मण्डलीय जिला अस्पताल में मोर्चरी हाउस का दरवाजा टूटने से शवों की सुरक्षा पर संकट

मण्डलीय जिला अस्पताल में मोर्चरी हाउस का दरवाजा टूटने से शवों की सुरक्षा पर संकट।

दस दिन पूर्व मृतक के तीमारदारों ने जबरदस्ती शव ले जाने को लेकर तोड़ा था दरवाजा।
रात में घायलों की मौत होने पर शव को मार्चरी में रखते है कर्मचारी,सुबह तक जानवर करते है शव को क्षत-विक्षत।

आजमगढ़, मंडलीय जिला अस्पताल स्थित पांच दिन पहले पोस्टमार्टम से इन्कार करते हुए जबरदस्ती शव लेने के लिए कुछ लोगों ने मोर्चरी हाउस का दरवाजा तोड़ दिया, लेकिन उसकी जगह पर दूसरा दरवाजा अभी तक न लगाने से शवों की सुरक्षा मुश्किल हो गई है। कारण कि वहां किसी चौकीदार की तैनाती नहीं है। ऐसे में कुत्ते उसे क्षति पहुंचा सकते हैं। जिससे वारिस और लावारिस शवों की पहचान करने में तीमरदारों को पसीना बहाना पड़ रहा है लेकिन स्वास्थ्य विभाग के उच्चाधिकारी दस दिन बाद भी अंजान बने है।
मंडलीय जिला अस्पताल में लभगग पांच वर्ष पूर्व शासन के निर्देश पर 52 लाख खर्च कर आधुनिक पोस्टमार्टम बनाया गया जिसमें शवों के बेहतर रख-रखाव किए जा सकते है। स्वास्थ्य विभाग के दावे तो र्सिफ कागजों में चल रहा है जमीनी हकीकत तो कुछ और ही है। मोर्चरी हाउस की देखरेख के लिए न तो सफाई कर्मी और न ही चौकीदार है। शवों को रखने के लिए दो मर्चरी बनाएं गए जिसमें एक पुलिस की जो सीएमओं की देखरेख में तो वही दूसरी अस्पातल की मोर्चरी जिसकी देखरेख की जिम्मेदारी पूरी सीएमएस ही है लेकिन क्या करे किसी भी स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी की मोर्चरी की जिला अस्पताल में दरवाजा विहीन हुआ मार्चरी हाउस, शवों की सुरक्षा पर संकट
दस दिन पूर्व मृतक के तीमरदारों ने जबरदस्ती शव ले जाने को लेकर तोड़ा था दरवाजा
रात में घायलों की मौत होने पर शव को मार्चरी में रखते है कर्मचारी,सुबह तक जानवर करते है क्षत-विक्षत
जागरण संवाददाता, बलरामपुर (आजमगढ़): मंडलीय जिला अस्पताल स्थित पांच दिन पहले पोस्टमार्टम से इन्कार करते हुए जबरदस्ती शव लेने के लिए कुछ लोगों ने मार्चरी हाउस का दरवाजा तोड़ दिया, लेकिन उसकी जगह पर दूसरा दरवाजा अभी तक न लगाने से शवों की सुरक्षा मुश्किल हो गई है। कारण कि वहां किसी चौकीदार की तैनाती नहीं है। ऐसे में कुत्ते उसे क्षति पहुंचा सकते हैं। जिससे वारिस और लावारिस शवों की पहचान करने में तीमरदारों को पसीना बहाना पड़ रहा है लेकिन स्वास्थ्य विभाग के उच्चाधिकारी दस बाद भी अंजान बने है।
मंडलीय जिला अस्पताल में लभगग पांच वर्ष पूर्व शासन के निर्देश पर 52 लाख खर्च कर आधुनिक पोस्टमार्टम बनाया गया जिसमें शवों के बेहतर रख-रखाव किए जा सकते है। स्वास्थ्य विभाग के दावे तो र्सिफ कागजों में चल रहा है जमीनी हकीकत तो कुछ और ही है। मार्चरी हाउस की देखरेख के लिए न तो सफाई कर्मी और न ही चौकीदार है। शवों को रखने के लिए दो मर्चरी बनाएं गए जिसमें एक पुलिस की जो सीएमओं की देखरेख में तो वही दूसरी अस्पातल की मार्चरी जिसकी देखरेख की जिम्मेदारी पूरी सीएमएस ही है लेकिन क्या करे किसी भी स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी की मार्चरी की दुर्रव्यवस्था पर नजर नही पड़ रही है। दस दिन पूर्व शहर में हुए सड़क हादसे में युवक की मौत हो गई तो सुबह मोर्चरी हाउस पर पहुंचे उसके तीमरदारों ने पोस्टमार्टम कराने से इंकार करते हुए जबदस्ती शव को लेने जाने के लिए अस्पताल के मार्चरी का दरवाजा तोड़ दिया। वही अन्य शवों के तीमरदारों के समझाने-बुझाने पर मामला शांत हुआ लेकिन आज तक टुटे मोर्चरी हाउस का तरवाजा नही बन सका जिससे उसमे रखे शवों को जानवर घुसकर क्षत-विक्षत कर रहे है।
वर्जन – अस्पताल मोर्चरी हाउस का दरवाजा टुटा है जिसके लिए हमने सीएमएस से कह दिया था क्योकिं वह मोर्चरी अस्पताल की है जिसकी देख-रेख की जिम्मेदारी सीएमएस की है। अगर इसके बावजूद दरवाजा नही बना तो उसे बनावा दिया जाएगा।

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