विश्व श्रोगेन सिंड्र्रोम दिवस: कोविड के बाद बढ़ी चुनौती

विश्व श्रोगेन सिंड्र्रोम दिवस: कोविड के बाद बढ़ी चुनौती
आंखों और मुंह में सूखापन ही नहीं,भीतर से तोड़ रहा है श्रोगेन सिंड्र्रोम।
आयुर्वेद की शरण में लौट रही उम्मीदें, 250 से अधिक मरीजों का चल रहा इलाज : प्रो. राजा सिंगला।
कुरुक्षेत्र, प्रमोद कौशिक 22 जुलाई : कोविड-19 की महामारी भले ही थम चुकी हो,लेकिन इसके बाद शरीर में उत्पन्न होने वाली नई स्वास्थ्य समस्याओं ने चिकित्सा जगत को नई चुनौतियों के सामने खड़ा कर दिया है। खासकर ऑटोइम्यून डिसऑर्डर,एक ऐसी स्थिति जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली भ्रमित होकर अपने ही कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाने लगती हैं। इन्हीं में से एक है श्रोगेन सिंड्र्रोम, जो विशेष रूप से आंखों और मुंह की सूखापन जैसी गंभीर समस्याएं पैदा करता है। आज 23 जुलाई को विश्व श्रोगेन सिंड्र्रोम दिवस है और श्री कृष्ण आयुष विश्वविद्यालय के पंचकर्म विभाग के प्रो. डॉ. राजा सिंगला पिछले लंबे समय से इस रोग पर शोध व उपचार कार्य कर रहे हैं। डॉ. राजा का कहना है कि श्रोगेन सिंड्र्रोम एक चुनौतीपूर्ण रोग है, लेकिन असाध्य नहीं। रोगी उम्मीद न छोड़ें। आयुर्वेद में इसका समाधान है। सही मार्गदर्शन, समर्पण और धैर्य से आप फिर से स्वस्थ जीवन जी सकते हैं। ऐसे कई प्रेरणादायक मामले हैं जहां मरीज एलोपैथिक दवाइयों पर निर्भर थे, लेकिन आयुर्वेदिक पद्धति से इलाज करने के बाद वह स्वस्थ जीवन जी रहे हैं। उन्होंने कहा कि चिकित्सा जगत को भी अपने ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल में आयुर्वेद को स्थान देना चाहिए।
प्रश्न: आपने श्रोगेन सिंड्र्रोम के इलाज पर विशेष ध्यान देना क्यों चुना?
उत्तर: श्रोगेन सिंड्र्रोम के रोगियों की संख्या में अचानक वृद्धि हुई। यह एक जटिल लेकिन उपेक्षित ऑटोइम्यून रोग है। मरीज वर्षों तक सूखी आंखें, मुंह का सूखापन, थकान और जोड़-दर्द जैसी समस्याओं से परेशान रहते हैं। एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति में इस रोग का इलाज आमतौर पर स्टेरॉयड से शुरू किया जाता है, जो कई बार अन्य बीमारियों की जड़ बन जाते हैं। आयुर्वेद की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह रोग के मूल कारण को पहचान कर उसका समग्र समाधान करता है। इसी दृष्टिकोण से हमने श्रोगेन सिंड्र्रोम पर कार्य करना प्रारंभ किया।
प्रश्न: श्रोगेन सिंड्र्रोम क्या है ?
उत्तर: श्रोगेन सिंड्र्रोम एक ऐसी बीमारी है, जिसमें शरीर अपनी ही ग्रंथियों को नुकसान पहुंचाता है। इससे लार और आंसू बनाने वाली ग्रंथियां सबसे पहले प्रभावित होती हैं। इसी कारण मुंह में सूखापन, खाना निगलने या बोलने में कठिनाई, आंखों में जलन, थकान, जोड़ों में दर्द और सूजन जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। यह बीमारी अक्सर 40 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं में पाई जाती है। ऐसे में समय रहते ध्यान न दिया जाए, यह फेफड़े, किडनी और नसों को भी प्रभावित कर सकती है।
प्रश्न: आयुष विश्वविद्यालय में अब तक श्रोगेन सिंड्र्रोम के कितने मरीजों का इलाज हुआ ?
उत्तर : देखिए, कुलपति प्रो. वैद्य करतार सिंह धीमान के मार्गदर्शन में रोगियों को अच्छा उपचार मिल रहा है। अब तक 250 से अधिक श्रोगेन सिंड्र्रोम के रोगी पंचकर्म विभाग में उपचार के लिए पहुंचे। हर रोगी का इलाज उसके लक्षणों और एंटीबॉडी स्तर के अनुसार किया जाता है। मुख्य रूप से पंचकर्म चिकित्सा (जैसे बस्ती,अक्षितर्पण) और यष्टिमधु, गुडूची, गूगल कल्प जैसी हर्बल औषधियों, रसायन चिकित्सा का प्रयोग किया जाता है। साथ ही योग,ध्यान और आहार-विहार पर भी जोर दिया जाता है। अधिकांश मामलों में एलोपैथिक दवाएं धीरे-धीरे कम कर दी जाती हैं और कई बार पूरी तरह बंद भी हो जाती हैं।
प्रश्न: लोगों में आयुर्वेद को लेकर क्या गलतफहमियां हैं ?
उत्तर: लोग सोचते हैं कि आयुर्वेद धीमा है या केवल हेल्थ सप्लीमेंट जैसा है। जो पूरी तरह गलत है। पंचकर्म चिकित्सा से लोगों में काफी जल्दी आराम देखने को मिलता है। आयुर्वेद समयबद्ध और गहराई से काम करता है। विशेषतः क्रॉनिक रोगों में। इसके अलावा लोग इसे केवल जड़ी-बूटी तक सीमित समझते हैं,जबकि यह एक संपूर्ण जीवनशैली विज्ञान है।
प्रश्न: क्या एलोपैथी दवाएं लेने वाले मरीज भी आयुर्वेदिक इलाज ले सकते हैं ?
उत्तर: हां, बिल्कुल। लेकिन यह आयुर्वेद विशेषज्ञ की निगरानी में होना चाहिए। श्रोगेन सिंड्र्रोम के कई मरीज हमारे पास आने से पहले ही स्टेरॉयड ले रहे होते हैं। ऐसे मामलों में सावधानीपूर्वक आयुर्वेदिक दवाएं शुरू की जाती हैं और धीरे-धीरे स्टेरॉयड की खुराक कम की जाती है। बाद में मरीज पूरी तरह आयुर्वेदिक दवाओं पर स्थानांतरित हो जाता है। कई मरीजों में बाद में आयुर्वेदिक दवाएं भी बंद हो जाती हैं और मरीज कुछ परहेज के साथ बिना किसी दवा के पूरी तरह स्वस्थ जीवन जीने लगता है।
प्रश्न: कहां-कहां से मरीज पहुंच रहे हैं और आयुर्वेद में श्रोगेन सिंड्र्रोम को किस रूप में समझा जाता है ?
उत्तर: हरियाणा के अलावा राजस्थान, दिल्ली,यूपी,पंजाब,गुजरात,मध्य प्रदेश, हिमाचल, जम्मू- कश्मीर, महाराष्ट्र,असम समेत पूरे भारत से ही मरीज आयुष विवि के पंचकर्म विभाग में इलाज कराने पहुंच रहे हैं। आयुर्वेद में श्रोगेन सिंड्र्रोम को वातरक्त नामक व्याधि के रूप में समझा जा सकता है। इसके निदान के लिए नाड़ी परीक्षा भी एक महत्वपूर्ण जरिया है। इसके अलावा एएनए, एंटी एसएसए, एंटी एसएसबी जैसी जांच तथा लक्षणों के आधार पर किया जाता है।
प्रश्न: क्या मरीज को दोबारा श्रोगेन सिंड्र्रोम हो सकता है ?
उतर: श्रोगेन सिंड्र्रोम एक ऑटोइम्यून और अनुवांशिक बीमारी है, जिसका कारण कुछ जैनिटिकल कारण होते हैं। जिन्हें शरीर से बाहर निकालना संभव नहीं है। इसलिए इस रोग को जड़ से मिटाना मुश्किल है। हालांकि, यदि रोगी एक बार ठीक हो जाए और उसके बाद अपनी जीवनशैली और रोग प्रतिरोधक क्षमता को अच्छा बनाए रखे, तो रोग के लक्षण वापस नहीं आते। ऐसे कई मरीज हैं, जिन्हें इलाज के बाद दोबारा कोई समस्या नहीं हुई। लेकिन कुछ कारक ऐसे हैं जो श्रोगेन सिंड्र्रोम के लक्षणों को फिर से उत्पन्न कर सकते हैं,जैसे तनाव, आहार-विहार में गड़बड़ी, मौसमी बदलाव या किसी अन्य बीमारी के कारण रोग प्रतिरोधक क्षमता का कम होना। यदि इन सभी चीजों में सावधानी बरती जाए तो श्रोगेन के लक्षण दोबारा नहीं दिखते।