महाशिवरात्रि का व्रत व पूजा सुख- समृद्धि और आरोग्यता प्रदान करता है : डॉ. मिश्रा

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
कुरुक्षेत्र : श्री दुर्गा देवी मन्दिर पिपली (कुरुक्षेत्र) के पीठाधीश डॉ. सुरेश मिश्रा ने बताया कि महाशिवरात्रि को भगवान शिव के जन्म महोत्सव का दिन बताया गया है,मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे। इसी कारण से इस दिन विशेष शिवलिंग की विशेष पूजा की जाती है। भगवान शिव और माँ पार्वती का विवाह इसी दिन हुआ था I
महाशिवरात्रि का महत्व :
डॉ. सुरेश मिश्रा ने बताया चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान भोलेनाथ अर्थात स्वयं शिव ही हैं । इसलिए प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।
हिंदू धर्म में, महाशिवरात्रि व्रत, पूजा, कथा और उपायों का विशेष महत्व होता है। महाशिवरात्रि बुधवार 26 फरवरी 2025 को श्रवण नक्षत्र, परिघ योग और मकर राशि के चन्द्रमा में श्रद्धा और भक्ति पूर्वक भक्तों द्वारा मनाई जाएगी।
विशेष पूजा अर्चना की विधि : –
शिवलिंग पर शहद, पानी और दूध के मिश्रण से भोले शंकर को स्नान कराना चाहिए। इसके बाद बेल पत्र, धतूरा, फल और फूल भगवान शिव को अर्पित करने चाहिए। धूप और दीप जलाकर भगवान शिव की आरती करनी चाहिए। इस दिन भोले शिव को बेर चढ़ाना भी बहुत शुभ होता है। शिव महापुराण में कहा गया है कि इन छह द्रव्यों, दूध, दही, शहद,घी, गुड़ और पानी से भगवान शिव का रुद्राभिषेक करने से भगवान प्रसन्न होते हैं।
जल से रुद्राभिषेक करने से शुद्धि, गु़ड़ से रुद्राभिषेक करने से खुशियां,घी से रुद्राभिषेक करने से विजय,शहद से रुद्राभिषेक करने से मीठी वाणी व दही से रुद्राभिषेक करने से समृद्धि मिलती है।
भगवान शिव की आराधना में श्रद्धा व विश्वास मुख्य है।
व्रत कैसे करें :
सारा दिन निराहार रहें ,मन वचन कर्म से पवित्र रहे।
शाम से ही भगवान शिव की पूजा के लिए पूर्ण सामग्री तैयार करें।
रात को भगवान शिव की चार प्रहर की पूजा बड़े भाव से करने का विधान है।
प्रत्येक प्रहर की पूजा के पश्चात अगले प्रहर की पूजा में मंत्रों का जाप दोगुना, तीन गुना और चार गुना करें।
किसी की निन्दा चुगलियों ,ईर्ष्या द्वेष से बचें। शुभ मङ्गल भावना सम्पूर्ण विश्व के लिए रखें।
इस मंत्र का करें श्रद्धा पूर्ण जाप करें।
पाप रहित होने के लिए करें इन मंत्रों का जाप
‘ ॐ नमः शिवाय: , ‘ॐ सद्योजाताय नम:’, ‘ॐ वामदेवाय नम:’, ‘ॐ अघोराय नम:’, ॐ ईशानाय नम:’, ॐ तत्पुरुषाय नम:’