भावनाओं के उपहार की नहीं रही कद्र इसलिए सिर्फ नगद नारायण

भावनाओं के उपहार की नहीं रही कद्र इसलिए सिर्फ नगद नारायण

दीपक शर्मा (संवाददाता)

बरेली : फतेहगंज पश्चिमी में मानव सभ्यता के प्रारंभ से ही उपहार देना सम्मान और अपनेपन की निशानी बनी हुई है फिर चाहे किसी का जन्म हो शादी विवाह या जन्मदिन और तो और अगर आप किसी की रिटायरमेंट पार्टी में अगर बिना उपहार लिए पहुंच गए तो समझो आपके नंबर तत्काल कम कर दिए जाएंगे इसलिए अधिकतर लोग लगभग सभी जगह बिना उपहार के साथ ही जाना चाहते हैं इसका विपरीत प्रभाव यह हुआ है कि समाज के जिन लोगों के पास किसी कारण बस उपहार की व्यवस्था नही हो पाती है वह उस कार्यक्रम से दूरी बना लेते हैं ताकि उनकी जग हसाई न हो और वह अपना सम्मान बचाकर रख सकें वैसे तो सामान्य तौर पर उपहार के रूप में सदा से ही जीवन उपयोगी वस्तु को उपहार में देने की प्रथा रही है लेकिन काफी समय से यह प्रथा समाप्त सी होती जा रही है और इसकी जगह नकद नारायण ने ले ली है इसमें सबसे ज्यादा आसानी उपहार पाने वाले को होती है और वह उस नकद को अपने हिसाब से खर्च कर लेता है तमाम लोग तो कार्यक्रम के शुरू में ही इस नकद नारायण का एक एस्टीमेट बना लेते हैं कि कौन कितना देगा कुल कितना आएगा और कैसे खर्च किया जाएगा इस सब में उपहार देने वालों को भी नकद देना भा ने लगा है जिसमें उन्हें भारी भरकम उपहार लादकर लाने की बजाय सिर्फ इक छोटे से लिफाफे में नकद रखने से काम चल जाता है ऐसी ही एक सच्ची घटना आपको बताते हैं अभी चंद दिनों पूर्व एक परिचित सज्जन जो कि इस दुनिया से जा चुके हैं उनकी छोटी बेटी का विवाह तय हुआ उसका विवाह आसानी से निपट जाए इसलिए कुछ संभ्रांत लोगों ने मदद करनी चाही जिसमें हर किसी ने अपनी अपनी हैसियत से विवाह में यह सोचकर सहयोग किया कि बिना पिता की पुत्री के विवाह में कोई अड़चन न आए इसलिए सभी ने अपने स्तर से उपहार में व्यवस्थाएं करनी शुरू कर दी जिसमें किसी ने मैरिज हाल की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली किसी ने मैरिज हाल में होने वाले खर्च को जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली दैवयोग से एक संभ्रांत सज्जन ने कन्या को अलमारी देने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली और अलमारी खरीद कर कार्यक्रम स्थल पर भिजवा भी दी जिसे देखकर कन्या के परिवार वालों का पारा चढ़ गया वह बोले अरे यह अलमारी किसने भिजवाई है हमने शादी में सिर्फ बड़े ब्रांड का सामान दिया है हम लोकल अलमारी कैसे स्वीकार कर के लड़के वालों को दे दें अगर भेजने वालों को देना ही था तो नकद नारायण भेजते हम अपने हिसाब से खर्च करते यह भी भला उपहार देने का कोई तरीका होता है और उन्होंने वह उपहार अपनाने से मना कर दिया वो तो भला हो वर पक्ष का जिन्होंने अलमारी देने वालों का सम्मान रखा और वह सभी सामान के साथ अलमारी यह कह कर साथ ले गए कि जिसने जो भी दिया है वह उनका आशीर्वाद है और हमें स्वीकार है लेकिन इस घटना से विवाह में सहयोग करने वाले सभी खुद को ठगा हुआ सा महसूस करने लगे वह लोग जिस परिवार की मदद कर रहे थे असल में वह परिवार केवल नकद नारायण में ही विश्वास रखता था और शायद उन्हें किसी की मदद की जरूरत भी नहीं थी वेजरूरत मिली मदद शायद उस परिवार को नागवार लग रही थी और मदद करने वालों को खुद पर गुस्सा आ रहा था यह सत्य घटना एक सबक दे रही थी कि समय के साथ चलो जमाना नकद नारायण का है भावनाओं के उपहार का नही इसलिए आगे से सिर्फ नकद नारायण लेखक यशेंद्र सिंह एडवोकेट ।

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