उत्तराखंड देहरादून पुण्य तिथि पर याद किए गए हिमवंतकवि चंद्र कुंवर चंद्र

उत्तराखंड देहरादूनपुण्य तिथि पर याद किए गए हिमवंतकवि चंद्र कुंवर चंद्र
उत्तराखंड देहरादून
पुण्य तिथि पर याद किए गए हिमवंतकवि चंद्र कुंवर चंद्र बर्त्वाल,
सागर मलिक
रामनगर में हिंदी के वरिष्ठ कवि चंद्रकुंवर बर्त्वाल को उनकी उनासवीं पुण्यतिथि पर उनकी कविताओं के साथ याद किया गया।साहित्यिक संस्था दुदबोली की पहल पर पर्वतीय सभी लखनपुर में हुए कार्यक्रम में
वक्ताओं ने बर्त्वाल के जीवन और उनके साहित्य पर प्रकाश डाला।
१९३९ में ही इनकी कवितायें “कर्मभूमि” साप्ताहिक पत्र में प्रकाशित होने लगी थी, इनके कुछ फुटकर निबन्धों का संग्रह “नागिनी” इनके सहपाठी श्री शम्भूप्रसाद बहुगुणा ने प्रकाशित कराया। बहुगुणा जी ने ही १९४५ में “हिमवन्त का एक कवि” नाम से इनकी काव्य प्रतिभा पर एक पुस्तक भी प्रकाशित की। इनके काफल पाको गीति काव्य को हिन्दी के श्रेष्ठ गीति के रूप में “प्रेमी अभिनन्दन ग्रन्थ” में स्थान दिया गया। इनकी मृत्यु के बाद बहुगुणा के सम्पादकत्व में “नंदिनी” गीति कविता प्रकाशित हुई, इसके बाद इनके गीत- माधवी, प्रणयिनी, पयस्विनि, जीतू, कंकड-पत्थर आदि नाम से प्रकाशित हुये।
कुमाउनी कवि निखिलेश उपाध्याय ने कहा बर्त्वाल जीवन के अंतिम समय में टीवी के मरीज हो गए और उस समय टीवी को असाध्य बीमारी माना जाता था पर इसके बाबजूद उन्होंने न केवल प्रकृति पर बल्कि राजनीति पर भी काफी उच्च कोटि की कविताएं लिखी हैं।
कुमाउनी पत्रिका दुदबोली के संपादक मंडल के सदस्य नवेंदु मठपाल ने चंद्रकुंवर के काव्य की प्रासंगिकता को सर्वकालिक बताते हुए युवाओं से जीवन और साहित्य के बारे में जानने की अपील की। कहा आज उनके प्रकाशित साहित्य को जहां एक ओर जन-जन तक पहुंचाने की जरूरत है। वहीं दूसरी ओर उनके अप्रकाशित साहित्य को खोज कर प्रकाशित करने की आवश्यकता है।
इस मौके पर उनकी कविताओं मुझको पहाड़ ही प्यारे है,मेघकृपा, आओ हे नवीन युग, मैकाले के खिलौने,उस दिन के बादल आदि का वाचन करने के साथ साथ
वरिष्ठ साहित्यकार मथुरादत्त मठपाल द्वारा चंद्रकुंवर बर्त्वाल की हिंदी से कुमाऊनी अनूदित कविताओं की पुस्तिका था मेरा घर भी यहीं कहीं से भी कविताओं का पाठ किया गया।इस मौके पर प्रो गिरीश चंद्र पंत,निखिलेश उपाध्याय,नवेंदु मठपाल,भुवन चंद्र पपने,नंदराम आर्य,सी पी खाती ,दिनेश रावत,बालकृष्ण चंद,प्रकाश पांडे मौजूद रहे।
प्रो गिरीश चंद्र पंत ने कहा बर्त्वाल ने 28 साल की उम्र में जितना साहित्य रचा वह विश्वस्तरीय है। हिंदी के वरिष्ठ कवि निराला तक ने उनकी कविताओं की प्रशंसा की। मात्र 28 साल की उम्र में हिंदी साहित्य को अनमोल कविताओं का समृद्ध खजाना दे दिया था। समीक्षक चंद्र कुंवर बर्त्वाल को हिंदी का ‘कालिदास’ मानते हैं। उनकी कविताओं में प्रकृति प्रेम झलकता है।