महामृत्युंजय मंत्र मृत्यु को जीतने वाला महान मंत्र है : महंत जगन्नाथ पुरी।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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भगवान भोलेनाथ की साधना में लीन भक्त पर कोई कष्ट नहीं आ सकता है : महंत जगन्नाथ पुरी।
ऋषि मार्कंडेय प्राकट्योत्सव समापन पर यज्ञ की पूर्णाहुति, संत प्रवचन तथा विशाल भंडारा।
कुरुक्षेत्र, 8 अक्तूबर : भगवान भोलेनाथ अपने सच्चे भक्तों पर कभी कोई कष्ट नहीं आने देते हैं। ऋषि मार्कंडेय प्राकट्योत्सव के अवसर मारकंडा नदी के तट पर श्री मार्कंडेश्वर महादेव मंदिर ठसका मीरां जी में सर्वकल्याण की भावना से अखिल भारतीय श्री मार्कंडेश्वर जनसेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत जगन्नाथ पुरी व अन्य संतों के सान्निध्य में 11 विद्वान ब्राह्मणों द्वारा निरंतर महामृत्युंजय मंत्र पाठ किया जा रहा है। 9 अक्तूबर को ऋषि मार्कंडेय प्राकट्योत्सव समापन पर महामृत्युंजय मंत्र जाप यज्ञ की पूर्णाहुति, संत प्रवचन तथा विशाल भंडारा होगा। प्राकट्योत्सव के चौथे दिन महंत जगन्नाथ पुरी ने महामृत्युंजय मंत्र जाप के प्रभाव पर चर्चा की। इससे पूर्व मंदिर में यजमान परिवारों ने द्वारा मंदिर के पवित्र शिवलिंग पर निरंतर महामृत्युंजय मंत्र जाप के साथ रुद्राभिषेक किया जा रहा है। इस मौके पर मंत्रोच्चारण के साथ यजमान माम राज मंगला, एडवोकेट राज कुमार सैनी, गुरु भजन सैनी,सिद्धार्थ तुली फौजी, परमजीत सिंह, बंटी गुंबर, शर्मा परिवार नैंसी वाले, तरसेम राणा, शिव राणा, राम कुमार पुरी, पूजा राणा, एडवोकेट खरैती लाल डोडा अबोहर, गुरभजन सिंह, बलजीत गोयत, उषा रानी , मीना रानी इत्यादि ने अभिषेक किया। महंत जगन्नाथ पुरी ने बताया कि जब किसी की अकाल मृत्यु किसी घातक रोग या दुर्घटना के कारण संभावित होती हैं तो इससे बचने का एक ही उपाय है महामृत्युंजय साधना। यमराज के मृत्युपाश से छुड़ाने वाले केवल भगवान मृत्युंजय शिव हैं जो अपने साधक को दीर्घायु देते हैं। इनकी साधना एक ऐसी प्रक्रिया है जो कठिन कार्यों को सरल बनाने की क्षमता के साथ-साथ विशेष शक्ति भी प्रदान करती है। उन्होंने ऋषि मार्कंडेय और यमराज के प्रसंग के साथ अन्य पौराणिक घटनाक्रमों की भी चर्चा की। ऋषि मार्कंडेय कि भक्ति से प्रसन्न होकर जब भगवान भोलेनाथ दीर्घायु का वरदान दिया था तब यमराज ने कहा कि मैं कभी भी महामृत्युंजय का पाठ करने वाले का त्रास नहीं करूंगा। महंत जगन्नाथ पुरी ने बताया कि महामृत्युंजय मंत्र के 33 अक्षर हैं जो महर्षि वशिष्ठ के अनुसार 33 कोटि देवताओं के द्योतक हैं। उन तैंतीस देवताओं में 8 वसु 11 रुद्र और 12 आदित्यठ, 1 प्रजापति तथा 1 षटकार हैं। इन तैंतीस कोटि देवताओं की सम्पूर्ण शक्तियाँ महामृत्युंजय मंत्र से निहित होती है। उन्होंने बताया कि महामृत्युंजय मंत्र मृत्यु को जीतने वाला महान मंत्र है, जिसे त्रयंबकम मंत्र भी कहा जाता है। ऋग्वेद का एक श्लोक है। यह त्रयंबक त्रिनेत्रों वाला रुद्र का विशेषण (जिसे बाद में शिव के साथ जोड़ा गया) को संबोधित है। यह श्लोक यजुर्वेद में भी आता है। शिव को मृत्युंजय के रूप में समर्पित महान मंत्र ऋग्वेद में पाया जाता है। इसे मृत्यु पर विजय पाने वाला महा मृत्युंजय मंत्र कहा जाता है। इस मंत्र के कई नाम और रूप हैं। महंत जगन्नाथ पुरी ने बताया कि इसे शिव के उग्र पहलू की ओर संकेत करते हुए रुद्र मंत्र कहा जाता है। भगवान शिव के तीन आँखों की ओर इशारा करते हुए त्रयंबकम मंत्र और इसे कभी कभी मृत-संजीवनी मंत्र के रूप में जाना जाता है, क्योंकि यह कठोर तपस्या पूरी करने के बाद पुरातन ऋषि शुक्र को प्रदान की गई जीवन बहाल करने वाली विद्या का एक घटक है। ऋषि-मुनियों ने महा मृत्युंजय मंत्र को वेद का हृदय कहा है। चिंतन और ध्यान के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अनेक मंत्रों में गायत्री मंत्र के साथ इस मंत्र का सर्वोच्च स्थान है। इस अवसर पर स्वामी संतोषानंद, स्वामी सीताराम, मयूर गिरि, बलजीत सिंह, बलदेव, भाना राम, बिल्लू पुजारी, सुक्खा सिंह, सिंदर सिंह, नाजर, दिव्या एवं कृतिका इत्यादि भी मौजूद थे।
महामृत्युंजय मंत्र जाप का महत्व बताते हुए महंत जगन्नाथ पुरी एवं मंदिर में रुद्राभिषेक करते हुए यजमान।