सपनों को मिली उड़ान, एनु बनीं “स्कूटी दीदी”
ग्रामीण पृष्ठभूमि से निकली आत्मनिर्भरता की कहानी
सपनों को मिली उड़ान, एनु बनीं “स्कूटी दीदी”
ग्रामीण पृष्ठभूमि से निकली आत्मनिर्भरता की कहानी

धमतरी, 15 जुलाई 2025/ सपनों को उड़ान देने के लिए पंख नहीं, साहस और संकल्प की जरूरत होती है। इसी बात को सत्य साबित किया है धमतरी जिले के कुरूद विकासखण्ड स्थित ग्राम उमरदा की एक साधारण लेकिन जुझारू महिला एनु ने, जो आज “स्कूटी दीदी” के नाम से जानी जाती हैं। संसाधनों की कमी, सामाजिक दबाव और सीमित अवसरों के बावजूद एनु न केवल आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कदम बढ़ाया, बल्कि ग्रामीण महिलाओं को भी सशक्त बनाने में अहम भूमिका निभाई। एनु का जन्म एक सामान्य ग्रामीण परिवार में हुआ, जहाँ आर्थिक स्थिति सशक्त नहीं थी। परिवार में आय के सीमित स्रोत थे, और लड़कियों की शिक्षा को लेकर अब भी संकोच और संकीर्ण सोच थी। परन्तु एनु की सोच इससे बिल्कुल अलग थी। वे हमेशा कुछ नया करने और अपने पैरों पर खड़े होने की इच्छा रखती थीं। कठिनाइयों और प्रतिकूलताओं के बीच भी उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और अर्थशास्त्र में एम.ए. (स्नातकोत्तर) की उपाधि हासिल की। यह उपलब्धि ही अपने आप में उनके संघर्ष और लगन का प्रतीक थी। लेकिन डिग्री लेना ही मंज़िल नहीं थी। एनु जानती थीं कि केवल शिक्षा से रोजगार नहीं मिलेगा, जब तक उनके पास कोई कौशल न हो। इसी सोच के साथ उन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन-बिहान से जुड़कर सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण लिया। प्रशिक्षण के बाद उन्होंने एक लाख रूपये का बिहान से ऋण लिया, जिसमें उन्हें सब्सिडी 18 हजार रूपये की मिली। एनु ने बताया कि उन्होंने ऋण किश्त की अदायगी भी समय पर पूरी कर दी है।
एनु का अगला कदम था मोबिलिटी यानी गतिशीलता। वे चाहती थीं कि खुद स्कूटी चला सकें, ताकि गांव-गांव जाकर महिलाओं से मिलें, प्रशिक्षण दें और उनके जीवन को बदलने में योगदान दे सकें। उन्होंने ‘प्रथम संस्था’ से स्कूटी चलाने का प्रशिक्षण लिया। पहले-पहले जब उन्होंने स्कूटी की चाबी हाथ में ली, तो लोगों ने ताने दिए कि “लड़की होकर गाड़ी चलाएगी?”, “क्या ज़रूरत है इधर-उधर घूमने की?”, लेकिन एनु अडिग रहीं। उन्होंने अपने आत्मविश्वास के साथ इन बातों को अनसुना कर, अभ्यास जारी रखा और जल्द ही स्कूटी चलाने में दक्ष हो गईं। धीरे-धीरे उनका आत्मविश्वास और कौशल दोनों बढ़ने लगे। अब वे गांवों में स्वतंत्र रूप से घूमने लगीं, महिलाओं से जुड़ीं, उन्हें प्रेरित करने लगीं और अपनी कहानी सुनाकर उनमें भी आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा जगाने लगीं। यही वह मोड़ था जब उन्होंने तय किया कि अब वह खुद एक ड्राइविंग स्कूल शुरू करेंगी, ताकि अन्य महिलाओं को भी गाड़ी चलाना सिखा सकें। यह पहल ग्रामीण परिवेश में महिलाओं की स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम था।
एनु ने 2023 में अपने सीमित संसाधनों के साथ “महिला दोपहिया प्रशिक्षण केंद्र” की शुरुआत की। शुरू में केवल 2-3 महिलाओं ने प्रशिक्षण लिया, लेकिन जल्द ही यह संख्या बढ़ती चली गई। आज उनकी पहचान पूरे ब्लॉक और जिले में “स्कूटी दीदी” के रूप में हो गई है। उन्होंने अब तक 30 से अधिक ग्रामीण महिलाओं को दोपहिया वाहन चलाने का प्रशिक्षण दिया है, जिनमें से कई महिलाएं अब स्वयं स्कूल, आंगनबाड़ी, स्वास्थ्य केंद्र या बैंक जैसी जगहों पर काम करने के लिए आत्मनिर्भर रूप से आने-जाने लगी हैं। एनु की यह पहल न केवल महिलाओं के जीवन में आत्मविश्वास और स्वतंत्रता लाई है, बल्कि सामाजिक सोच को भी बदला है। अब गांवों में लोग अपनी बेटियों और बहुओं को एनु के पास भेजते हैं, यह सीखने कि कैसे वे भी “अपने सपनों की सवारी” कर सकती हैं। उनकी इस उपलब्धि के लिए विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों ने उन्हें सम्मानित भी किया है। हाल ही में उन्हें जिला प्रशासन द्वारा महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए प्रशस्ति पत्र भी प्रदान किया गया। एनु का सपना है कि वे आने वाले वर्षों में एक हजार महिलाओं को ड्राइविंग सिखाएं और इसके लिए वे जल्द ही चारपहिया ड्राइविंग स्कूल भी शुरू करने की योजना बना रही हैं। एनु का जीवन इस बात का प्रमाण है कि अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती। उनकी कहानी हर उस महिला के लिए प्रेरणा है, जो समाज की जंजीरों को तोड़कर आगे बढ़ना चाहती है। स्कूटी दीदी एनु ने दिखा दिया कि सच्ची ताकत बाहरी साधनों में नहीं, बल्कि भीतर के आत्मबल और दृढ़ निश्चय में होती है। एनु सिलाई, ड्रायविंग, घर के कामकाज के अलावा मनरेगा, एलईडी लाईट आदि कामों में भी दक्ष हैं।
बीते दिनों भारत सरकार के ग्रामीण विकास विभाग की संयुक्त सचिव श्रीमती स्वाति शर्मा और कलेक्टर श्री अबिनाश मिश्रा ने उनसे मुलाकात कर उनका उत्साहवर्धन किया था।