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दिव्या ज्योति जागृती संस्थान फिरोजपुर द्वारा सत्संग कार्यक्रम का किया गया आयोजन

दिव्या ज्योति जागृती संस्थान फिरोजपुर द्वारा सत्संग कार्यक्रम का किया गया आयोजन

(पंजाब) फिरोजपुर 04 मई {कैलाश शर्मा जिला विशेष संवाददाता}=

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान फिरोजपुर द्वारा स्थानीय आश्रम में सत्संग कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी रितेश्वरी भारती जी ने अपने विचारों में उपस्थित संगत को बताया कि गहन चिंतन के बाद उन्हें यह देखना चाहिए कि व्यक्ति आत्म-जागृति के मार्ग पर क्यों नहीं चलना चाहता? इसका बहुत सही और सटीक कारण यह है कि हर मनुष्य अपने आप को सभी परिस्थितियों में निर्दोष मानता है। वह अपनी बुराइयों को उसी तरह नहीं देखता जैसे हमें अपनी आँख का काजल नहीं दिखता। लेकिन हम अपनी आंखों के काजल को दर्पण के माध्यम से देख सकते हैं। इसी तरह, हमारे जीवन में जो लोग हमारी कमियों और कमजोरियों की ओर इशारा करते हैं, वे वास्तव में हमारे लिए दर्पण हैं। समस्या यह है कि हम उन लोगों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं जो हमारी कमियां बताते हैं। हम सभी अपने मन में विभिन्न प्रकार के विचार, ईर्ष्या, घृणा और न जाने क्या-क्या रखते हैं और उनसे मुंह मोड़ लेते हैं। आईनों के साम्राज्य से वो डरता है, कौन जानता है कि मेरे चेहरे पर निशान हैं। जो सुन्दर है, जिसके चेहरे पर कोई दाग नहीं है, उसे देखकर बहुत प्रसन्नता होती है। बुद्धिमान लोग कहते हैं, “यदि आप व्यक्ति से नहीं पूछ सकते, तो दीवार से पूछिए।” इससे पता चलता है कि सुनने की महानता कितनी महान है। दुख की बात यह है कि आज हर कोई बात तो बहुत अच्छी तरह से करता है, लेकिन सुनने को कोई तैयार नहीं है। एक पाश्चात्य विचारक ने भी बहुत अच्छा कहा है – अच्छा वक्ता बनने के लिए पहले अच्छा श्रोता बनो। इसका मतलब यह है कि यदि आप एक अच्छे वक्ता बनना चाहते हैं, तो एक अच्छे श्रोता भी बनें। एक शिक्षक सफल शिक्षक कैसे बनता है? क्योंकि वह एक समय अच्छा छात्र था। विद्यार्थी का मतलब है वह व्यक्ति जो अपने शिक्षक की हर बात ध्यान से सुनता है, लेकिन हम कुछ सीखना नहीं चाहते, हम सिर्फ सिखाना चाहते हैं।
साध्वी जसप्रीत भारती जी ने कहा कि हमें यह समझना चाहिए कि भगवान केवल उन्हीं लोगों से प्रसन्न होते हैं जिनका अंतःकरण शुद्ध होता है। यदि वह लोगों की प्रार्थना स्वीकार करता है, तो वह अवश्य ही उन्हें स्वीकार करेगा। वास्तव में, आपके मन में जमे नकारात्मक गुणों के काले आवरण को हटाने का एकमात्र उपाय साधना है। यह आत्म-उन्नयन की प्रक्रिया है।
अपनी आंतरिक आत्मा को शुद्ध करने के लिए हमें अपने भीतर जाना होगा और केवल एक पूर्ण संत ही भीतर जाने की विधि बता सकते हैं। इसलिए हमें समय के पूर्ण संत सतगुरू की खोज करनी चाहिए जो हमें ब्रह्मज्ञान के माध्यम से अपने भीतर उतरने की विधि बता सके, जिससे हमारा अन्तःकरण शुद्ध हो सके। कार्यक्रम के दौरान साध्वी रमन भारती जी द्वारा मधुर भजन भी गाए गए।

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