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विकास शर्मा के नाटक चीफ की दावत में दिखी बूढ़ी मां की बेबसी।
बच्चों के रुखेपन के कारण तड़पती मां की कहानी ‘चीफ की दावत’ का हुआ मंचन।
समाज को आईना दिखा गया नाटक चीफ की दावत।
कुरुक्षेत्र : अपनी संतान द्वारा तिरस्कृत और मानसिक पीड़ा झेलने वाले बुजुर्गों की दयनीय दशा पर हिंदी के कईं कहानीकारों ने अपनी लेखनी चलाई है। भीष्म साहनी की कहानी चीफ की दावत भी इसी कड़ी की एक संवेदनशील रचना है। आज के इस उपभोक्तावादी युग में अधिकाधिक धन, यश, आराम आदि ही जीवन का चरम लक्ष्य माना जाता है। ऐसी हालत में पारीवारिक मूल्य खत्म होते जा रहे हैं और मां-बाप अपनी संतान द्वारा उपेक्षित हो जाते हैं। चीफ की दावत मौजूदा समाज का ही आईना है। ये कहना था हरियाणा कला परिषद के निदेशक संजय भसीन का। हरियाणा कला परिषद द्वारा मार्च से प्रारम्भ नाट्य मेला के अंतिम सप्ताह में कहानी मंचन चीफ की दावत के दौरान उन्होंने अपने विचार सांझा किए। न्यू उत्थान थियेटर ग्रुप के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत तथा भीष्म साहनी द्वारा लिखित कहानी चीफ की दावत का निर्देशन रंगकर्मी विकास शर्मा द्वारा किया गया। इस अवसर पर हरियाणा कला परिषद के अतिरिक्त निदेशक महाबीर गुड्डू, संस्कार भारती कुरुक्षेत्र की अध्यक्षा किरण गर्ग, शिवकुमार किरमच, नरेश गर्ग आदि उपस्थित रहे।नाटक में आधुनिकता के रंग में डूबकर अपने माता-पिता का तिरस्कार करने वाले बच्चों के ऊपर करारा कटाक्ष किया गया। सूत्रधार के माध्यम से शुरु हुई नाटक की कहानी शामनाथ के इर्दगिर्द घूमती है, जहां अपने बॉस को खुश करने के लिए शामनाथ उन्हें घर पर दावत के लिए आमंत्रित करता है। लेकिन अपनी मां के अनपढ़ व गांव की होने के कारण उसे बॉस के सामने आने से मना कर देता है। मां दावत के लिए अपनी सहेली के घर जाने की बात करती है तो बेटा घर से बाहर जाने से मना कर देता है। बेटे के तिरस्कार और बहू की डांट के आगे मां कुछ नही बोल पाती। घर में शामनाथ के बॉस आ जाते हैं। शामनाथ तरक्की पाने की चाह में अपने चीफ को खुश करने के लिए कोई कमी नहीं छोड़ता। मंहगी व्हीस्की और बढ़िया डिनर होने के बाद जब कहानी जब आगे बढ़ती है तो अचानक बॉस की नजर शामनाथ की मां पर पड़ती है। शामनाथ से बॉस जब बूढ़ी औरत के बारे में पूछते हैं तो शामनाथ बताता है कि वह उसकी मां, अनपढ़ और गांव की होने के कारण मां सबके सामने नहीं आना चाहती थी। मां को देखकर चीफ बहुत खुश होते हैं, और मां से ढ़ेर सारी बातें करते हैं। मां का बॉस से मिलना शामनाथ की तरक्की में सहायक सिद्ध होता है। बॉस मां को एक फुलकारी बनाने को कहते हैं, मां के मना करने पर भी शामनाथ फुलकारी के लिए हां कर देता है। लेकिन जब बॉस के जाने के बाद मां मना करती है, तो शामनाथ मां को फटकार लगाता है और बुरा भला कहना शुरु कर देता है। ऐसे में मां अकेली पड़ जाती है और बेटे के तिरस्कार से आहत होकर अपने प्राण छोड़ देती है।
सूत्रधार कहानी का मूल अंत दिखाने के बाद दर्शकों से रुबरु होकर एक और अंत दिखाता है जिसमें शामनाथ को अपने किए पर शर्मिदंगी होती है, और वह मां से माफी मांगता है। मां अपने बेटे और बहू को माफ कर देती है और इस प्रकार नाटक का सुखद अंत होता है। चीफ की दावत में मां की भूमिका में राजकुमारी शर्मा और बेटे शामनाथ की भूमिका में आश्रय शर्मा ने अपने अभिनय कौशल दिखाए। सूत्रधार स्वयं नाटक निर्देशक विकास शर्मा रहे। वहीं शामनाथ की पत्नी निशा के किरदार में पारुल कौशिक, चीफ शुभम सहरावत, श्रीमती बॉस शायना जग्गा, नौकर जैकी शर्मा रहे। सहायक कलाकारों में बबनदीप, तुषार, चंचल शर्मा, पार्थ, सुग्रीव समीर महैरा रहे। संगीत आकाशदीप ने दिया तथा प्रकाश व्यवस्था मनीष डोगरा ने सम्भाली। अंत में संजय भसीन ने नाटक के संदर्भ में अपने विचार रखते हुए कहा कि आज के समाज में अधिकतर घरों में मां-बाप का तिरस्कार हो रहा है। ऐसे में बच्चों को नाटक चीफ की दावत से मां बाप को अनदेखा ना करने की सीख मिलती है। वहीं संजय भसीन ने हरियाणा कला परिषद के माध्यम से मई माह में दो नाटक प्रारम्भ करने की भी घोषणा की, जिसके लिए प्रदेश के रंगकर्मियों को भी आमंत्रित किया गया।