श्री कृष्ण आयुष विश्वविद्यालय में योग एवं संस्कृत विषय पर पोस्टर मेकिंग प्रतियोगिता आयोजित

श्री कृष्ण आयुष विश्वविद्यालय में योग एवं संस्कृत विषय पर पोस्टर मेकिंग प्रतियोगिता आयोजित
वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक
बीएएमएस प्रथम वर्ष की 15 टीमों ने लिया भाग।
विजेता टीमों को पौधा भेंट कर किया सम्मानित।
कुरुक्षेत्र,30 जून : श्री कृष्ण आयुष विश्वविद्यालय के आयुर्वेद अध्ययन एवं अनुसंधान संस्थान द्वारा कुलपति प्रो.वैद्य करतार सिंह धीमान के मार्गदर्शन में सोमवार को ‘योग एवं संस्कृत’ विषय पर पोस्टर मेकिंग प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस प्रतियोगिता में बीएएमएस प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों की 15 टीमों ने भाग लिया। प्रतियोगिता में प्रतिभागियों ने योग शास्त्रेषु सप्त चक्राणि,अष्टांग योग तथा संस्कृत के अन्य पारंपरिक विषयों पर सुंदर और विचारोत्तेजक पोस्टर तैयार किए। विद्यार्थियों ने अपने कार्य के माध्यम से योग और भाषा के समन्वय को रचनात्मक ढंग से प्रस्तुत किया।
प्रतियोगिता में टीम नंबर-8 के सुधांशु, कोमल, सारिका और चिराग ने प्रथम स्थान प्राप्त किया। टीम नंबर-5 के निधि, साक्षी,पूनम,शिवम और सृष्टि को द्वितीय स्थान मिला, जबकि टीम नंबर-14 की सिमरन और प्रिया की टीम तीसरे स्थान पर रही। टीम नंबर-3 की पारुल, पूजा, पलक, निधि और महक और टीम नंबर-9 अंजू, निधि, हेमलता और लक्षिता को सांत्वना पुरस्कार प्रदान किए गए। प्रतियोगिता के निर्णायक मंडल में प्रो. वैद्य रविराज, प्रो.वैद्य कृष्ण कुमार तथा डॉ.ममता राणा शामिल रहे। उन्होंने विद्यार्थियों की अभिव्यक्ति क्षमता,सृजनशीलता और वैदिक विषयों की समझ की सराहना की। समारोह के अंत में आयुष विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो.ब्रिजेंद्र सिंह तोमर और कार्यकारी प्राचार्य प्रो.दीप्ति पराशर ने विजेता प्रतिभागियों को पौधे भेंट कर सम्मानित किया। इस अवसर पर सहायक प्रोफेसर सीमा वर्मा समेत अन्य उपस्थित रहे।
योग और संस्कृत भारतीय परंपरा की आत्मा: प्रो. तोमर
कुलसचिव प्रो.ब्रिजेंद्र सिंह ने तोमर ने कहा कि योग और संस्कृत जैसे विषय भारतीय परंपरा की आत्मा हैं। इस प्रकार की प्रतियोगिताएं छात्रों को न केवल रचनात्मक बनाती हैं,बल्कि उन्हें अपनी जड़ों से जोड़ने का कार्य भी करती हैं। पौधा सम्मान का प्रतीक है,जो जैसे-जैसे बड़ा होता है,वैसे-वैसे जीवन में अनुशासन, परिश्रम और संवेदना भी बढ़ती है। उन्होंने कहा कि ऐसे रचनात्मक कार्यक्रम विद्यार्थियों को भारतीय परंपरा से जोड़ते हैं और उनके व्यक्तित्व विकास में सहायक होते हैं।