रक्त से संबंधित एक गंभीर बीमारी है थैलेसीमिया
-रोग के प्रति आमजन का ध्यान आकृष्ट कराना जरूरी
-थैलेसीमिया पीड़ित रोगी भी अब जी रहे हैं लंबी जिंदगी
अररिया, 07 अप्रैल ।
थैलेसीमिया रक्त से संबंधित एक गंभीर अनुवांशिक रोग है। जो रक्त कोशिकाओं के कमजोर व नष्ट होने के कारण होती है। यह बीमार माता-पिता से उनके बच्चों में फैलता है। बच्चों में अमूमन तीन से छह माह बाद ही इस रोग का पता लगता है। रोग की वजह से बच्चे के शरीर में रक्त की कमी होने लगती है। समय पर उचित उपचार नहीं मिलने से बच्चे की मौत हो सकती है। इस गंभीर रोग के प्रति आम लोगों का ध्यान आकृष्ट कराने के उद्देश्य से हर साल 08 मई को विश्व थैलेसीमिया दिवस के रूप में मनाया जाता है। थैलेसीमिया पीड़ित रोगियों को सामान्य व्यक्ति की तरह जीवन यापन के लिये प्रेरित व प्रोत्साहित करने के उद्देश्य यह दिवस खास महत्व रखता है।
एक अनुवांशिक रक्त विकार है थैलेसीमिया :
सिविल सर्जन डॉ विधानचंद्र सिंह ने बताया कि थैलेसीमिया एक अनुवांशिक रक्त विकार है। जो प्रभावित माता-पिता से बच्चों में पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होता है। रोग की वजह से बीमार व्यक्ति के शरीर में लाल रक्त कण में पर्याप्त मात्रा में हीमोग्लोबिन नहीं बन पाता है। इस कारण रोगी एनीमिया के शिकार हो जाते हैं। रोगियों को जीवित रहने के लिये हर दो से तीन सप्ताह पर रक्त चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। उन्होंने बताया कि आमतौर पर थैलेसीमिया दो प्रकार के होते हैं। माता या पिता में से किसी एक के क्रोमोजोम में खराबी होती तो बच्चा माइनर थैलेसीमिया का शिकार होता है। लेकिन अगर माता व पिता दोनों के क्रोमोजोम में खराबी है तो इससे मेजर थैलेसीमिया की स्थिति बनती।
शादी से पूर्व लड़का व लड़की का ब्लड जांच अनिवार्य :
सिविल सर्जन ने बताया कि शादी से पूर्व लड़का व लड़की का अनिवार्य रूप से ब्लड जांच जरूरी है। अगर बिना रक्त की जांच कराये शादी होती है तो गर्भधारण के आठ से ग्यारह हफ्ते के अंदर डीएनए की जांच होनी चाहिये। उन्होंने बताया कि माइनर थैलेसीमिया के मरीज सामान्य व्यक्ति की तरह अपना जीवन जीता है। बिना खून जांच कराये रोग के संबंध में उसे कुछ पता नहीं चलता। ऐसे में अगर पति-पत्नी शादी से पहले अपने रक्त की जांच करा लें तो काफी हद तक इस अनुवांशिक रोग से पीड़ित होने से बच्चे को बचाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि कमजोरी, थकावट, पेट में सूजन, डार्क यूरिन, त्वचा का रंग पीला पड़ना , इस रोग के सामान्य लक्षण हैं। बोन मैरो प्रत्यारोपण से रोग का इलाज संभव है। इसके अलावा आज उपचार की अन्य तकनीक भी विकसित हो चुकी है। जिससे रोग पीड़ित व्यक्ति भी लंबी जिंदगी जी रहे हैं।
जिले में थैलेसीमिया के हैं 33 मरीज :
सदर अस्पताल परिसर में संचालित ब्लड बैंक के प्रभारी बादल कुमार बताते हैं कि जिले में फिलहाल थैलेसीमिया पीड़ित रोगियों की संख्या 33 है। इसमें कई मरीज ऐसे हैं जिन्हें महीने में दो से तीन बार ब्लड चढ़ाना होता। कुछ एक परिवार के दो से तीन बच्चे थैलेसीमिया रोग से पीड़ित हैं। रोग पीड़ित बच्चों की औसत उम्र पांच साल से कम है। उन्होंने बताया कि सदर अस्पताल में संचालित ब्लड बैंक थैलेसीमिया रोगियों के लिये सुविधाजनक साबित हो रहा है। उन्हें रक्त के लिये कहीं अन्यत्र भटकना नहीं पड़ता। ब्लड बैंक के माध्यम से प्राथमिकता के आधार पर रोगियों को निशुल्क रक्त उपलब्ध करायी जाती है। इसके लिये अब उन्हें कहीं भटकने की जरूरत नहीं होती।