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सौ वर्ष पुरानी संस्था सनातन धर्म सभा में कलाकारों द्वारा खेला गया नारदमोह का मंचन नारद जी ने भगवान विष्णु जी को दिया श्राप
फिरोजपुर 24 सितंबर {कैलाश शर्मा जिला विशेष संवाददाता}:=
सौ वर्ष पुरानी संस्था सनातन धर्म सभा में कलाकारों द्वारा नारद मोह की नाईट का मंचन खेला गया। जानकारी देते हुए संस्था के अध्यक्ष बाल कृष्ण मित्तल, डायरेक्टर राधे मोहन शर्मा, और सहायक डायरेक्टर गगन अग्रवाल और प्रवेश बंसल ने बताया कि पिछले 70 वर्षों से ज्यादा समय से कलाकारों द्वारा रामलीला के माध्यम से लोगों को असत्य पर सत्य की जीत का महत्व व परिवार में प्रेम के बारे जागरूक करने के प्रयास से नाटक खेला जाता हैं जिसके तहत इस वर्ष भी रामलीला का आयोजन किया गया जिसमें पहले दिन सभा के सरपरस्त विजय गुप्ता ने ज्योति प्रज्ज्वलित कर रीबन काटकर और हवन के साथ शुभारंभ किया। उन्होंने बताया कि
शिवपुराण में नारद मोह की कथा का वर्णन है जिसके अनुसार एक समय ब्रह्मा के पुत्र और परम ज्ञानी देवर्षि नारद मोह के वशीभूत हो गए थे।
उन्होंने बताया कि एक बार नारद मुनि तपस्या करने हिमालय पहुँचे। वहां गंगा के तट पर एक अत्यंत सुन्दर और रमणीक स्थान देखकर उसी स्थान पर समाधी में लीन हो गए। इन्द्र द्वारा नारद मुनि की तपस्या में विघ्न का प्रयास
नारद मुनि के इस प्रकार तप करने की सूचना जब देवराज इन्द्र को मिली तो वे सोचने लगे की हो न हो नारद मुनि इन्द्र पद लेने के उद्देश्य से ही इतनी कठिन तपस्या कर रहे हैं।
ऐसा सोचकर उन्होंने नारद मुनि की तपस्या में विघ्न डालने के उद्देश्य से कामदेव को बुलाया और उनको आज्ञा दी की किसी भी प्रकार नारद मुनि की तपस्या भंग करो।कामदेव तुरंत अपने सारे अस्त्र शस्त्रों के साथ उस स्थान पर पहुँचे जहाँ नारद मुनि समाधी में लीन थे और उन्होंने नारद मुनि की तपस्या भंग करने का सब प्रकार से यत्न किया पर नारद मुनि पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
अंत में निराश होकर कामदेव वापस लौट गए। सूतजी कहते हैं कि नारद मुनि पर कामदेव का कोई प्रभाव नहीं पड़ा उसका कारण ये था की उसी स्थान पर एक समय भगवान शिव ने तपस्या की थी और कामदेव को अपने तीसरे नेत्र से भस्म कर दिया था।नारद मुनि के मन में काम विजय का अहंकार उपजना
कुछ समय बीतने पर जब नारद मुनि की साधना पूर्ण हुई तब उनके मन में कामदेव पर विजय पाने का गर्व हो गया और वे इस वृतांत को भगवान शिव को सुनाने कैलाश पहुँचे और कामदेव पर विजय पाने का सारा वृतांत भगवान शंकर को सुनाया।
ये सुनकर भक्तवत्सल भगवान शिव जो नारद के कामदेव पर विजय का कारण जानते थे कहा“हे नारद, तुम मुझे अत्यंत प्रिय हो इसलिए तुम्हें ये शिक्षा दे रहा हूँ कि इस घटना के विषय में किसी और के पास चर्चा मत करना और इसे गुप्त रखना।”पर मन में अहंकार हो जाने के कारण नारद मुनि ने भगवान शिव के परामर्श को नहीं माना और ब्रह्मलोक पहुँचे, वहां पहुँचकर उन्होंने ब्रह्मा जी की स्तुति करके उनसे भी इस घटना की चर्चा की।
नारद मुनि ने सोचा की उनके द्वारा काम विजय का समाचार सुनकर पिता ब्रह्मा उनकी प्रशंसा करेंगे पर ब्रह्मा जी ने भी भगवान शिव के समान ही नारद से इस विषय को गुप्त रखने को कहा।
निराश होकर नारद मुनि विष्णुलोक पहुँचे, वहाँ नारद मुनि को आए देखकर अंतर्यामी भगवान विष्णु ने नारद मुनि का बहुत प्रकार से स्वागत किया और उन्हें उचित आसन देकर उनके आगमन का कारण पुछा।
तब नारद मुनि ने भगवान विष्णु को अपने काम विजय का सारा वृतांत कह सुनाया। नारद मुनि के अहंकार युक्त वचन सुनकर विष्णु भगवान ने नारद मुनि की बहुत प्रशंसा की।तब नारद मुनि भगवान विष्णु को प्रणाम करके गर्वित भाव से वहाँ से चल दिए।
भगवान विष्णु द्वारा माया सृष्टि की रचना
भगवान विष्णु अपने भक्तों की हर प्रकार से रक्षा करते हैं, अहंकार पतन के द्वार खोल देता है इसलिए अपने परम भक्त नारद के कल्याण के उद्देश्य से भगवान विष्णु ने एक माया रची।
उन्होंने नारद मुनि के मार्ग में एक विशाल नगरी की रचना की जो हर प्रकार से सुन्दर, सुशोभित और रमणीक था। जब नारद मुनि वहाँ पहुँचे तो देखा की वहाँ के राजा ने अपनी पुत्री के विवाह के लिए स्वयंवर का आयोजन किया है जिसमें बहुत से राजा और राजकुमार पहुँचे हैं। तब नारद मुनि उस राजा के महल में पहुँचे, नारद मुनि को देखकर राजा ने उनको सिंघासन पर बिठाया और उनकी हर प्रकार से सेवा सत्कार की। इसके बाद राजा ने अपनी पुत्री को बुलाया और नारद मुनि से कहा की हे मुनि विशारद, आप तो ज्योतिष के महाज्ञानी हैं मैंने अपनी पुत्री के विवाह के लिए स्वयंवर का आयोजन किया है कृपया इसका भाग्य बताइये, इसे कैसा वर मिलेगा आदि आदि। जब नारद मुनि ने उस परम सुंदरी राजकुमारी का भाग्य देखा तो चकित हो गए। सब प्रकार के सुन्दर लक्षणों से संपन्न उस राजकन्या को देखकर नारद मुनि ने कहा –
“हे राजन, आपकी कन्या समस्त शुभ लक्षणों से युक्त, परम सौभाग्यशालिनी और साक्षात लक्ष्मी के समान ही है। जो भी इस कन्या से विवाह करेगा वो चक्रवर्ती सम्राट बनेगा। देवता और असुर भी उसे पराजित नहीं कर पाएंगे। ऐसा कहकर नारद मुनि राजा से विदा लेकर वहाँ से चल दिए और मन ही मन उस कन्या से स्वयं विवाह करने की इक्षा करने लगे।
इस प्रकार तत्वज्ञानी नारद मोह माया के चुम्बकीय आकर्षण में फंस गए। भगवान विष्णु द्वारा नारद मुनि को वानर रूप देना
समस्त नारीयों को सौन्दर्य सर्वथा प्रिय होता है और इस संसार में भगवान विष्णु से सुन्दर कौन है ऐसा सोचकर नारद मुनि विष्णुलोक पहुँचे।
उनको आया देखकर भगवान विष्णु अपनी ही माया से मोहित नारद मुनि से उनके आने का कारण पुछा। तब नारद मुनि ने भगवान विष्णु से सारा वृत्तांत सुनाया और कहा –“हे नाथ, मुझे अपने ही समान सुन्दर रूप दें जिससे वह कन्या स्वयंवर में मेरा ही वरण करे।”ये सुनकर भगवान मंद मंद मुस्काने लगे और कहा – “हे मुनिराज, जिसमें भी तुम्हारा भला हो मैं वही काम करूँगा तुम उस स्थान को जाओ।”
ऐसा कहकर भगवान विष्णु ने नारद मुनि के सब अंग प्रत्यंग अपने ही समान कर दिया पर मुख वानर का दे दिया।
स्वयंवर में नारद मुनि का अपमान और उनका रुष्ट होना अपने अंगों को भगवान के समान हुआ देखकर नारद मुनि अत्यंत प्रसन्न हुए और स्वयंवर में पहुँच कर जहाँ राजागण बैठे हुए थे वहीँ जाकर एक आसन पर विराजमान हो गए और मन में सोचने लगे की मैंने तो भगवान विष्णु के समान रूप धारण किया हुआ है अतः वह राजकुमारी अवश्य ही मेरा वरण करेगी पर नारद मुनि इस बात से अनभिज्ञ थे कि उनका मुँह कितना कुरूप है।
वहाँ नारद मुनि की रक्षा के लिए विष्णु भगवान ने अपने दो पार्षद भेजे थे जो ब्राह्मण का रूप धरकर नारद मुनि के पास ही बैठ गए।
वे दोनों पार्षद मुनि को उनके वास्तविक स्वरुप का भेद बताने के लिए आपस में बातचीत करते हुए नारद मुनि की हंसी उड़ाने लगे पर कामविह्वल नारद मुनि ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया और राजकुमारी के आने की प्रतीक्षा करने लगे।थोड़ी देर बाद राजकुमारी स्त्रियों से घिरी हुई वरमाला लेकर उस मंडप में आई और अपने इक्षानुसार वर को ढूंढते हुए उस सभा में भ्रमण करने लगी।
नारद मुनि के वानर रुपी मुख को देखकर वह राजकन्या कुपित हो गई और आगे बढ़ गई। पुरे सभा में अपने मन के अनुसार वर को न पाकर वह कन्या दुखी हो गई।
इतने में उस सभा में भगवान विष्णु प्रकट हुए, विष्णु भगवान को देखकर वह राजकन्या अत्यंत प्रसन्न हुई और वरमाला उनके गले में डाल दिया।
विष्णु भगवान उस कन्या को साथ लेकर तुरंत वहाँ से अंतर्ध्यान हो गए और अपने लोक चले गए।
ये देखकर नारद मुनि के मन में बहुत क्षोभ हुआ। तब भगवान के भेजे हुए ब्राह्मण रूपधारी पार्षदों ने नारद मुनि को आईने में अपना मुँह देखने को कहा।
अपना वास्तविक स्वरुप देखकर नारद मुनि के क्रोध की सीमा न रही और उन्होंने उन दोनों पार्षदों को राक्षस हो जाने का श्राप दे दिया और स्वयं क्रोध की अग्नि में जलते हुए विष्णुलोक पहुँचे।
वह कन्या वास्तव में स्वयं महालक्ष्मी ही थीं पर काम रुपी मेघ ने उनके ज्ञान रुपी सूर्य को ढक दिया था जिसके कारण नारद मोह माया के इस भेद को समझ नहीं पाए और क्रोधवश भगवान विष्णु को दुर्वचन सुनाने लगे और श्राप देते हुए कहा –हे विष्णु, आपने मेरे साथ छल किया है, मुझे वानर का रूप दे दिया और स्वयं उस कन्या का वरण कर लिया।आपके कारण जिस प्रकार मैं स्त्री के लिए व्याकुल हुआ हूँ उसी प्रकार आप भी मनुष्य रूप में धरती पर जन्म लेंगे और स्त्री वियोग का दुःख प्राप्त करेंगे।
माया से विरत होने पर नारद मुनि का पश्चाताप
अज्ञान से मोहित हुए नारद मुनि ने जब भगवान विष्णु को श्राप दे दिया तब मायापति ने नारद मुनि को शांत किया और अपनी माया को खींच लिया।
माया के हटते ही नारद मुनि को पहले के समान ही ज्ञान हो गया और उन्हें अपनी करनी पर अत्यंत पश्चाताप होने लगा और बार बार अपनी निंदा करते हुए भगवान के चरणों में गिर पड़े और कहने लगे।
हे नारायण, कामवश मोहित होकर मैंने ये क्या कर दिया, मैंने आपको श्राप भी दे दिया। हे लक्ष्मीपति, मेरे वचनों को मिथ्या कर दीजिये। तब भगवान बोले – “हे मुनिश्रेष्ठ, ये सब जो हुआ वह भगवान शिव की ही माया है, जो तुमने मद में आकर उनकी बात नहीं मानी उसी के कारण ये सब हुआ।
पर तुम्हारे श्राप में भी जगत का कल्याण छिपा हुआ है। तुम्हारे श्राप के कारण ही आज मेरे रामावतार का बीजारोपण हो गया। नारद मुनि के श्राप के कारण ही भगवान विष्णु के दोनों पार्षद रावण – कुम्भकरण के रूप में पृथ्वी पर राक्षस रूप में जन्म लिया और स्वयं भगवान विष्णु ने राम अवतार लेकर उनको मुक्ति दिलाई। राम अवतार में भगवान विष्णु को नारद मुनि के श्राप के कारण स्त्री वियोग का दुःख भी झेलना पड़ा। इस अवसर पर रूप लाल सिंगला, नानक चंद मित्तल, गजेन्द्र अग्रवाल, मेला इंचार्ज विशाल सिक्का, आरपी गोयल, कोषाध्यक्ष अजय तायल और रवि मित्तल मौजूद थे।