस्कृतिक विरासत से लगभग लुप्त हो चुका था। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ने इस विलुप्त हो चुकी परंपरा को पुनर्जीवित करने का नेतृत्व किया। विश्वविद्यालय की टीम ने हरियाणा के विभिन्न इलाकों में गहन शोध कर इस नृत्य से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारियां – जैसे इसकी उत्पत्ति, मुद्राएं, वेशभूषा और गीत एकत्र कीं।
इस सराहनीय पहल में एस.ए. जैन कॉलेज के विद्यार्थियों ने भी विश्वविद्यालय का साथ दिया। उनके समर्पित प्रयासों का परिणाम मंगलवार को चार दिवसीय ‘रत्नावली सांस्कृतिक महोत्सव’ के उद्घाटन अवसर पर देखने को मिला, जब उन्होंने मनमोहक लूर नृत्य प्रस्तुत किया।
हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की उपस्थिति में प्रदर्शन करने वाली टीम पिछले तीन वर्षों से निरंतर अभ्यास कर रही थी। छात्राओं अनु और यशिका ने बताया, “अभ्यास के दौरान हमें कभी-कभी मामूली चोटें भी आईं, लेकिन कोई भी कठिनाई हमें रोक नहीं सकी। हमें इस बात की तृप्ति है कि हम अपने राज्य की एक मरणासन्न कला को बचाने के प्रयास का हिस्सा हैं।”
शिक्षक संयोजक डॉ. लतिका और डॉ. मधुबाला ने संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी मेहनत आखिरकार रंग लाई है। उन्होंने कहा कि छात्रों को अपनी सांस्कृतिक धरोहर को सहेजते हुए गर्व महसूस करते देखना अत्यंत सुखद है। राज्य स्तरीय रत्नावली महोत्सव में हरियाणा के विभिन्न कॉलेजों के तीन हजार से अधिक युवा भाग ले रहे हैं, जो लोककला और परंपराओं की समृद्धि का उत्सव मना रहे हैं। लूर नृत्य का पुनर्जागरण इस बात का उज्ज्वल उदाहरण है कि आज का युवा अपने मूल से जुड़कर लुप्त होती कला परंपराओं में फिर से प्राण फूंक सकता है।




