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दो थे यार एक था अंधा और दूसरे को दिखता नहीं था : डॉ. महेंद्र शर्मा

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

विश्व के महानतम और विशाल प्रजातंत्र भारत की वर्तमान राजनैतिक स्थिति की सच्चाई।

पानीपत : शास्त्री आयुर्वेदिक अस्पताल के संचालक एवं प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य साहित्यकार डॉ. महेंद्र शर्मा से विशेष बातचीत में उन्होंने अपने विचार सांझा करते हुए बताया कि मुझे तो एक प्रश्न बड़ी बुरी तरह से परेशान कर रहा है कि हमारा धर्म खतरे में है, आम पार्टीजन के मुख से ही नहीं अपितु बड़े बड़े राजनीतिक मंचों से सुप्रीम नेता भी यही कहते हैं आपका मंगलसूत्र खींच लिया जाएगा तो हम यही समझेंगे कि शायद ईश्वर द्वारा प्रतिपादित वैदिक सनातन धर्म खतरे में है ल। यह भी सत्य है विश्व में सभी देशों में सभी राजनैतिक दल अपने वर्चस्व के लिए राजनैतिक तुष्टीकरण करते रहें हैं लेकिन मुद्दा यह हैं कि यह वैदिकधर्म 790 ईo से 1947 के 1235 वर्षों तक हमारा भारत देश इस्लाम और ईसाइयत का राजनैतिक और आर्थिक गुलाम रहा, 1526 ईo के बाद मुगलों के भारत में स्थाई तौर पर बसने के बाद जबरन धर्म परिवर्तन भी करवाए गए लेकिन सनातन आज भी जीवित रहा है तो फिर आज सनातन धर्म खतरे में कैसे हो सकता है , आज तो राष्ट्र में प्रजातंत्र है … न ही अंग्रेजों का शासन है न ही इस्लाम का l विषय अब जाकर समझ में आने लगा कि हमारा वैदिक धर्म खतरे में न होकर राजनैतिक धर्म खतरे में हैं हम केवल राजनैतिक वर्चस्व चाहते हैं जिसके लिए कुछ भी यहां तक कि वैदिक धर्म को भी दाव पर लगा सकते हैं।
आज तक भारतदेश में चुनाव में धांधलियों को लेकर इस चुनाव मशीन की मेनेजमेंट पर उंगली उठाता रहा है। हम तथाकथित सनातनी तो इससे भी आगे निकल गए हैं कि हमारे पास चुनाव परिणाम बदलने के और भी अप्रत्याशित हथकंडे हैं। प्रश्न यह है कि हम हर वक्त धर्म की बात करते हैं, क्या हमारा सनातन धर्म यही सिखाता है जो हम किए जा रहे हैं … क्या हमने परमात्मा धर्म, कर्म और प्रारब्ध पर विश्वास करना छोड़ कर दुर्योधनी राजनीति शुरू कर दी है। क्या हम जनता रूपी कृष्ण को भी मूर्ख समझने लगे हैं। साधारणतया पूरा भारत ई वी एम को लेकर राजनीति में सब कुछ सम्भव तो हो सकता है पर इस सम्भव की प्राप्ति के कोई प्रजातंत्रीय नैतिकता के कितने निम्नतम स्तर तक गिर सकता है इसकी कल्पना साधारणतया जनमानस नहीं कर सकता। प्रजातंत्र में सभी लोगों को खुश नहीं किया जा सकता इसलिए एक या दो टर्म के बाद सत्ता दूसरे के हाथ चली जाती है जिसे एंटी इंकैंबैंसी कहा जाता है, लेकिन देश की राजनीति में इतने गम्भीर विरोध के बाद ऐसा घटित नहीं हो रहा था। हम हरियाणा के वासी है तो हम तो अपने प्रदेश की बात करेंगे। वर्तमान सत्ताधारी चुनाव से पहले कांग्रेस की सरकार बनने की न केवल बात कर रहे थे बल्कि कांग्रेसियों को अग्रिम शुभकामनाएं और बधाईयाँ दे रहे थे। यहीं हरियाणा के चुनाव के नतीजों से आम लोगों की बात छोड़िए यहां तो पूरा मीडिया जगत हतप्रभ था य़ह कैसे हो सकता है … लेकिन यह हुआ हो गया या कर दिया गया … यह भगवान जानें।
चुनाव आयोग की प्रमाणिकता पर जो प्रश्न उठ रहे हैं वह भारतीय प्रजातंत्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। चुनाव आयोग ने ही राहुल गांधी को जो दस्तावेज दिए हैं उन पर जो राहुल गांधी ने नेता प्रतिपक्ष होने के नाते पड़ताल कर के जो तथ्य और सच उजागर किया है वह किसी भी प्रजातंत्र के लिए एक गम्भीर चिंतन का विषय है और सब से हास्यास्पद विषय तो यह कि आयोग के स्वयं के द्वारा दिये गये दस्तावेजों की सत्यता पर राहुल गांधी से शपथपत्र दाखिल करने को कह रहा है … और सत्ताधारी दल चुनाव आयोग का वकील बन कर आयोग के बचाव की बात कर रहा है। इन दोनों को चाहिए था कि चुनाव आयोग इस बात की जांच और दस्तावेजों की प्रमाणिकता के लिए माननीय उच्चतम न्यायालय से गुहार लगाता कि माननीय उच्चतम न्यायलय राहुल गांधी द्वारा दिए गए तथ्यों की जांच कर आयोग जो एक स्वतंत्र वैधानिक संस्था है उसकी वैधानिक रक्षा करें। चुनाव आयोग ही स्पष्ट करे कि एक बी एच के रूम में 80 वोटर कैसे हो सकते हैं। किसी वोटर का निवास स्थान नंबर शून्य कैसे हो सकता है। डिजिटल वर्ल्ड में एक वोटर चार स्थानों पर पंजीकृत कैसे हो सकता है और किसी वोटर के पिता या पति का नाम इंग्लिश अल्फाबेटिकली abcxyz कैसे हो सकता है।
70 वर्षीय बुजुर्ग महिला फॉर्म 6 भर कर फर्स्ट टाइम वोटर कैसे हो सकती है और वह भी दो स्थानों से … Utube पर इससे और अधिक हास्यास्पद बात तो यह देखने को मिल रही है एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति के 37 बच्चे हैं जिनकी आयु में 6 महीने का अन्तर है। भारत की अर्थव्यवस्था के विकास हुआ हो या नहीं लेकिन फर्टिलिटी के मामले यह सिद्ध हो गया कि Indian beds are more fertile than Indian Land के विकास के फलस्वरूप अब भारत में बच्चे 6/ 6 महीनों में पैदा होने लगे हैं। चुनाव आयोग यह मान कर चल रहा था कि इतने कागज़ों और दस्तावेजों की जांच कौन करेगा लेकिन राहुल गांधी ने ऐसी तबियत से आसमान में सिक्का उछाला की उसमें छेद हो गया जिसकी उम्मीद चुनाव आयोग नहीं कर रहा था कांग्रेस ने सघन जांच कर के दूध का दूध पानी का पानी कर दिया।
दुर्योधन भी धर्म को जानता था लेकिन मानता नहीं था, रावण भी त्रिकालदर्शी था लेकिन अभिमानी था , हयग्रीव भी वेदों का अपहरण कर समुद्र में छुप गया था, हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु भी अपनी पूजा करवाना चाहते थे … इतिहास में इन्हें कैसे याद किया जाता है, क्या कोई इनके कृत्यों की वंदना करता है, क्या किसी ने आजतक भ्रातृ और राष्ट्रद्रोह के कारण अपने बालक का नाम विभीषण दुर्योधन और दुशासन रखा। हम सभी जानते है कि सभी को कालग्रास बनना है , लेकिन ईश्वर ने सभी को बुद्धि और विवेक दिया है, यदि हम विवेकी बनेंगे तो दुनियां हमें सदा याद रखेगी देखिए न राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के 80 से अधिक देशों में स्मृति स्मारक है… क्यों और कैसे? हम तो अपने पूर्वजों के कृत्यों पर प्रश्नचिन्ह लगाने में मसरूफ हैं यह बताएँ कि जब वह गलतियां कर रहे थे तो आप चुप क्यों थे और किन की वकालत कर रहे थे।
आचार्य डॉ. महेन्द्र शर्मा ‘महेश’।

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