हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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ॐ गं गणपतये नमः गणेश जी को समर्पित – सकट चौथ का पर्व।
मूषक, गजराज और बछड़े को भोग लगाने व पूजा करने का विशेष महत्व।
कुरुक्षेत्र :- 21 जनवरी, शुक्रवार-विक्रमी संवत्: 2078, पंचांग के अनुसार माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि – प्रात: 8,54 मिनट तक तृतीया इसके बाद चतुर्थी की तिथि प्रारंभ होगी इसके बाद मघा नक्षत्र लगेगा। आज सौभाग्य योग का निर्माण हो रहा है। राहुकाल प्रात: 11 बजकर 12 मिनट से दोपहर : 12 बजकर 32 मिनट तक रहेगा। सूर्यास्त: 17:50:57 सांय।
भगवान गणेश जी और माता चौथ की कथा। सुननी चाहिए। रात में चांद निकलने के बाद चंद्रमा की पूजा करे और जल का अर्घ्य देकर सकट चौथ का व्रत पूर्ण करें।
पद्म पुराण के मुताबिक इस तिथि पर कार्तिकेय के साथ पृथ्वी की परिक्रमा लगाने की प्रतिस्पर्धा में भगवान गणेश ने पृथ्वी की बजाय भगवान शिव-पार्वती की सात बार परिक्रमा की थी। तब शिवजी ने प्रसन्न होकर देवताओं में प्रमुख मानते हुए उनको प्रथम पूजा का अधिकार दिया था।
दूर होते हैं ग्रह दोष।
सकट चौथ पर भगवान गणेश की पूजा करने से ग्रहों का अशुभ प्रभाव कम होता है। गणेश जी की पूजा से बुध, राहु और केतु से होने वाले कुंडली के दोष दूर होते हैं।
मेष राशि, वृषभ,मिथुन, सिंह, और कन्या राशि पर गणपति बप्पा की विशेष कृपा,
कन्या राशि गणेश जी के इस मंत्र का जाप शुभ है –
ॐ ग्लौम गौरी पुत्र, वक्रतुंड, गणपति गुरु गणेश।
ग्लौम गणपति, ऋद्धि पति, सिद्धि पति करो दूर क्लेश।
विशेष ; चतुर्थी तिथि सभी तिथियों की मां होती है। चतुर्थी के अधिपति विघ्नहर्ता भगवान श्रीगणेश है। इसलिए चतुर्थी के दिन गणपति उपासना की जाती है। शुक्रवार 21 जनवरी 2022 को सकट चौथ है। यह व्रत माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को होता है। सकट चौथ को संकष्टी चतुर्थी व तिलकुट चौथ या तिल चौथ के नाम से भी जाना जाता है। यह हिंदू धर्म का एक प्रसिद्ध त्योहार है। किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले भगवान श्री गणेश जी की पूजा की जाती हैं। इन्हें प्रथम पूजनीय देवता कहा जाता है। बुद्धि, विवेक, बल के देवता का दर्जा प्राप्त हैं। भगवान श्री गणेश को प्रसन्न करने के लिए संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाता है। सकट चौथ के पूजा विधि, महत्व और कथा।
सकट चौथ व्रत कथा
एक समय की बात है किसी नगर में एक कुम्हार रहता था एक दिन उस कुम्हार ने अपने बर्तन पकाने के लिए ‘आवा’ लगाया तो भी उसके बर्तन नहीं पके जिस कारण वह बहुत दुखी हुआ और नगर के राजा के पास अपना फरियाद लेकर चला गया राजा ने पंडितों को बुलाकर कुम्हार की समस्या का पता लगाया तो पंडित जी ने कहा कि आज के बाद यदि तुम आवा जलाने से पहले किसी बच्चे की बलि दोगे तो आवा स्वयं पक जाएगा राजा ने उस कुम्हार को बच्चे की बलि देने की आज्ञा दे दी।
वह कुम्हार रोज किसी बच्चे की बलि देकर आवा जलाता और अपने बर्तन को पकाता ऐसे करते हुए बहुत दिन बीत गए उसी नगर में एक बुढ़िया रहती थी जो सदैव चौथ माता व भगवान गणेश जी की पूजा-अर्चना व व्रत करती थी किन्तु एक दिन उसके बेटे का नंबर आया तो बुढ़िया माई ने अपने बेटे को चौथ माता के आखे व सुपारी देकर कहा की जब तुम आवा में बैठो तो इनको तुम्हारे चारो ओर बखेर लेना उसके बाद वह कुम्हार आया और उस बच्चे को ले गया और उसे आवा में बैठने को कहा तो उस लडके ने भगवान गणेश जी का नाम लिया और अपनी मां द्वारा दी गई आखा और सुपारी को अपने चारो और बिखेरकर बैठ गया और इधर उसकी माता बुढ़िया चौथ माता के सामने बैठकर उसकी पूजा करने लगी पहले कुम्हार का आवा पकने में कई दिन लगते थे किन्तु इस बार एक ही दिन में कुम्हार का आवा पक गया यह देखकर कुम्हार घबरा गया और इस बात की राजा से शिकायत करी राजा ने वहां आकर देखा तो सचमुच में एक ही दिन में आवा पक चुका तब उस बुढ़िया को बुलाकर लाए और कहा की तुमने क्या जादू-टोना किया है जिससे यह आवा एक ही दिन में पक गया बुढ़िया ने जवाब दिया की मैने तो कुछ नहीं किया बस अपने बेटे को चौथ माता के आखे बिखेर कर बैठने के लिए कहा था उसके बाद आवा को बाहर निकाल कर देखा तो बुढ़िया का बेटा जिंदा एवं सुरक्षित था. राजा व नगरवासी इस घटना को देखकर आश्चर्यचकित रह गए और माता सकट की कृपा से जिन बच्चों की अब से पहले आवा में बलि दी थी वाे सभी जीवित हो उठे थे यह देखकर पूरे नगरवासी बड़े ही प्रसन्न हुए और उसी दिन से पूरे नगर में चौथ माता का व्रत का उत्सव मनाने लगे।