पवन सोंटी के हरियाणवी कथा संग्रह “पीढ़ी-दर- पीढ़ी” का दिल्ली में हुआ विमोचन

पवन सोंटी के हरियाणवी कथा संग्रह “पीढ़ी-दर- पीढ़ी” का दिल्ली में हुआ विमोचन।

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
दूरभाष – 9416191877

डीयू कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा: छुपी संस्कृति को प्रकाश में लाता है क्षेत्रीय भाषाओं का साहित्य।
अनूप लाठर बोले: पुस्तकों के रूप में लंबे समय तक सहेजा जा सकती है संस्कृति।

कुरुक्षेत्र, 18 अप्रैल :
कुरुक्षेत्र के वरिष्ठ पत्रकार पवन सोंटी की पुस्तक “पीढ़ी-दर-पीढ़ी” का विमोचन मंगलवार, 18 अप्रैल को दिल्ली में हुआ। इस संबंध में जानकारी देते हुए पवन सोंटी ने बताया कि उनके हरियाणवी कथा संग्रह “पीढ़ी-दर-पीढ़ी” का विमोचन दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह द्वारा किया गया। गौरतलब कि पवन सोंटी लंबे समय तक कुरुक्षेत्र के पत्रकारिता जगत में सक्रिय रहे हैं। आजकल वह दिल्ली विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइसरीगल लॉज में पुस्तक विमोचन के उपरांत समारोह के मुख्य अतिथि प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि क्षेत्रीय भाषाओं/ बोलियों का साहित्य ग्रामीण आंचल में छुपी भारतीय संस्कृति को प्रकाश में लाता है। पुस्तक विमोचन समारोह की अध्यक्षता करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय की सांस्कृतिक परिषद के चेयरपर्सन एवं पीआरओ अनूप लाठर ने कहा कि पुस्तकों के रूप में साहित्य और संस्कृति को लंबे समय तक सहेजा जा सकता है, इसलिए डिजिटल प्रकाशनों के साथ पुस्तकों की छपाई भी अति आवश्यक है।
प्रो. योगेश सिंह ने अपने संबोधन में आगे कहा कि हर क्षेत्र की अपनी अलग संस्कृति होती है जिसे साहित्य प्रतिबिंबित करता है; इसलिए क्षेत्रीय भाषाओं में जितना अधिक साहित्य सृजन होगा, भारतीय संस्कृति और साहित्य उतने ही अधिक समृद्ध होंगे। उन्होंने कहा कि आंचलिक कहानियों में कहीं न कहीं तत्कालीन प्रथाओं और लोकजीवन का वर्णन जरूर मिलता है। वक्त के साथ संस्कृति में तो बदलाव आता है, लेकिन यही आंचलिक साहित्य अपने क्षेत्र विशेष की तत्कालीन सांस्कृतिक विशेषताओं को सहेजकर आगामी पीढ़ियों को हस्तांतरित करता है। आंचलिक साहित्य इतिहास की तरह होता है, जो उस क्षेत्र की संस्कृति को भावी पीढ़ियों के लिए संजोता है। उन्होने कहा कि डिजिटलिकरण के दौर में छपी हुई पुस्तकों के भविष्य को लेकर शंकाएं तो पैदा हुई हैं, लेकिन इनका महत्व कम नहीं होगा। कुलपति ने कहा कि पाठकों को चाहिए कि पुस्तकें जरूर खरीदें, ताकि लेखकों को प्रोत्साहन मिलता रहे और वे लिखते रहें।
दिल्ली विश्वविद्यालय सांस्कृतिक परिषद के चेयरपर्सन एवं पीआरओ अनूप लाठर ने अपने अध्यक्षयीय संबोधन में कहा कि हरियाणा और दिल्ली एनसीआर क्षेत्र सांस्कृतिक रूप से समृद्ध रहा है, लेकिन हरियाणवी भाषा में साहित्य लेखन बहुत कम हुआ है। यही कारण है कि हरियाणवी संस्कृति को कुछ दशक पहले तक केवल एग्रीकल्चर तक ही सीमित माना जाता था। हालांकि आज हरियाणवी संस्कृति अंतर्राष्ट्रीय फ़लक पर अपनी छाप छोड़ रही है। उन्होने बताया कि “पीढ़ी-दर-पीढ़ी” पुस्तक के लेखक पवन सोंटी को वह उस समय से जानते हैं जब 2004-05 में पवन सोंटी ने कुरुक्षेत्र के पत्रकारिता जगत में पदार्पण किया था। लाठर ने बताया कि सोंटी के संस्कृति के प्रति रुझान को लेकर ही मैंने उन्हें हरियाणवी में साहित्य लेखन का सुझाव दिया था। आज मुझे खुशी है हरियाणवी भाषा में उनकी कहानियों की पहली पुस्तक का विमोचन हो रहा है।
समारोह के अंत में पुस्तक “पीढ़ी-दर-पीढ़ी” के लेखक पवन सोंटी ने आभार ज्ञपित किया। उन्होंने पुस्तक विमोचन हेतु अपना बहुमूल्य समय देने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह और दिल्ली विश्वविद्यालय की सांस्कृतिक परिषद के चेयरपर्सन एवं पीआरओ अनूप लाठर का आभार जताया। सोंटी ने कहा कि श्री लाठर ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में 1984 से युवा एवं सांस्कृतिक विभाग के निदेशक के पद पर नियुक्ति के पश्चात हरियाणवी संस्कृति के उत्थान के लिए रत्नावली जैसे अनूठे भाषाई समारोह की बदौलत 30 वर्ष तक हरियाणवी बोली को एक सम्पूर्ण भाषा के रूप में स्थापित करने में महती भूमिका निभाई। इसी दौरान 2011 में अनूप लाठर जी ने मुझे हरियाणवी भाषा में साहित्य लेखन हेतु प्रेरित किया था। पवन सोंटी ने कहा कि डीयू कुलपति प्रो. योगेश सिंह जी जैसे प्रेरणा स्रोत व्यक्तित्व और अनूप लाठर जी जैसे प्रेरक गुरु जी की बदौलत ही वह इस पुस्तक को प्रकाशित करने में सफल हो सके हैं। उन्होंने इस प्रेरणा के लिए भी प्रो. योगेश सिंह एवं अनूप लाठर का हृदय से आभार जताया। इस अवसर पर डीयू दक्षिणी दिल्ली परिसर के निदेशक प्रो. श्री प्रकाश सिंह, डीन ऑफ कॉलेजेज़ प्रो. बलराम पाणी, प्रोक्टर प्रो. रजनी अब्बी, डीयू रजिस्ट्रार डॉ. विकास गुप्ता, दिल्ली विश्वविद्यालय सांस्कृतिक परिषद के डीन प्रो. रविंदर कुमार, डीन एकेडमिक प्रो. रतनाबली, ज्वाइंट रजिस्ट्रार प्रदीप कुमार कल्चर की ज्वाइंट डीन डॉ. दीप्ति तनेजा, वीसी ऑफिस की पूर्व डिप्टी डीन डॉ. मनीषा चौधरी, प्रो. अजय कुमार आदि सहित कई शिक्षक, अधिकारी एवं स्टाफ सदस्य उपस्थित रहे।
कुरुक्षेत्र से है वीसी, लाठर और सोंटी का गहरा संबंध।
हरियाणवी कथा संग्रह “पीढ़ी-दर-पीढ़ी” के लेखक पवन सोंटी कुरुक्षेत्र जिला के गाँव सोंटी के रहने वाले हैं और उन्होने करीब 15 वर्ष तक कुरुक्षेत्र में पत्रकारिता की है। फिलहाल वह दिल्ली विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं। पुस्तक के विमोचन समारोह की अध्यक्षता करने वाले सांस्कृतिक कर्मी एवं हरियाणवी संस्कृति के पुरोधा अनूप लाठर का भी कुरुक्षेत्र से गहरा संबंध रहा है। करनाल में पैदा हुए अनूप लाठर की पढ़ाई जहां कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से हुई वहीं उन्होने 30 वर्ष तक कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के युवा एवं सांस्कृतिक कार्य विभाग के निदेशक पद पर कार्य किया और हरियाणवी संस्कृति की सेवा की है। पुस्तक विमोचन के मुख्यातिथि एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह का भी कुरुक्षेत्र से गहरा संबंध है। उनका बचपन कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय परिसर में गुजरा और एम. टेक एवं पीएचडी की डिग्री भी कुरुक्षेत्र के एनआईटी से प्राप्त की। पढ़ाई के उपरांत वह एक शिक्षक के रूप में सोनीपत के छोटू राम स्टेट कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से होते हुए जीजेयू हिसार और फिर जीजीएसआईपीयू दिल्ली तक पहुंचे। वर्ष 2011 से वह एमएस यूनिवर्सिटी बड़ौदा (गुजरात) के कुलपति, एनएसआईटी दिल्ली के निदेशक व डीटीयू दिल्ली के कुलपति रहने के बाद अब दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति हैं।
डीयू के वाइसरीगल लॉज में काउंसिल रूम में पुस्तक विमोचन करते डीयू कुलपति प्रो. योगेश सिंह व अन्य और इस अवसर पर संबोधित करते हुए कुलपति प्रो. योगेश सिंह व डीयू कल्चर काउंसिल के चेयर पर्सन एवं पीआरओ अनूप लाठर।

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