बिहार:समाज में भ्रम की स्थिति पैदा कर रहे हैं शिक्षा विभाग

समाज में भ्रम की स्थिति पैदा कर रहे हैं शिक्षा विभाग

आदेश वापस नहीं हुआ तो होगा निर्णायक आन्दोलन – संघ

त्योहारों में विद्यालय खोलने के आदेश से एमडीएम योजना में बड़ी गड़बड़ी की संभावना
अररिया
शिक्षा विभाग द्वारा त्योहारों की छुट्टी में कटौती को लेकर शिक्षक खासे नाराज है। शिक्षक संघ का मानना है कि बिहार का शिक्षा विभाग पूरी तरह से एक व्यक्ति पर केन्द्रित हो गया है। सारे पदाधिकारी, मंत्री, विधायक से लेकर महागठबंधन के नेताओं की फिलहाल बोलती बंद है। हालत ये है कि ये लोग गलत को गलत भी नहीं बोल पा रहे है। ये बातें बिहार पंचायत नगर प्रारंभिक शिक्षक संघ के प्रदेश वरीय उपाध्यक्ष प्रशांत कुमार ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कही। उन्होंने कहा कि जिस शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 की बात कर शिक्षा विभाग ने जो पत्र जारी किया है और अधिनियम में जो मानक तक किये गये हैं उसके अनुसार पहली से पांचवीं कक्षा के लिए दो सौ दिनों का कार्य दिवस एवं छठी कक्षा से आठवीं कक्षा के लिए दो सौ बीस दिनों का कार्य दिवस निर्धारित किया गया है। जबकि वर्तमान में बिहार के प्रारंभिक विद्यालयों (कक्षा एक से आठ) में वर्तमान में 253 दिनों के कार्य दिवस में बच्चों की पढ़ाई होती है।
प्रदेश वरीय उपाध्यक्ष ने बताया कि साल में 60 दिनों का छुट्टी प्रारंभिक विद्यालयों में वर्षों से मिलती आ रही है, इसके अलावे विद्यालयों में 52 अथवा तिरपन साप्ताहिक अवकाश कि छुट्टी हर वर्ष रहती है। कुल 365 दिनों में 113 दिन घटा दिया जाय तो साल में 252 या फिर एक सौ तिरपन कार्य दिवस को बच्चों के लिए विद्यालय खुले रहते हैं। यही नहीं शिक्षा के अधिकार अधिनियम में साल में प्रथम से पांचवीं तक के कक्षा में आठ सौ घंटे तो छठी से आठवीं तक के कक्षा में 1000 घंटे की पढ़ाई बच्चों को देनी है, मगर बिहार में शिक्षक कक्षा प्रथम से आठवीं की कक्षा में मानक से कहीं ज्यादा लगभग 1500 घंटे बच्चों को विद्यालय में रखकर पढ़ाने का कार्य करते हैं। जबकी भारत सरकार द्वारा संचालित केन्द्रीय विद्यालय संगठन में बिल्कुल मानक के हिसाब से पढ़ाई होती है और मानक के हिसाब से शिक्षकों का अवकाश निर्धारित है ,जो बिहार सरकार द्वारा पूर्व से दी जाने वाले अवकाश से कहीं अधिक है। इसलिए शिक्षा विभाग का ये कहना कि मानक के हिसाब से विद्यालय 220 कार्य दिवस से कम संचालित हो रहे हैं तो ये सरासर गलत है। शिक्षा विभाग समाज में भ्रम की स्थिति पैदा कर रहे हैं।
प्रदेश वरीय उपाध्यक्ष ने कहा कि शिक्षा विभाग ने जो तर्क देकर छुट्टी की कटौती की गई है ,उसमें कहा गया है कि चुनाव, परीक्षा, आपदा विभिन्न प्रकार की भर्ती परीक्षाओं के कारण विद्यालयों का पढ़न-पाठन का कार्य प्रभावित होता है, तो इसमें शिक्षक कहां से दोषी है। शिक्षक नेता ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि शिक्षा विभाग ऐसी व्यवस्था करे कि विद्यालय में पढ़न-पाठन प्रभावित नहीं हो, वह तो करेंगे नहीं, सिर्फ शिक्षकों में प्रताड़ित करने में लगे हुए हैं। उन्होंने कहा कि परीक्षा तो जिला मुख्यालय में कुछ ही विद्यालयों में संचालित होते हैं। दूसरी ओर 2023 में ना तो कोई ऐसी आपदा आयी है ना ही कोई चुनाव हुए हैं वाबजूद साल के आठ माह बाद छुट्टियों को रद्द करने का पत्र किसी बड़ी साजिश की ओर इशारा कर रहा है।
प्रदेश वरीय उपाध्यक्ष ने आशंका व्यक्त की है कि त्योहारों में छुट्टी रद्द करने के बहाने पीएम पोषण योजना (एमडीएम) में करोड़ों की हेराफेरी से इन्कार नहीं किया जा सकता है। राज्य के हजारों स्कूलों में भेन्डर के द्वारा भोजन दिया जाता है। त्योहार में बच्चे नहीं के बराबर विद्यालय पहुंचेंगे। दूसरी ओर शिक्षा विभाग विद्यालय में पचास प्रतिशत से कम की उपस्थिति कहीं से भी बर्दाश्त नहीं करने जा रही है, मजबूरी में विद्यालय प्रभारी त्योहारों के बीच भी बच्चों की उपस्थिति दिखायेंगे। ऐसे में त्योहारी सीजन में एमडीएम में होने वाली बड़ी गड़बड़ी से इन्कार नहीं किया जा सकता है और ये सब शिक्षा विभाग के आशिर्वाद के बगैर नहीं हो सकता है। रक्षाबंधन के दिन विद्यालयों में नगण्य उपस्थित थी, फिर भी अधिकांश विद्यालय प्रभारी मजबूरी में बच्चों की उपस्थिति दर्ज की है, ये क्या दर्शाता है? शिक्षक नेता ने माननीय मुख्यमंत्री से मांग की है कि छुट्टी रद्द होने से एक धर्म विशेष की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची है साथ ही पीएम पोषण योजना में गड़बड़ी करने वाले गिरोह की साजिश को समझते हुए अविलम्ब कटौती की गई छुट्टी के आदेश को निरस्त करवाया जाय अन्यथा शिक्षक संघ निर्णायक आन्दोलन की घोषणा कर सकती है।

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