जिस भूमि में जैसे कर्म किए जाते हैं, वैसे ही संस्कार वह भूमि भी प्राप्त कर लेती है : महंत जगन्नाथ पुरी

जिस भूमि में जैसे कर्म किए जाते हैं, वैसे ही संस्कार वह भूमि भी प्राप्त कर लेती है : महंत जगन्नाथ पुरी।
वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
हर धरती पर की गई पूजा एवं तपस्या का अपना महत्व होता है।
कुरुक्षेत्र, 14 अप्रैल : मारकंडा नदी के तट पर स्थित श्री मारकंडेश्वर महादेव मंदिर में सोमवार का दिन होने के कारण बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। श्री मारकंडेश्वर जनसेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत जगन्नाथ पुरी ने सोमवार को शिव मंदिर में श्रद्धालुओं के साथ पूजा अर्चना एवं अभिषेक करने के उपरांत बताया कि मेष संक्रांति होने के कारण आज का दिन विशेष है। उन्होंने कहा कि किसानों की फसलों की कटाई शुरू हो चुकी है तो श्री मारकंडेश्वर महादेव मंदिर में किसानों की फसलों के बचाव के लिए भी निरंतर पूजन किया जा रहा है। महंत जगन्नाथ पुरी ने कहा कि हर स्थान की मिट्टी का भी प्रभाव होता है। जिस भूमि में जैसे कर्म किए जाते हैं, वैसे ही संस्कार वह भूमि भी प्राप्त कर लेती है। इसलिए गृहस्थ को अपना घर सदैव पवित्र रखना चाहिए। महंत जगन्नाथ पुरी ने कहा कि मारकण्डेय पुराण में एक कथा आती है कि भगवान श्री राम, लक्ष्मण, माता सीता जब वन में प्रवास कर रहे थे। मार्ग में एक स्थान पर लक्ष्मण का मन कुभाव से भर गया, मति भ्रष्ट हो गई। वे सोचने लगे, माता कैकेयी ने तो वनवास राम को दिया है मुझे नहीं। मैं राम की सेवा के लिए कष्ट क्यों उठाऊं? भगवान राम जी ने लक्ष्मण से कहा कि लक्ष्मण इस स्थल की मिट्टी अच्छी दिखती है, थोड़ी बांध लो। लक्ष्मण ने एक पोटली बना ली। मार्ग में जब तक लक्ष्मण उस पोटली को लेकर चलते थे तब तक उनके मन में कुभाव ही बना रहता था। किन्तु जैसे ही रात्रि में विश्राम के लिए उस पोटली को नीचे रखते उनका मन भगवान श्री राम व सीता माता के लिए ममता और भक्ति से भर जाता था। 2-3 दिन यही क्रम चलता रहा, जब कुछ समझ नही आया तो लक्ष्मण ने इसका कारण राम जी से पूछा। भगवान श्रीराम ने कारण बताते हुए कहा हे भाई, तुम्हारे मन के इस परिवर्तन के लिए दोष तुम्हारा नहीं बल्कि उस मिट्टी का प्रभाव है। जिस भूमि पर जैसे काम किए जाते हैं उसके अच्छे बुरे परिणाम उस भूमि भाग में और वातावरण में भी छूट जाते हैं। जिस स्थान की मिट्टी इस पोटली में है, वहां पर सुंद और उपसुंद नामक दो राक्षसो का निवास था। उन्होंने कड़ी तपस्या के द्वारा ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके अमरता का वरदान मांगा। ब्रह्मा जी ने उनकी मांग तो पूरी की किन्तु कुछ नियन्त्रण के साथ। उन दोंनो भाइयो में बड़ा प्रेम था। इस लिए उन्होंने कहा कि हमारी मृत्यु केवल आपसी विग्रह से ही हो सके। ब्रह्माजी ने वर दे दिया। वरदान पाकर दोनों ने सोचा कि हम कभी आपस में झगड़ने वाले तो नही हैं। इस लिए अमरता के अहंकार में देवों को सताना शुरु कर दिया। जब देवों ने ब्रह्माजी का आश्रय लिया तो ब्रह्माजी ने तिलोत्तमा नाम की अप्सरा का सर्जन करके उन असुरों के पास भेजा। सुंद और उपसुंद ने जब इस सौंदर्यवती अप्सरा को देखा तो कामांध हो गए। तुम मेरी हो और अपनी अपनी कहने लगे। तब तिलोत्तमा ने कहा कि मैं तो विजेता के साथ विवाह करूंगी।
तब दोनो भाईयो ने विजेता बनने के लिए ऐसा घोर युद्ध किया कि दोनो आपस मे लड़ के मर गए। वे दोनों असुर जिस स्थान पर झगड़ते हुए मरे थे, उसी स्थान की यह मिटटी है। इसलिए इस मिट्टी में भी द्वेष, तिरस्कार, और वैर का सिंचन हो गया है। पूजन में स्वामी पृथ्वी पुरी, स्वामी संतोषानंद, स्वामी अमर दास, बिल्लू पुजारी, आकाश पुरी, करुणानंद, जस्सा सिंह, नाजर सिंह, दीप कौर, राजेश्वरी एवं कमला इत्यादि भी मौजूद रहे।
मंदिर में आराधना करते हुए स्वामी पृथ्वी पुरी।