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मातृभाषा किसी भी व्यक्ति की सामाजिक और भाषाई पहचान होती है : डा. श्रीप्रकाश मिश्र

मातृभाषा किसी भी व्यक्ति की सामाजिक और भाषाई पहचान होती है : डा. श्रीप्रकाश मिश्र।

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।

अंतर्राष्ट्रीय भाषा दिवस के उपलक्ष्य में समाज के असहाय एवं जरूरतमंद बच्चों के लिए समर्पित मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा मातृभाषा संवाद कार्यक्रम संपन्न।
दुनिया की 40 फीसदी आबादी के पास ऐसी भाषा में शिक्षा नहीं है, जिसे वह बोलते अथवा समझते हैं।

कुरुक्षेत्र 21 फरवरी : जन्म लेने के बाद मनुष्य जो प्रथम भाषा सीखता है, उसे उसकी मातृभाषा कहते हैं। मातृभाषा किसी भी व्यक्ति की सामाजिक और भाषाई पहचान होती है। मातृभाषा अर्थात जिस भाषा में मां सपने देखती है या विचार करती है, वही भाषा उस बच्चे की मातृभाषा होती है। भारत में सैकड़ों तरह की मातृ भाषाएं बोली जाती है, जो हमारे देश की विविधता में एकता और अनूठी संस्कृति को दर्शाती है। दुनिया भर में अलग-अलग जातियों, धर्मों, संप्रदायों और अलग अलग जगहों पर अलग-अलग भाषाएं बोली जाती हैं। इन मतभेदों के पीछे एकता और समानता है जो सभी को एक साथ बांधती है।
यह उद्गार अंतर्राष्ट्रीय भाषा दिवस के उपलक्ष्य में समाज के असहाय एवं जरूरतमंद बच्चों के लिए समर्पित मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा आयोजित मातृभाषा संवाद कार्यक्रम में व्यक्त किये। इस अवसर पर मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों के मध्य एक संभाषण प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। संभाषण प्रतियोगिता में छठवीं के कार्तिक प्रथम। आठवीं के नकुल द्वितीय, सातवीं के हनी सिंह तृतीय एवं पांचवी के मंदीप ने सांत्वना पुरस्कार प्राप्त किया।
सभी विद्यार्थियों को अंगवस्त्र एवं स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने विद्यार्थियों को मातृभाषा का महत्व बताते हुए कहा भाषा वह दर्पण है जिसमें व्यक्ति की संस्कृति और सभ्यता झलकती है। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस सांस्कृतिक विविधता और विभिन्न भाषाओं के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है, ताकि लोगों में न केवल अपनी और दूसरों की भाषाओं के प्रति प्रेम विकसित हो बल्कि विभिन्न मातृभाषाओं के बारे में भी ज्ञान प्राप्त हो सके। विभिन्न भाषाएँ विभिन्न संस्कृतियों को जोड़ती हैं। जिससे संचार करने वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है। भाषा और संस्कृति के लिए बंगाली लोगों के संघर्ष को मान्यता देते हुए, नवंबर 1999 में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के महाधिवेशन ने अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित किया, जिसे संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2002 के प्रस्ताव में मान्यता दी। एक भाषा अपने साथ-साथ सांस्कृतिक और बौद्धिक संपदा समेटे हुए होती है। भाषा के विकास से समाज का बहुमुखी विकास होता है। भाषा का एक रणनीतिक महत्व है क्योंकि पहचान, संचार, सामाजिक एकीकरण, शिक्षा और विकास के लिए भाषा ही एक माध्यम है जो आसानी से लोगों को जोड़ती है।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा भाषाओं के लुप्त होने से परंपराएं, स्मृति, सोच और अभिव्यक्ति के मूलभूत या अनूठे तरीके और मूल्यवान संसाधन भी खो जाते हैं। लेकिन वैश्वीकरण में आई तेजी की वजह से कई भाषाएं खतरे में है या पूरी तरह से गायब हो गई है। दुनिया में बोली जाने वाली अनुमानित 7000 से अधिक भाषाओं में से कम से कम 43 फीसदी लुप्त होने के कगार पर है। दुनिया की 40 फीसदी आबादी के पास ऐसी भाषा में शिक्षा नहीं है, जिसे वह बोलते अथवा समझते हैं। शिक्षा और सतत विकास के लिए भाषा आवश्यक हैं, जो ज्ञान के हस्तांतरण और संस्कृतियों के संरक्षण का प्राथमिक साधन हैं। यह सुनिश्चित करना कि शिक्षा प्रणाली किसी की मातृभाषा में सीखने के अधिकार का समर्थन करती है, सीखने के परिणामों को बेहतर बनाने के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि जिन छात्रों को ऐसी भाषा में पढ़ाया जाता है जिसे वे पूरी तरह समझते हैं, वे बेहतर समझ, जुड़ाव और आलोचनात्मक सोच कौशल दिखाते हैं। बहुभाषी शिक्षा, विशेष रूप से अल्पसंख्यक और स्वदेशी भाषाओं के लिए, न केवल शिक्षार्थियों की मदद करती है बल्कि शिक्षा और संस्कृति के बीच एक गहरा संबंध भी बनाती है, जो अधिक समावेशी और न्यायसंगत समाजों में योगदान देती है। कार्यक्रम का समापन शांति पाठ से हुआ। कार्यक्रम में आश्रम के विद्यार्थी, देशों एवं शिक्षक आदि उपस्थित रहे।

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