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विश्व गुरु बनने के लिए शोध में गुणवत्ता जरूरीः प्रो. सोमनाथ सचदेवा

विश्व गुरु बनने के लिए शोध में गुणवत्ता जरूरीः प्रो. सोमनाथ सचदेवा

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

कुवि कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने एआईयू द्वारा आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में शोध गुणवत्ता पर रखे विचार।

कुरुक्षेत्र, 25 जून : एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटीज (एआईयू) द्वारा अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर 23-24 जून, 2025 को कुलपतियों के राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। यह दो दिवसीय कार्यक्रम एमिटी विश्वविद्यालय, नोएडा परिसर में आयोजित हुआ जिसमें देशभर के 100 से अधिक विश्वविद्यालयों के कुलपतियों, शिक्षाविदों, नीति विशेषज्ञों ने भाग लिया। सम्मेलन का उद्घाटन भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा किया गया, जबकि समापन उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल द्वारा किया गया। सम्मेलन का मुख्य विषय भविष्य की उच्च शिक्षा की परिकल्पनाः भारत की केंद्रीय भूमिका थी।
सम्मेलन के दूसरे दिन आयोजित विशेष सत्र उच्च शिक्षण संस्थानों में शोध की गुणवत्ता को बढ़ावा देना में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि यदि भारत को वैश्विक ज्ञान महाशक्ति और विश्व गुरु बनना है, तो केवल शोध की मात्रा नहीं, बल्कि गुणवत्ता, प्रासंगिकता और वैश्विक मान्यता प्राप्त शोध में निवेश करना होगा।
भारत में 1100 से अधिक विश्वविद्यालय और 43,000 कॉलेज होने के बावजूद शोध की गुणवत्ता, वैश्विक उद्धरणों और प्रभाव के स्तर पर भारत की स्थिति अभी भी अपेक्षित नहीं है। अब समय आ गया है जब भारत के विश्वविद्यालय विचारों की प्रयोगशालाएं, नवाचार की नर्सरी और सामाजिक परिवर्तन के केंद्र बने। उन्होंने कहा कि रिसर्च को सिर्फ एक शब्द नहीं, बल्कि राष्ट्रीय शैक्षणिक मिशन के रूप में देखा जाना चाहिए। उन्होंने रिसर्च शब्द का विस्तृत अर्थ बताया।कि अनुसंधान निधि में वृद्धि, अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ाना, कौशल और प्रशिक्षण को मजबूत करना, उद्योग संबंधों को प्रोत्साहित करना, गुणवत्ता का मूल्यांकन करना, मात्रा नहीं, नवाचार और पेटेंट को पुरस्कृत करना, वैश्विक स्तर पर सहयोग करना है।
सम्मेलन में यह प्रश्न उठाए गए कि क्या भारत में हो रहा शोध राष्ट्रीय एवं वैश्विक समस्याओं का समाधान कर पा रहा है, क्या इससे नीति निर्माण, नवाचार या सामाजिक बदलाव संभव हो पा रहा है, और क्या हमारी संस्थाएं जिज्ञासा और प्रयोग को प्रोत्साहित करने वाली संस्कृति विकसित कर पा रही है। इस सत्र के दौरान वक्ताओं में ध्रुवा बनर्जी (संस्थापक एवं सीईओ, प्रोजेक्ट सेट, प्रो. सोमक राय चौधरी (कुलपति, अशोका विश्वविद्यालय, सोनीपत) और प्रो. राज सिंह (कुलपति, बेनेट विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश) प्रमुख रहे।
सत्र में प्रमुख बाधाओं के रूप में शोध एवं विकास (आरएंडडी) पर अन्य देशों के मुकाबले भारत के कम निवेश (जीडीपी का 0.7 प्रतिशत, अमेरिका द्वारा 3.5 प्रतिशत, चीन द्वारा 2.7 प्रतिशत), आधारभूत ढांचे की कमी, अधिक कार्यभार झेलती फैकल्टी, सीमित सहयोग, और कमजोर मार्गदर्शन प्रणाली जैसी चुनौतियों की पहचान की गई। इस संदर्भ में सुझाव दिए गए कि शोध केंद्रित पारिस्थितिकी तंत्र विकसित किया जाए, उद्योग और शिक्षा क्षेत्र के बीच सहयोग को बढ़ावा मिले, गुणवत्ता आधारित मूल्यांकन अपनाया जाए, और नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत जिज्ञासा-आधारित शिक्षण और शोध को बढ़ावा दिया जाए।

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