कलाकृतियों के माध्यम से संस्कृति और संस्कारों की छाप छोड़ते हैं कलाकार

‘कलाकृतियों के माध्यम से संस्कृति और संस्कारों की छाप छोड़ते हैं कलाकार’

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।

लघु चित्र कार्यशाला में कला के गुर सीख रहे हैं नवोदित कलाकार।

कुरुक्षेत्र, 25 अगस्त : विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान, संस्कृति भवन कुरुक्षेत्र में हरियाणा कला परिषद अम्बाला मंडल के सौजन्य से लघु चित्र कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है जोकि 28 अगस्त तक चलेगी। कार्यशाला में हरियाणा कला परिषद अम्बाला मंडल के निदेशक डॉ. नागेन्द्र शर्मा मुख्यातिथि के रूप में उपस्थित रहे। इस अवसर पर विश्वप्रसिद्ध कलाकार राष्ट्रीय शिल्प पुरस्कार से पुरस्कृत आशाराम मेघवाल एवं वरिष्ठ कलाकार कुश शर्मा, अनिल सिंधु को सम्मानित कर अभिनंदन किया गया। कार्यशाला में पं. लख्मी चंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ प्रोफॉर्मिंग एंड विजुअल आर्ट्स एवं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के फाइन आर्ट्स विभाग के नवोदित कलाकार कला के गुर सीख रहे हैं।
डॉ. नागेन्द्र शर्मा ने कला प्रशिक्षुओं का उत्साहर्द्धन करते हुए कहा कि कला एक साधना है, जिसमें निरन्तर सीखने की जिज्ञासा से ही इस साधना को पूर्ण किया जा सकता है। हम अक्सर बचपन में कुछ कलाकृतियां बनाते हैं। बड़े होने पर वही कलाकृतियां मन-मस्तिष्क में बस जाती हैं, जिनसे हमारे अंदर कलाकार का जन्म होता है। यह कला कभी पूर्ण नहीं होती, इसमें हम आज भी नई-नई संभावनाएं तलाशते हैं। उन्होंने नए उभरते कलाकारों से कहा कि जब उन्होंने कला सीखी तब इतने मंच व साधन नहीं थे, लेकिन आज सोशल मीडिया के युग में और नए-नए साधनों के आ जाने से बहुत कुछ आसान हो गया है। उन्होंने कहा कि वे कला के इस मार्ग पर कभी पीछे न हटें और आगे बढ़ते रहें।
विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह ने कहा कि किसी भी विषय में सीखते समय निरन्तरता के साथ-साथ संघर्ष की स्थिति लम्बे समय तक चलती है। एकाग्रता बनाए रखें तो उसमें से आगे अच्छा स्वरूप निकलकर आता है। उन्होंने कहा कि कलाकारों के हाथों से जो चीजें निर्मित होती हैं, उसमें से संस्कृति और संस्कारों की छाप जाती है तो वह देव रूप में या किसी न किसी रूप में अपना आकार लेती है। उन्होंने कहा कि कला एक ऐसा माध्यम है जो समाज को संस्कार देने का काम करती है। जैसी कृति आपके द्वारा निर्मित होती है, आने वाली पीढ़ी उससे प्रेरणा लेकर संस्कार ग्रहण करती है। पुरातन संस्कृति में कलाकृतियों को देखेंगे तो जान पाएंगे कि प्राचीनकाल में कलाकृतियों की कैसी वेशभूषा थी, कैसे आभूषण थे, इससे न केवल भारतीय संस्कृति के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न होती है, वरन बहुत कुछ सीखने को भी मिलता है।
कार्यशाला में आए सुप्रसिद्ध कलाकार आशाराम मेघवाल ने कहा कि वे अनेक जगहों पर घूम चुके हैं लेकिन कुरुक्षेत्र में आकर चित्रकारी करने का जो स्वप्न था, वह पूरा हुआ है। उनके समय में कला सीखने में बहुत संघर्ष था लेकिन आज सोशल मीडिया के युग में अनेक चैनलों पर मोटिवेशन स्वयं हो जाता है। उन्होंने अपनी कला के माध्यम से बहुत से युद्ध सीन उकेरे हैं, लेकिन सही मायनों में कुरुक्षेत्र की भूमि पर उनकी इच्छा पूर्ण हुई है। कार्यशाला में विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान एवं हरियाणा कला परिषद का धन्यवाद किया जिनके माध्यम से ऐसा सुनहरा अवसर मिला है।
विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान में आयोजित लघु चित्र कार्यशाला को संबोधित करते हरियाणा कला परिषद अम्बाला मंडल के निदेशक डॉ. नागेन्द्र शर्मा।

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