बिहार:चार दिवसीय नाटयोत्सव के दूसरे दिन आसाम ने दिया अपनी सांस्कृतिक विरासत से जुड़ मुख्यधारा में लौटने का संदेश

संवाददाता, पूर्णिया।

आजादी के 75 वें अमृत महोत्सव के शुभ अवसर पर नाट्योत्सव के दूसरे दिन कलाभवन के सुधांशु रंगशाला में असम के कलाकारों की जबरदस्त प्रस्तुति हुई।
आज के इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में आदि सहित दजर्नों लोग उपस्थित थे। नाट्योत्स्व की पूरी व्यवस्था रंगकर्मी अंजनी कुमार श्रीवास्तव, विधि व्यवस्था में शिवाजी राम राव, राज रोशन, बादल झा, चंदन, अभिनव आनंद, आदि कलाकार शामिल हैं। कार्यक्रम के दौरान केंद्र के डिप्टी डायरेक्टर तापस कुमार सामंत्रे ने कहा कि बिहार के बिना भारत अधुरा है चाहे सांस्कृति रुप में हो अथवा किसी अन्य रुपों में यहां मगध, मिथिला की धरती कही जाती है। बुध को भी ज्ञान इसी बिहार की धरती पर हुआ था, उन्होंने बताया कि मैं खुद को गौरवांन्वित समझता हुं कि मुझे इस बिहार की माटी में सांस्कृतिक रंग बिखरने का मौका मिला है। एक भारत श्रेष्ठ भारत का सपना आज साकार होता दिख रहा है।

वहीं कलाभवन नाट्य विभाग के सचिव सह कार्यक्रम कोर्डिनेटर विश्वजीत कुमार सिंह ने कहा देश की विभिन्न प्रांतो की संस्कृति और भाषा को इतनी नजदीके से देखने और समझने का मौका पूर्णियावासियों को पूर्वी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र कोलकाता भारत सरकार की संस्कृति मंत्रालय के द्वारा दिया गया है इसके लिए पूर्णियावासी उन्हें तहे दिल से धन्यवाद देती है।

उन्होंने आग्रह करते हुए कहा कि इस प्रकार के आयोजन हर 6 माह पर किए जाएं तो विभिन्न राज्यों से हमारा सांस्कृतिक संबंध बेहतर और शीघ्र ही स्थापित हो जाएगा। और हम कलाकार एक दूसरे के संस्कृति एवं कला को बेहतर समझ पाएंगे। वहीं पूर्वी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र कोलकाता के निदेशक गौरी बासु ने आज के इस कार्यक्रम की सफलता के लिए आसाम के सभी कलाकारों को शुभकामना दी है।

अपनी माटी और अपनी संस्कृति को पहचानने का दिया संदेश:-

बदलाव एवं स्वीकृति की प्रवृत्ति हमारी संस्कृति में हमेशा से रही है।
सामाजिक, राजनीतिक या धार्मिक कारणों से होने परेशानियों एवं बुराई लोगों के बीच धीरे-धीरे अपनी जड़ जमाती जा रही है। जिसकी संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है। समाज में हो रहे परिवर्तन पूरी तरह अपवित्र एवं अनैतिक शक्ति से संबंधित है, विकास गरीबी और लोगों की सादगी को समाप्त एवं गुमराह करने के लिए कई प्रकार के यत्न किए है जिसमें कई प्रकार के धार्मिक अंधविश्वास भी शामिल है। कई प्रलोभनों और विकास के सपनों के लालच में यह निर्दोष लोग खुद के मूल, जड़ और संस्कृति से किस प्रकार अलग हो जाते हैं यह उन्हें भी पता नहीं चल पाता है। यह नाटक उन लोगों की कहानी को दर्शाता है जो परंपरा और संस्कृति की मुख्यधारा से दूर रहते हैं, यह उस संकट पर भी गहराई से नज़र डालता है बाहरी व्यक्ति के बहकावे में आकार और दूसरों की चकाचौंध संस्कृति को स्वीकार करने में अपनी पहचान समझते हैं और खुद की मुल संस्कृति और विरासत को मिटा देते हैं।

चिन्नामल, जानवरों का एक रूपक व्यक्तित्व है जिसमें अभिनेता मनुष्यों और उनके लक्षणों का प्रतिनिधित्व करने के लिए बतख, हायेंस और अन्य जानवर बन जाते हैं। हमारी अंतर्निहित कमजोरी का लाभ उठाते हुए, हमारे कुछ लोगों को मुख्यधारा हटकार भयावह तरीके से परेशान कर भटका दिया जा रहा है। यह कड़वी सच्चाई है। साथ ही इस नाटक में निर्देशक ने यह दर्शोने की कोशिश किया है कि एक अलग परिप्रेक्ष्य से चीजों को कैसे देखा जाए यही इस नाटका का उद्देश्य है। इस नाटक के माध्यम से किसी भी व्यक्ति या धार्मिक समुदाय को चोट पहुंचाने का कोई इरादा नहीं है।

दर्जनों नाटकों में कर चुकें है निर्देशन:-
निर्देशक असीम कुमार नाथ असम राज्य के जाने माने कलाकार हैं। इन्होंने कई नाटकों में बेहतर निर्देशन किया है जिनमें नाटक नास्ता एटी पद्या, दुशमांता, द लीयर, ब्लैक एपिसोड जारी है, तेजोट प्रतिबिंबा, बायोनर खोल, राजा जगदंबा, बिसाड गथा, लाइफ कैनवास, चिन्नामल इत्यादि शामिल हैं। बेहतर नाट्य मंचन के दमपर रंगमंच के क्षेत्र में अपनी पहचान हासिल की है। यह भी बतादें कि असीम कुमार नाथ संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार द्वारा जूनियर फैलोशिप से भी सम्मानित किया गया है और वे इस क्षेत्र में रिसर्च भी कर रहे हैं।

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