तापमान बढ़ने के साथ ही किसानों और कृषि विशेषज्ञों को हुई चिंता, गेहूं की फसल लेकर चिंता।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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बंपर पैदावार होने की उम्मीद, मौसम और तापमान पर निर्भर
गेहूं की फसल में पीला रतुआ व मौसम के मिजाज से होता है असर।
कुरुक्षेत्र, 19 फरवरी : वैसे तो कृषि विशेषज्ञों एवं कृषि अधिकारियों का अनुमान है कि गेहूं की फसल से बंपर पैदावार होने की उम्मीद है। किसी भी फसल की पैदावार मौसम की परिस्थितियों पर भी निर्भर करती है। कृषि वैज्ञानिक एवं कृषि विशेषज्ञ विशेष तौर पर मौसम के अनुमान पर नजर रखते हैं। कृषि वैज्ञानिक डा. सी. बी. सिंह ने कुरुक्षेत्र जिला के विभिन्न क्षेत्रों में गेहूं की खड़ी फसल का निरीक्षण करने के बाद कहा कि इस बार खेतों में अच्छी फसल खड़ी है और पैदावार भी अच्छी होगी। कहीं भी उन्हें फसल पर पीला रतुआ के लक्षण दिखाई नहीं दिए हैं। उन्होंने कहा कि फरवरी महीने का तीसरा सप्ताह पूरा होने के साथ ही अधिकतम तापमान 28 डिग्री के पार पहुंच गया है और आने वाले दिनों में 31 डिग्री तक भी पहुंच जाने की संभावना है।
डा. सिंह ने कहा कि बढ़ता तापमान गेहूं की फसल को लेकर चिंता में डालने वाला है। यदि मौसम की स्थिति ऐसी ही रही तो गेहूं की बंपर पैदावार की उम्मीद को झटका लग सकता है। उन्होंने कहा कि फरवरी में ही मार्च के दूसरे हफ्ते जैसी गर्मी का अहसास हो रहा है। यह मौसम गेहूं की फसल के लिए लाभकारी नहीं है। इससे फसल में एफिड, कीट प्रकोप व पीले रतुआ भी बढ़ेगा। अधिकतम तापमान अभी 20 डिग्री सेल्सियस से कम रहना चाहिए। समय से पहले ज्यादा तापमान रहने पर गेहूं का दाना कमजोर होगा। वैसे एक दो दिन में मौसम कुछ परिवर्तनशील होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
कृषि वैज्ञानिक डा. सी. बी. सिंह के अनुसार उन्होंने काफी खेतों में खड़ी फसलों की जांच की है। लेकिन उन्हें अभी तक कहीं भी गेहूं की फसल पर पीला रतुआ की बीमारी के संकेत नहीं मिले हैं। फिर भी उन्होंने किसानों को लगातार खेतों में गेहूं की फसल की मॉनिटरिंग करने की सलाह दी है। डा. सिंह के अनुसार अगर कहीं संकेत दिखाई दे तो तुरंत कृषि अधिकारी एवं कृषि विशेषज्ञों को सूचित कर आवश्यकता अनुसार उपचार की सलाह लें।
मौसम और बीमारी
कृषि वैज्ञानिक डा. सिंह के अनुसार फसल में बीमारी का खतरा फरवरी में होता है। मौसम की स्थिति के कारण किसानों को ध्यान रखने की सलाह है। सर्दी के बाद अचानक तेज धूप आ जाती है, इसी कारण यह बीमारी आ जाती है। यह फंगस की जनहित बीमारी होती है। उन्होंने बताया कि फंगस कृषि विशेषज्ञों के अनुसार पीला रतुआ का फंगस बाबरी प्लांट पर पनपता है। इसके 15 मार्च तक फैलने की संभावना अधिक रहती हैं। क्योंकि इन दिनों मौसम में ठंडक व नमी अधिक होती है। हवा के माध्यम से आसपास के क्षेत्रों में गेहूं पर असर छोड़ना शुरू कर देता है। इसके असर से फसल को पांच से 50 प्रतिशत नुकसान हो सकता है। उन्होंने बताया कि नमी के दौरान फंगस और भी अधिक सक्रिय हो जाता है। बीमारी के दस्तक देने पर गेहूं के पौधों के पत्तों पर पीले का रंग का पाउडर देखा जाने लगता है। यह पाउडर लाइनों में होता है। छूने से हाथ या कपड़े पर लगता है। इसकी चपेट में आने के बाद पौधा धीरे-धीरे पत्ता सूखने लगता है। पत्ते सूख जाने के बाद प्रकाश संश्लेषण के क्रिया नहीं हो पाती। जिसके परिणामस्वरूप पूरा पौधा सूख जाता है। डा. सिंह ने कहा कि किसान फसल की नियमित रूप से जांच करते रहें। प्रभावित फसल पर प्रोपीकोनोजोल या टैबूगोकोनाजोल नामक दवाओं में से कोई एक दवा का स्प्रे कर सकते हैं। प्रति एकड़ 200 एमएल का छिड़काव किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि कई अन्य परिस्थितियों में फसल पर पीलापन आ सकता है, जरूरी नहीं है यह पीला रतुआ हो। इन दिनों मौसम पूरी तरह पीला रतुआ के अनुरूप है। किसान फसल का नियमित रूप से जांच करते रहें। लक्षण दिखाई देने पर तुरंत परामर्श कर दवाई का छिड़काव करें।
कृषि वैज्ञानिक डा. सी बी सिंह फसल का निरीक्षण करते हुए।