अयोध्या में बन रहा भगवान राम का मंदिर न केवल एक मंदिर बल्कि भारत की अस्मिता एवं अखंडता के साथ जुड़ा राष्ट्रमंदिर है : डा. श्रीप्रकाश मिश्र

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
ब्यूरो चीफ – संजीव कुमारी दूरभाष – 94161 91877

श्रीमदभगवदगीता जन्मस्थली ज्योतिसर पर श्रीअयोध्या धाम में निर्विघ्न एवं सकुशल भगवान श्रीराम प्राण प्रतिष्ठा समारोह संपन्न होने के निमित्त मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा वैदिक गीता ज्ञान यज्ञ संपन्न।

कुरुक्षेत्र 15 जनवरी :
श्रीमदभगवदगीता के अनुसार जो कर्म निष्काम भाव से ईश्वर के लिए किए जाते हैं वे बंधन नहीं उत्पन्न करते। भी व्यक्ति को मोक्षरूप परमपद की प्राप्ति में सहायक होते हैं। इस प्रकार कर्मफल तथा आसक्ति से रहित होकर ईश्वर के लिए कर्म करना वास्तविक रूप से निष्काम कर्म है। श्रीमदभगवदगीता के इसी निष्काम कर्म से प्रेरित होकर कारसेवकों के समूह ने अपने अदम्य साहस एवं दृढ इच्छा शक्ति से लम्बे संघर्ष के परिणामस्वरूप अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर भगवान श्रीराम के मंदिर निर्माण के स्वप्न को साकार किया। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा मकर संक्रांति के पावन अवसर पर श्रीमदभगवदगीता जन्मस्थली ज्योतिसर पर श्रीअयोध्या धाम में निर्विघ्न एवं सकुशल भगवान श्रीराम प्राण प्रतिष्ठा समारोह संपन्न होने के निमित्त आयोजित वैदिक गीता ज्ञान यज्ञ में मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने व्यक्त किये। कार्यक्रम का शुभारम्भ ब्राम्हचारियों द्वारा मंगल स्वस्ति वाचन से हुआ। डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा
श्रीराम मंदिर के निर्माण के लिए चार लाख से ज्यादा हिंदुओं को बलिदान देना पड़ा। आज अयोध्या में बन रहा भगवान राम का मंदिर न केवल एक मंदिर बल्कि भारत की अस्मिता एवं अखंडता के साथ जुड़ा राष्ट्रमंदिर है। भगवान राम के प्रति सम्पूर्ण देश का मानस क्या सोचता है, यह इसी से ज्ञात होता है कि उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम संपूर्ण भारत और दुनिया के अन्य देशों में प्रभु राम के चरित्र का नहीं रामलीला के रूप में होता है। यह केवल राम के व्यक्तित्व का ही मंचन नहीं है, बल्कि भारत के समाज जीवन के आदर्श का भी चित्रण है।डा.श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा विश्व में श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन सबसे अधिक समय तक चलने वाला आंदोलन रहा। श्रीराम जन्मभूमि के लिए 76 बार संघर्ष हुआ, जिसमें चार लाख से ज़्यादा हिंदुओं ने बलिदान दिया। इसीलिए अयोध्या में राम मंदिर मात्र मंदिर निर्माण नहीं, अपितु भारत की उस विस्मृत ज्ञान परंपरा, त्याग, सत्य, करुणा, समता, सामाजिक समरसता, इन सभी तत्वों को समाज से परिचित कराना है।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा विदेशी अक्रांताओं ने हमारे धर्म और संस्कृति को नष्ट करना चाहा, वहीं हमसे बहुत कुछ छीनने का प्रयास किया। लेकिन राम, कृष्ण ही थे, हमारी अध्यात्म शक्ति, हिंदुत्व चिंतन धारा ही थी, जिसने हमें आपस में जोड़े रखा।विदेशी अक्रांताओं ने जहां देश की धन संपदा लूटी, वहीं हमारी आस्था के केंद्रों को भी नष्ट किया। आस्था के केंद्र ये मंदिर, ये राम, कृष्ण, ये शिव की मूर्तियां किसी के लिए मात्र माटी-पत्थर की बनी कुछ आकृतियां हो सकती हैं, लेकिन कंकर में भी शंकर को देखने की वृति भी हमारी संस्कृति की ही रही है। अगर हम दुनिया के इतिहास पर थोड़ी नजर डालें, तो स्पष्ट दिख जाएगा कि जहां भी अक्रांता गए, वहां उन्होंने प्रशासनिक अधीनता ही नहीं की, बल्कि उन राष्ट्रों की संस्कृति पर ही सबसे पहले आक्रमण किया। आभार ज्ञापन मिशन के सदस्य धर्मपाल सैनी ने किया। कार्यक्रम संयोजक आचार्य नरेश कौशिक ने सभी अतिथियों आभार ज्ञापित किया। मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा कुरुक्षेत्र संस्कृत वेद विद्यालय के सभी ब्रम्हचारियों को मकर सक्रांति के उपलक्ष्य में ज्योतिसर तीर्थ में गर्म वस्त्र भेंट किया गया और श्रद्धालुओ को खिचड़ी प्रसाद वितरित किया गया। कार्यक्रम में देश के अनेक प्रांतो से गीताप्रेमी एवं रामभक्त उपस्थित रहकर यज्ञ में आहुति समर्पित की।

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