गुरु पुष्य नक्षत्र योग द्वारा जन्मकुण्डली में निर्बल गुरु को बलवान करने का उत्तम उपाय : डा. महेंद्र शर्मा

गुरु पुष्य नक्षत्र योग द्वारा जन्मकुण्डली में निर्बल गुरु को बलवान करने का उत्तम उपाय : डा. महेंद्र शर्मा।

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
दूरभाष – 9416191877

गुरु पुष्य योग का लाभ कैसे उठाए।
28 जुलाई का बन रहा गुरु पुष्य नक्षत्र का महत्वपूर्ण योग।
देव गुरु बृहस्पति प्रसन्न तो सभी ग्रह प्रसन्न : डा. महेंद्र शर्मा।

पानीपत : उत्तर भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य एवं शास्त्री आयुर्वेदिक अस्पताल के संचालक डा. महेंद्र शर्मा ने ज्योतिष शास्त्र में देव गुरु को प्रसन्न और बलवान करने के उपाय के बारे में चर्चा करते हुए बताया की हम सनातन धर्मी जनमानस अपने समस्त सुकृत्यों के लिये पञ्चाङ्ग से शुभ और शुद्ध मुहूर्त ग्रहण कर ही कार्य सम्पादित करते हैं। लेकिन कई बार समस्या आ जाती है कि शुभ मुहूर्त की हम अधिक दिन तक प्रतीक्षा नहीं कर सकते तो हम पञ्चाङ्ग में वर्णित कुछ सुयोगों का अनुकरण करते हैं… सर्वार्थसिद्धि योग अमृत योग रवि पुष्य योग गुरु पुष्य योग द्विपुष्कर योग और त्रिपुष्कर योग …
आज हम कल घटित होने गुरूपुष्य योग की चर्चा को आगे विस्तार दें कि जन्मकुण्डली में विराजित गुरु को कैसे बलवान करें। गुरु ग्रह की दृष्टिं में जहां बहुत से सद्गुण हैं वहीं एक दोष भी है, जहां गुरु विराजित हो जाते हैं उस भाव के शुभ फलों में न्यूनता आ जाती है…”स्थान हानि करोतु जीवे..” यदि स्वग्रही मित्रक्षेत्री उच्चस्थ गुरु द्वितीय भावस्थ हों तो जातक विद्वान गुणज्ञ वाणी में सौम्यता सौहृदयी परिवार का मुखिया नेतृत्वकर्ता अवश्य हो जाता है लेकिन धन का क्षेत्र कमज़ोर हो जाता है। सप्तम भाव मे वैवाहिक सुखों में व्यापार में भागीदारी क्षेत्र प्रभावित हो जाते हैं, दशम भाव का गुरु जातक को व्यवसाय की सफलता में खूब संघर्ष करवाता है , यद्यपि एकादश भाव में सभी ग्रह बढ़िया माने गए हैं लेकिन ज्योतिष मर्मज्ञ यह भी कहते हैं कि आय में अपेक्षित लाभ नहीं मिलेगा। आज के भौतिक युग में जीवनयापन के लिये इन 4 भावों का प्रबल होना अत्यावश्यक बताया गया है। जन्मकुण्डली में यदि देवगुरु बृहस्पति निर्बल हैं 0* से 5* पर बाल्यावस्था में हैं या 26* से 30* तक तो यह वृद्धावस्था में हैं, नीचस्थ हैं या शत्रु राशि गत या त्रिक भाव में हैं तो उन भावों के शुभ फलों में भी त्रुटि और न्यूनता आ जाती है जिससे जीवन के उन क्षेत्रों के फल में न्यूनता आती हैं जिनमें देवगुरु बृहस्पति विराजित होते हैं। डा. महेंद्र शर्मा ने बताया की जन्मकुण्डली में मेष कर्क सिंह वृश्चिक धनु और मीन लग्न में गुरु को प्रबल योगकारक माना गया है। यदि मूल त्रिकोण के स्वामी गुरु नीचस्थ शत्रु राशि गत या त्रिक भावस्थ या अंश कम हो तो गुरु का बल शुभता और कृपा प्राप्त करने के लिये वैदिक ज्योतिष में यह उपाय किये जाते हैं जिनमें मुख्य बृहस्पति ग्रह के बीज मन्त्र , गुरु गायत्री , बृहस्पति वार के व्रत वृधोपसेविना और बृहस्पति के रत्न पुखराज को धारण किया जाता हैं। सभी चातक याचकों सब कुछ बहुत आसान हो सकता है लेकिन शुद्ध पुखराज खरीदना हर किसी के लिये सम्भव नहीं। इस पुखराज नग का स्थानापन्न यन्त्र है केले की जड़। इस उपाय के गुरुपुष्य नक्षत्र योग श्रेष्ठतम माना जाता है। किसी भी वर्ष में गुरु पुष्य नक्षत्र योग 2 या 3 बार आता है। इस वर्ष एक योग तो गत माह जून में चला गया है। एक योग कल 28 जुलाई 2022 गुरुवार को कल प्रातः 7/05 बजे से प्रारम्भ हो कर पूरा दिन अगले दिन सूर्योदय तक व्याप्त रहेगा। जन्मकुण्डली में गुरु के दोष से चातक और याचक कल प्रातः गुरु बीज मंत्रों का जाप करते हुए केले के पेड़ को सुवासित जल में हल्दी चने की दाल अक्षत और गुड़ से सींचते हुए गुरु से बल प्राप्त करने की प्रार्थना करें और केले की जड़ को प्राप्त करने की अनुमति लें। मध्याह्न में केले की जड़ को खुरपे से निकाल कर गंगाजल से शोधित कर के गोल्डन येलो कपड़े में सिलाई कर के बाजूबन्द या गले में कण्ठी बना कर धारण करें, या इसको चांदी की डिब्बी में मड़वा कर धारण करें। इस से दूषित और पीड़ित गुरु ग्रह के समस्त दोष शान्त हो जाते हैं और गुरु ग्रह की अनुकूलता प्राप्त की जा सकती है।
आचार्य डॉ. महेन्द्र शर्मा “महेश” शास्त्री वैदिक ज्योतिष संस्थान
पानीपत दूरभाष : 9215700495

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