भगवान परशुराम जयंती पर समाज में भाईचारा, एकता और जात पात भुलाकर लोक कल्याण का संकल्प लेना चाहिए : महंत राजेंद्र पुरी।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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महंत राजेंद्र पुरी ने भगवान परशुराम जयंती पर दी शुभकामनाएं।
कुरुक्षेत्र, 22 अप्रैल : जग ज्योति दरबार के महंत राजेंद्र पुरी ने शनिवार को दरबार में भगवान परशुराम जी की जयंती पर हवन किया तथा उसके उपरांत देश व प्रदेशवासियों को शुभकामनाएं दी।
महंत राजेंद्र पुरी ने भगवान परशुराम के जीवन बारे बताते हुए कहा कि भगवान परशुराम का जन्म माता रेणुका की कोख से हुआ था। जन्म के बाद इनके माता-पिता ने इनका नाम राम रखा था। बालक राम बचपन से ही भगवान शिव के परम भक्त थे। ये हमेशा ही भगवान की तपस्या में लीन रहा करते थे। तब भगवान शिव ने इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर इन्हें कई तरह के शस्त्र दिए थे, जिसमें एक फरसा भी था । फरसा को ही परशु भी कहते हैं इस कारण से इन का नाम परशुराम पड़ा।
महंत राजेंद्र पुरी बताया कि शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर भगवान परशुराम का जन्मोत्सव बड़े ही उत्साह एवं धूमधाम के साथ मनाया जाता है। शनिवार को अक्षय तृतीया का पर्व है और इस तिथि पर भगवान विष्णु के सभी दस अवतारों में छठे अवतार माने गए भगवान परशुराम की जयंती भी मनाई जाती है।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम का प्राकट्य काल प्रदोष काल में हुआ था और ये 8 चिरंजीवी पुरुषों में एक हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान परशुराम आज भी इस धरती पर मौजूद हैं। परशुराम जयंती और अक्षय तृतीया पर किया गया दान-पुण्य कभी क्षय नहीं होता है। अक्षय तृतीया के दिन जन्म लेने के कारण ही भगवान परशुराम की शक्ति भी अक्षय थी। 8 चिरंजीवियों में भगवान परशुराम समेत महर्षि वेदव्यास, अश्वत्थामा, राजा बलि, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और ऋषि मार्कंडेय हैं जो आज भी इस कलयुग में विचरण कर रहे हैं। शास्त्रों में अष्ट चिरंजीवियों का वर्णन कुछ इस तरह से मिलता है।
महंत राजेंद्र पुरी ने अपील करते हुए कहा कि प्रदेशवासियों को आज से प्रण लेना चाहिए कि भगवान परशुराम जी की भांति अपने धर्म और सनातन की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहेंगे। समय आने पर भक्ति और पूजा के साथ साथ शास्त्र उठाने पड़े तो उसके लिए हर हिंदू तैयार है। आज के दिन समाज में भाईचारा, एकता और जात पात भुला कर लोक कल्याण कार्य और सर्व धर्म रक्षा का संकल्प लेना चाहिए।
श्रद्धालुओं के साथ महंत राजेंद्र पुरी।