![](https://vvnewsvaashvara.in/wp-content/uploads/2022/10/IMG-20221007-WA0032-1024x624.jpg)
हरियाणा कला परिषद के कलाकारों ने किया नाटक पार्क का मंचन।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
दूरभाष – 9416191877
समाज के अंतःकरण में दबे मार्मिक पहलुओं को दिखा गया नाटक पार्क।
सामाजिक मुद्दों पर सोचने को मजबूर कर गया नाटक पार्क।
कुरुक्षेत्र : किसी को जब उसके घर या स्थान से निकाल कर दूसरी जगह फेंक दिया जाता है। तो वह कभी भी उसे अपनी जगह के रूप में स्वीकार नहीं कर पाते। वो, उनकी पुश्तें पूरी जि़न्दगी इंतज़ार करती हैं, कि एक दिन सब कुछ ठीक हो जाएगा और उन्हें वापिस बुला कर उनकी जगह दे दी जाएगी, पर ऐसा कभी होता नहीं। विस्थापन का दर्द जो झेलता है, वहीं उस दर्द की पीड़ा को समझता है। इस तरह की गंभीर समस्याओं को एक पार्क की तीन बेंचों के माध्यम से कलासाधक मंच के कलाकारों ने बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया। मौका था भटिण्डा के महाराजा रणजीत सिंह विश्वविद्यालय के सभागार में आयोजित 15 दिवसीय नाट्यम फेस्ट के छठे दिन का, जहां हरियाणा कला परिषद की ओर से नाटक पार्क का मंचन हुआ। कीर्ति कृपाल सिंह द्वारा आयोजित 11वें नाट्यम उत्सव में डा. गगन थापा, निदेशक युवा कल्याण विभाग, पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला, डा. अनुज बंसल, अनुराधा भाटिया व डा. कशिश अतिथि के रुप में उपस्थित रहे। फिल्म अभिनेता मानव कौल के लिखे, रंगकर्मी गौरव दीपक जांगडा के निर्देशन तथा विकास शर्मा के सह-निर्देशन में तैयार नाटक पार्क ने विभिन्न मुद्दों पर प्रकाश डालने का कार्य किया। नाटक पार्क तीन अन्जान लोगों की बातचीत पर आधारित रहा। एक गांधी पार्क में एक एक कर तीन व्यक्ति आते हैं जो एक ही बैंच पर बैठने की जिद पकड़ लेते हैं। जिसमें उदय एक ऐसी बिमारी से ग्रस्त है, जिसमें वह स्वयं को जीनियस समझता है। वहीं मदन एक अध्यापक है, जो बच्चों की दृष्टि में एक विलेन के रुप में हैं। लेकिन पार्क में आना और अपने विद्यालय की गणित की अध्यापिका को देखना उसे स्वयं को नायक के रुप में दर्शाता है। तीसरा किरदार नवाज का है जो अपने बेटे को जैसे तैसे करके पांचवी कक्षा में पास करवाना चाहता है, जबकि उसका बेटा हुसैन एक स्पेशल चाईल्ड है। तीनों किरदार एक ही समय में एक पार्क में आ जाते हैं और एक बेंच के लिए झगड़ते रहते हैं। जिस बेंच पर उदय बैठा होता है उसी बेंच पर मदन बैठना चाहता है। जब उदय मदन से वहां बैठने का कारण पूछता है तो मदन बताता है कि सामने की बिल्डिंग में उसके स्कूल की गणित की अध्यापिका रहती है, जिसे देखना उसे बहुत अच्छा लगता है। जब नवाज इस बात का विरोध करता है तो मदन समझाता है कि टीचर केवल टीचर नहीं होता, वह भी आम इंसान है, जिसे औरों की तरह जीने का हक है। वहीं नवाज पार्क में अपने बेटे के रिजल्ट का इंतजार कर रहा है। जबकि उसका बेटा बाप व टीचर के प्रैशर के कारण पढ़ ही नहीं पाता और फेल हो जाता है। उदय नवाज को समझाता है कि अपने बच्चों पर अपनी इच्छा थोपनी नहीं चाहिए। उधर उदय भी मानसिक रुप से परेशान दिखता है। जब उससे इसका कारण जाना जाता है तो वह बताता है कि बचपन में उसने हिंदू मुस्लिम के दंगे देखे थे, जिसने उसके मन पर बहुत गहरा असर डाला है। इस प्रकार हास्य और व्यंग्य के साथ उनकी बातचीत में 18 वीं सदी से वर्तमान तक के बहुत गम्भीर मुद्दे आ जाते हैं। नाटक एक विशेष जगह के स्वामित्व की लड़ाई से प्रारंभ होकर उन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों की ओर पहुंचाता है, जिसकी चर्चा करने के लिए जनसामान्य के मन में कौतुहल रहता है। पात्रों की बातचीत के जरिए देश में व्याप्त नक्सलवाद और आदिवासियों के विस्थापन जैसे कई मुद्दों को भी रेखांकित किया गया है। नाटक में उदय का किरदार गौरव दीपक जांगड़ा ने निभाया। वहीं मदन की भूमिका में विकास शर्मा, नवाज की भूमिका में चंचल शर्मा तथा हुसैन की भूमिका राजीव कुमार ने निभाई। संगीत संचालन तुषार, प्रकाश व्यवस्था मनीष डोगरा तथा सहयोगी के रुप में पार्थ शर्मा शामिल रहे।