सागर मलिक
रानीखेत : उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में रानीखेत के कुंवाली घाटी के दैना गांव में आदमखोर मादा गुलदार को ढेर किए जाने के बाद भी संकट टला नहीं है। साथ छूटने से बौखलाया नर गुलदार बीती देर रात से ही गांव के आसपास मंडराने लगा है।
पंचायत प्रतिनिधियों ने बताया कि तड़के भी दहाड़ें दिल दहलाती रहीं। इधर शाम होते ही गुलदार की धमक सुनाई देने से ग्रामीण फिर सहम गए हैं।
वहीं आदमखोर को निशाना बनाने वाले शिकारी राजीव सोलोमन ने खुलासा किया कि बुजुर्ग मोहन राम को मादा गुलदार ने ही मारा था। यह भी कहा कि कुछ दिन साथी मादा की तलाश में भटकने के बाद हो सकता है वह इलाका छोड़ दे।
अलबत्ता, वन क्षेत्राधिकारी मनोज लोहनी ने कहा कि बुधवार को मय टीम वह दोबारा गश्त पर निकलेंगे। द्वाराहाट ब्लाक के दैना गांव में बीती 29 नवंबर की शाम 65 वर्षीय मोहन राम को मादा गुलदार ने शिकार बना लिया था।
डीएफओ महातिम सिंह यादव की संस्तुति पर मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक ने हिंसक वन्यजीव को मानव के लिए खतरा मान निस्तारण की अनुमति दे दी थी। तब विभागीय टीम के साथ मुरादाबाद से शिकारी राजीव सोलोमन ने भी मोर्चा संभाला।
सोमवार की शाम करीब सात बजे घटनास्थल के पास पहुंची मादा गुलदार को ढेर कर दिया गया था। उसका शव रात में ही वन्यजीव चिकित्सालय अल्मोड़ा ले जाया गया। मगर मध्यरात्रि बाद से ही दूसरे गुलदार की दहाड़ से इलाका दहल उठा। माना जा रहा है कि मादा के मारे जाने से नर गुलदार बिदक उठा है।
क्षेत्र पंचायत सदस्य दीपक साह ने बताया कि मंगलवार तड़के व शाम ढलने से पहले ही आबादी के आसपास दहाड़ ने दोबारा दहशत फैला दी है। उन्होंने वन विभाग से क्षेत्र में दोबारा गश्त का आग्रह किया। टकराव टालने को अवैध शिकार पर लगाना होगा अंकुश आदमखोर मादा गुलदार को ढेर करने वाले शिकारी राजीव सोलोमन ने वन्यजीव मानव टकराव रोकने के लिए अवैध शिकार पर अंकुश की वकालत की है।
उन्होंने रहस्योद्घाटन किया कि दैना गांव के आसपास चार से पांच किमी के दायरे में रात के वक्त कांबिंग के दौरान मात्र एक खरगोश को छोड़ एक भी वन्यजीव नजर नहीं आया जो गुलदार का प्राकृतिक भोजन होते हैं। अंदेशा जताया कि कुंवाली क्षेत्र में वन्यजीवों का अवैध शिकार होता है, जिससे आसान शिकार की तलाश में गुलदार बसासत का रुख कर रहे हैं। यह भी कहा कि गांव में झाड़ियां भी नहीं काटी गई हैं।
शिकारी सोलोमन ने पहाड़ में साल दर साल बढ़ती वनाग्नि की घटनाओं को गुलदारों के आबादी में अड्डा जमाने का मुख्य कारण बताते हुए कहा कि राज्य सरकार व योजनाकारों को जंगलात की सेहत सुधारने को दीर्घकालीन ठोस नीति बनानी ही होगी। ताकि गुलदारों को जंगल के भीतर ही प्राकृतिक भोजन मिल सके और ग्रामीणों का डर दूर हो सके।