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संसार भगवान का बनाया एक सुंदर बगीचा है : प. कमल कुश।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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मनुष्य के अच्छे और बुरे विचार ही देवता – दानवों के बीच किया जाने वाला मंथन है : प. कमल कुश
ऋषि मार्कंडेय।
प्राकट्योत्सव के अवसर पर तीसरे दिन की श्रीमद् भागवत महापुराण कथा।
कुरुक्षेत्र, 7 अक्तूबर : मारकंडा नदी के तट पर श्री मार्कंडेश्वर महादेव मंदिर ठसका मीरां जी में आयोजित ऋषि मार्कंडेय प्राकट्योत्सव के अवसर पर श्रीमद् भागवत महापुराण कथा के तीसरे दिन अखिल भारतीय मार्कंडेश्वर जनसेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत जगन्नाथ पुरी एवं अन्य संतों के सान्निध्य में व्यासपीठ से यज्ञ आचार्य एवं कथा प्रवक्ता भागवत किंकर प. कमल कुश ने भगवान के 24 अवतारों की कथा के साथ-साथ समुद्र मंथन की बहुत ही रोचक एवं सारगर्भित कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि यह संसार भगवान का बनाया एक सुंदर बगीचा है। यह 84 लाख योनियों के रूप में भिन्न-भिन्न प्रकार के फूल खिले हुए हैं। जब-जब कोई अपने गलत एवं दुष्कर्मों के द्वारा इस संसार रूपी भगवान के बगीचे को नुकसान पहुंचाने की चेष्टा करता है, तब-तब भगवान इस धरती पर अवतार लेकर सद्कर्मी तथा सज्जन मनुष्यों का उद्धार और दुर्जनों का संहार करते हैं। वहीं उन्होंने समुद्र मंथन की कथा सुनाते हुए कहा कि मानव हृदय ही संसार सागर है। मनुष्य के अच्छे और बुरे विचार ही देवता और दानव के द्वारा किया जाने वाला मंथन है। कभी हमारे अंदर अच्छे विचारों का चिंतन और मंथन चलता रहता है और कभी हमारी ही अंदर बुरे विचारों का चिंतन और मंथन चलता रहता है। प. कमल कुश ने बताया कि जिसके अंदर के दानव जीत जाता है उसका जीवन दुखी, परेशान और कष्ट कठिनाइयों से भरा होगा और जिसके अंदर के देवता जीत गया उसका जीवन सुखी संतुष्ट और भगवत प्रेम से भरा हुआ होगा। इसलिए हमेशा अपने विचारों पर पैनी नजर रखते हुए बुरे विचारों को अच्छे विचारों से जीते हुए अपने मानव जीवन को सुखमय एवं आनंदमय बनाना चाहिए। इससे पूर्व कथा के प्रारंभ में व्यासपीठ पर श्री भागवत पुराण का यजमानों ने पूजन कर आरती उतारी। इस दौरान श्रीमद् भागवत कथा श्रवण करने पहुंचे श्रद्धालुओं ने व्यासपीठ पर नमन कर महंत जगन्नाथ पुरी से आशीर्वाद प्राप्त किया। इस अवसर पर स्वामी संतोषानंद, स्वामी सीताराम, भगवान गिरि, मयूर गिरि, नरेश शर्मा, संजीव शर्मा, बिल्लू पुजारी, अंकुश, सिंदर इत्यादि भी मौजूद रहे।
व्यासपीठ पर कथा वाचक भागवत किंकर प. कमल कुश साथ में मंच पर महंत जगन्नाथ पुरी। कथा श्रवण करते हुए श्रद्धालु।