दिवाली: पर्यावरण का दिवाला।
वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
प्रस्तुति लेखक डा. संजीव कुमारी।
दिवाली हमारा सबसे बड़ा त्यौहार है। फसल पकाई का मौसम, मीठी ठंड के साथ मीठे पकवान, अमावस्या की रात को दीपों से जगमगाता जहान, बम पटाखों से गूंजता वातावरण, लक्ष्मी पूजन के समय पीढ़ियों तक लक्ष्मी घर में रहने की प्रार्थना, कितना सुखद माहौल होता है हमारे चारों तरफ। भगवान श्री राम जी का असत्य पर विजय पाकर वापस घर लौटने पर किए गए स्वागत को हम दिवाली के रूप में मनाते हैं। परंतु समय के साथ आए बदलाव ने सब कुछ बदल कर रख दिया है। आज हम दिवाली के समय दिखावे पर अधिक विश्वास करने लगे हैं। जितना ज्यादा बम पटाखे जलाएंगे समाज में उतना ही नाम होगा, हमारी इसी सोच ने हमारे पर्यावरण को प्रदूषित किया है। अगर यह कहे कि दिवाली पर्यावरण का दिवाला है तो बिल्कुल गलत ना होगा। महीनेभर पहले ही लोग पटाखे जलाने शुरू कर देते हैं और लोगों के बीच चर्चा का विषय भी बनते हैं। आज मैं बात करूंगी इन से होने वाले नुकसान के बारे में। पटाखे में चारकोल, सल्फर, पोटैशियम नाइट्रेट, ऑक्सिडाइजर, बाइंडर, रंग एजेंट व चलाने के लिए इंधन इत्यादि होते हैं। पटाखे में ऑक्सिडाइजर के रूप में परक्लोरेट होता है। इसके जलने के बाद छोड़े गए अवशेष मिट्टी व पानी के द्वारा हमारे शरीर में चले जाते हैं। जिसे हमारी थायराइड ग्रंथि अवशोषित कर लेती है। इससे हमारे उपापचय व मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। चारकोल से सल्फर ऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड व कार्बन मोनोऑक्साइड निकलती है जो फेफड़ों को नुकसान पहुंचाती है। इससे अस्थमा के मरीजों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। आज के समय जो पटाखे हैं वे जलने के बाद विभिन्न रंग पैदा करते हैं। उन रंगों के लिए उनमें रंग एजेंट डाला जाता है, जिससे स्वास्थ्य को काफी नुकसान होता है। सफेद रंग के लिए एल्युमीनियम कॉम्पोनेंट होता है जो फेफड़ों में जाकर जमा हो जाता है तथा श्वसन (सांस) संबंधी अनेक बीमारियां पैदा करता है। हरे रंग के लिए बेरियम नाइट्रेट का प्रयोग होता है जो श्वसन तंत्र में एलर्जी की समस्या उत्पन्न करता है। कॉपर द्वारा नीला रंग उत्पन्न होता है जो कैंसर कारक है। विभिन्न प्रकार के पटाखों में एंटीमनी सल्फाइड नामक रसायन होता है जिससे हानिकारक समोग निकलता है जो कैंसर कारक है। बेरियम क्रोमेट जीवित व फेफड़ों की कोशिकाओं के लिए बेहद हानिकारक है। इनमें मौजूद लेड आॅक्साइड, नाइट्रेट, कलोराइडस व पारा बेहद गंभीर समस्याएं पैदा करते हैं। पोटेशियम नाइट्रेट कैंसर कारक है। स्ट्रोंशीयम बेहद जहरीला पदार्थ है जो शरीर में जाकर कैल्शियम को बदल देता है। नाइट्रिक ऑक्साइड सांसो में जाकर जहर का काम करता है। इतने सारे नुकसान तो केवल पटाखों के हैं। अगर हम बात करें फुलझड़ी, चकरी, अनार या सांप की डिब्बी की तो वे भी पर्यावरण व स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इनको जलाने से पार्टिकुलेट मैटर पैदा होता है जो बेहद सूक्ष्म है तथा पर्यावरण में मौजूद रहता है। सांस के द्वारा यह हमारे शरीर में चले जाते हैं। सांप की एक छोटी टिकिया जलाने से ही पार्टिकुलेट मैटर के साथ साथ इतना धुआं पैदा होता है जितना 464 सिगरेट जलाने से होता है। इसी तरह अगर हम बात करें फुलझड़ी की तो उससे 74, चकरी से 68 व अनार से 34 सिगरेटों जितना धुआं उत्पन्न होता है। इसके अलावा विभिन्न रंगों व अन्य का जो नुकसान है उसकी चर्चा हम पहले ही कर चुके हैं। दिवाली पर जलाए जाने वाले पटाखों से उत्पन्न प्रदूषण से हमें यह जान लेना चाहिए कि यह हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए कितना हानिकारक है। हमें दिखावे में ना आकर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए दिवाली को हमें खुशियों के त्योहार के रूप में ही मनाना चाहिए ना कि पर्यावरण के दिवाले के रूप में।
डॉ. संजीव कुमारी
पर्यावरणविद व लेखक।