दुष्यंत कुमार हिंदी साहित्य के विरले नक्षत्र थे श्याम लाल राही को मिला दुष्यंत कुमार साहित्य सम्मान

दुष्यंत कुमार हिंदी साहित्य के विरले नक्षत्र थे श्याम लाल राही को मिला दुष्यंत कुमार साहित्य सम्मान

दीपक शर्मा (संवाददाता)

बरेली : मानव सेवा क्लब और शब्दांगन संस्था के संयुक्त तत्वावधान में शुक्रवार को बिहारीपुर स्थित इन्द्र देव त्रिवेदी के आवास पर हिन्दी ग़ज़ल के महानायक दुष्यंत कुमार की 91वीं जयंती पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें वरिष्ठ साहित्यकार श्याम लाल राही को उनके साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए दुष्यंत कुमार स्मृति साहित्य सम्मान दिया गया। सम्मान स्वरूप शाल,प्रशस्ति -पत्र, स्मृति चिन्ह और 2100 रु. की नकद राशि मानव सेवा क्लब के अध्यक्ष सुरेन्द्र बीनू सिन्हा, विशिष्ट अतिथि रमेश गौतम, शब्दांगन के अध्यक्ष डॉ. सुरेश रस्तोगी और इन्द्र देव त्रिवेदी ने प्रदान किया। अतिथि प्रसिद्ध साहित्यकार रमेश गौतम ने कहा दुष्यंत कुमार हिंदी साहित्य के आकाश के विरले नक्षत्र थे। उन्होंने अपनी ग़ज़लों में मनुष्य के सरोकारों, प्रतिरोधों तथा समय व समाज की विसंगतियों तथा विडंबनाओं को जिस तरह अभिव्यक्ति दी,उसका अपना कोई सानी नहीं है। कवि गजलकार डॉ. अवनीश यादव ने दुष्यंत की ग़ज़लों का वाचन करते कहा कि दुष्यंत के बाद से हिंदी में ग़ज़ल का चेहरा जिस प्रकार से ‘हिंदी ग़ज़ल’ में परिवर्तित हो गया,वह‌‌ एक विलक्षण साहित्यिक घटना है।दुष्यंत कुमार की जयंती पर श्रद्धांजलि स्वरूप उन्हीं ही की गज़लों का वाचन किया गया। प्रमोद मिश्रा ने उनकी गजल पढ़ी कि नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है। दूसरा शेर शायर रामकुमार भारद्वाज अफ़रोज़ ने पढ़ा कि ‘ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा’ ” मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा।” शायर रणधीर प्रसाद गौड़ धीर ने उनका शेर पढ़ा कि”मौत ने तो धर दबोचा एक चीते की तरह ज़िंदगी ने जब छुआ तो फ़ासला रखकर छुआ’.उनका प्रसिद्ध शेर को शायर रामप्रकाश सिंह ओज ने पढ़ा कि ‘मत कहो, आकाश में कुहरा घना है’। इनके अतिरिक्त भी कई सहित्यकारों ने उनकी गजलों से उन्हें श्रद्धांजलि दी।कार्यक्रम में महासचिव सत्येंद्र कुमार सक्सेना, डॉ. सुरेश रस्तोगी,रणधीर प्रसाद गौड़, निर्भय सक्सेना ,आचार्य मेधावृत, शास्त्री, नितिन शर्मा,दीपक शर्मा, गजलराज, विनोद गुप्ता,विशाल शर्मा, उपमेंद्र सक्सेना सहित अनेक लोग मौजूद रहे।संचालन इंद्र देव त्रिवेदी ने किया। आभार सत्येंद्र सक्सेना ने व्यक्त किया।

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