मनुष्य को नेत्र, श्रवण और वाणी पर नियंत्रण रखना चाहिए : प. कमल कुश।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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भगवान श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश देकर हमें कर्मयोग का ज्ञान सिखाया : प. कमल कुश।
भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं पर मस्ती में झूमने लगे श्रद्धालु।
कुरुक्षेत्र, 8 अक्तूबर : मारकंडा नदी के तट पर श्री मार्कंडेश्वर महादेव मंदिर ठसका मीरां जी में आयोजित ऋषि मार्कंडेय प्राकट्योत्सव के अवसर पर श्रीमद् भागवत महापुराण कथा के चौथे दिन अखिल भारतीय श्री मार्कंडेश्वर जनसेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत जगन्नाथ पुरी एवं अन्य संतों के सान्निध्य में व्यासपीठ से यज्ञ आचार्य एवं कथा प्रवक्ता भागवत किंकर प. कमल कुश ने प्रभु के वामन अवतार प्रसंग की चर्चा करते हुए मनुष्य जीवन के चरित्र एवं व्यवहार का महत्व बताया। उन्होंने कहा कि मनुष्य अपने निश्चय से जीवन में कुछ भी प्राप्त कर सकता है। कथा के बीच भगवान श्रीकृष्ण जन्मोत्सव भी धूमधाम से मनाया गया। इस मौके पर मधुर भजनों पर सभी श्रद्धालु झूम उठे। प. कमल कुश कहा कि जीवन एक के पल से मनुष्य का पूरा आचरण बदल सकता है। इसलिए आंख और कान सभी पर नियंत्रण होना बेहद जरूरी है। नर्क से बचने का यही एकमात्र सरल तरीका है कि भागवत की शरण में रहें। कथावाचक ने कहा कि जो जीव भगवत भजन करेगा, जो भगवान के नाम में विश्वास रखता है, वो आसानी से भवसागर से तर जाता है। भगवान पर जितना विश्वास करोगे उतना ही अच्छा है। कथा के दौरान कथावाचक ने कहा कि सदा अपने नेत्र, श्रवण और वाणी पर नियंत्रण रखना चाहिए। क्योंकि जैसा हम सुनते हैं, देखते हैं, ठीक वैसा ही आचरण करते हैं। ये मनुष्य के ऊपर निर्भर करता है कि क्या देख रहा है, क्या सुन रहा है। देखना और सुनना अगर सुधरा हुआ हो, अच्छा हो तो मनुष्य कभी गलत रास्ते पर नहीं जाएगा। जो उचित हो हमेशा वहीं देखो और सुनो। भगवान के नाम का आश्रय लो, सत्संग करो, वहीं हमारे साथ जाएगा। प. कमल कुश ने भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का संगीतमयी शैली में इतने सुंदर वृतांत सुनाये। उन्होंने कथा में कहा कि गुरु ही मोक्ष के द्वार खोलते हैं और गुरु के बिना ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं है। प. कमल कुश ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लेते ही कर्म का चयन किया। नन्हें कृष्ण द्वारा जन्म के छठे दिन ही शकटासुर का वध कर दिया, सातवें दिन पूतना को मौत की नींद सुला दिया। तीन महीने के थे तो कान्हा ने व्योमासुर को मार गिराया। भगवान श्री कृष्ण ने बाल्यकाल में ही कालिया वध किया और सात वर्ष की आयु में गोवर्धन पर्वत को उठा कर इंद्र देव के अभिमान को चूर-चूर किया। कथा में बताया कि गोकुल में भगवान श्री कृष्ण ने गोचरण किया तथा कुरुक्षेत्र की धरती पर गीता का उपदेश देकर हमें कर्मयोग का ज्ञान सिखाया। प्रत्येक व्यक्ति को कर्म के माध्यम से जीवन में अग्रसर रहना चाहिए। प. कमल कुश ने कहा कि मनुष्य जन्म लेकर भी जो व्यक्ति पाप के अधीन होकर इस भागवत रुपी पुण्यदायिनी कथा को श्रवण नहीं करते हैं तो उनका जीवन ही बेकार है और जिन लोगों ने इस कथा को सुनकर अपने जीवन में इसकी शिक्षाएं आत्मसात कर ली हैं तो मानों उन्होंने अपने पिता, माता और पत्नी तीनों के ही कुल का उद्धार कर लिया है। भागवत कथा साक्षात भगवान श्रीकृष्ण का दर्शन है। यह कथा बड़े भाग्य से सुनने को मिलती है। इसलिए जब भी समय मिले कथा में सुनाए गए प्रसंगों को सुनकर अपने जीवन में आत्मसात करें, इससे मन को शांति भी मिलेगी और कल्याण होगा। कलयुग में केवल कृष्ण का नाम ही आधार है जो भवसागर से पार लगाते हैं। परमात्मा को केवल भक्ति और श्रद्धा से पाया जा सकता है। इस अवसर पर स्वामी संतोषानंद, स्वामी सीताराम, भगवान गिरि, मयूर गिरि, नरेश शर्मा, संजीव शर्मा, बिल्लू पुजारी, अंकुश, सिंदर इत्यादि भी मौजूद रहे।
व्यासपीठ पर कथा वाचक भागवत किंकर प. कमल कुश साथ में मंच पर महंत जगन्नाथ पुरी। कथा श्रवण करते हुए श्रद्धालु।