भारत ने विकास में महिलाओं की सबसे अहम भूमिका : प्रो. संजीव शर्मा।
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स्वस्थ भारत के निर्माण में महिलाओं का अहम योगदान : डॉ. बलदेव धीमान।
प्राचीन काल से ही शास्त्रों में नारी का स्थान बहुत ऊंचा : डॉ. मिनाक्षी शर्मा।
कुवि के डॉ. बीआर अम्बेडकर अध्ययन केन्द्र द्वारा सीनेट हॉल में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का सफल समापन।
कुरुक्षेत्र, 26 फरवरी: भारत ने विकास में महिलाओं की सबसे अहम भूमिका रही है लेकिन उनके साथ भेदभाव घर से ही शुरू होता है। महिलाओं को घर मे सम्मान देने एवं बराबर का अधिकार देने की आवश्यकता है। यह विचार कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. संजीव शर्मा ने कुवि के डॉ. बीआर अम्बेडकर अध्ययन केन्द्र द्वारा सीनेट हॉल में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार ’डा अम्बेडकर एवं महिला सशक्तिकरण’ के समापन सत्र में बतौर कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि डॉ. अम्बेडकर ने आधुनिक भारत की नींव रखते हुए भारतीय संविधान में महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता के सिद्धांतों को शामिल किया था जो महिलाओं की गरिमा को बहाल करने की दिशा में अम्बेडकर के दर्शन का एक है। इस सेमिनार के सफल आयोजन करने के लिए कुलसचिव प्रो. संजीव शर्मा ने डॉ. अम्बेडकर अध्ययन केन्द्र के निदेशक प्रो. गोपाल प्रसाद एवं सहायक निदेशक डॉ. प्रीतम सिंह एवं उनकी टीम को बधाई दी। इस अवसर पर कार्यक्रम का शुभारम्भ कुवि कुलसचिव प्रो. संजीव शर्मा, आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बलदेव धीमान, नेशनल मारकण्डा कॉलेज शाहबाद के प्राचार्य डॉ. अशोक चौधरी एवं धर्मजीवी इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल एजुकेशन, कुरुक्षेत्र की सहायक प्रोफेसर मीनाक्षी शर्मा ने मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर किया।
इस अवसर पर मुख्यातिथि आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बलदेव धीमान ने कहा कि महिलाओं के स्वास्थ्य पर प्रकाश डालते हुए बताया कि स्वस्थ भारत के निर्माण में महिलाओं का अहम योगदान है इसलिए महिलाओं को स्वस्थ रखने की बहुत आवश्यकता है ताकि महिलाओं मानसिक एवं शारीरिक तौर पर सशक्त किया जा सके।
कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि डॉ. मिनाक्षी शर्मा ने बताया कि प्राचीन काल से ही शास्त्रों में नारी का स्थान बहुत ऊंचा माना गया है। शास्त्रों में भी कहा गया है कि जहां नारियां की पूजा होती है वही देवता निवास करते है और जहां उनका मान-सम्मान नहीं होता वहां सारी क्रियांए निष्फल हो जाती है और प्रगति रुक जाती है। उन्होंने बताया कि वैदिक काल में महिलाओं को पुरुषों के बराबर के अधिकार प्राप्त थे, लेकिन उत्तर वैदिक काल में महिला की स्थिति में गिरावट आई और मध्यकाल में सती प्रथा, बाल विवाह, कन्या वध आदि बुराईयां महिला समाज में उत्पन्न हुई।
डॉ अम्बेडकर ने महिलाओं के इस दुःख दर्द को जानते हुए इस उद्देश्य के लिए वे बम्बई असेम्बली में प्रसूति अवकाश जैसे अनेक सुधार लेकर आये। उन्होंने भारतीय संविधान की रचना करते समय इस बात पर बल दिया कि महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार मिलें। जब वे भारत के कानून मंत्री बने तो हिन्दू कोड बिल लेकर आये जो संसद में कुछ कट्टरपंथी सांसदों के विरोध के चलते पास नही हो सका। लेकिन उनकी मृत्यु के पश्चात इस बिल को चार भागो में बांटकर पास किया गया। उन्होंने बताया कि महिलाएं आज जिस मुकाम है उसका श्रेय संविधान निर्माता डॉ अम्बेडकर को जाता है।
इस सत्र के मुख्य वक्ता डॉ अनिल दत्ता मिस्र, भूतपूर्व डिप्टी डारेक्टर नेशनल गांधी म्युजियम नई दिल्ली कहा कि डॉ भीमराव अम्बेडकर अपने दौर के सबसे बड़े विद्वान थे। उन्होंने महिलाओं को समानता का अधिकार दिलाने के लिये संविधान में अनेक प्रावधान किये। उनके महात्मा गांधी ने कई बार मतभेद हुए लेकिन गांधी की सिफारिश पर डॉ. अम्बेडकर को स्वतंत्र भारत का पहला कानून मंत्री बनाया गया क्योंकि वे जानते थे डॉ अम्बेडकर जैसा विद्वान कोई और नहीं है।
इस सत्र की शुरुआत में कुवि के डॉ. अम्बेडकर अध्ययन केन्द्र के निदेशक प्रो. गोपाल प्रसाद ने बताया कि इस सेमिनार में 120 शोध पढ़े गए जिसका चार तकनीकी सत्रों में आयोजन किया गया था। इसी सेमिनार में ‘डॉ अम्बेडकर : महिलाओं के विशेष संदर्भ में’ नामक पुस्तक का भी विमोचन किया गया।
कार्यक्रम में प्राचार्य डॉ. अशोक चौधरी ने महिलाओं की समस्याओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। कार्यक्रम के अंत में आईआईएचएस के सहायक प्रो. डॉ. वीरेन्द्र पाल ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर प्रो. जोगेन्द्र सिंह, प्रो कृष्णा रंगा, डॉ. प्रीतम सिंह, डॉ. कुलदीप सिंह, डॉ. कामराज सिन्धु, डॉ. रामचन्द्र, डॉ. सुभाष चन्द्र, प्रियंका मोर सहित लगभग 150 से अधिक शोधार्थी, विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं कॉलेजों से आए शिक्षक, विद्यार्थी आदि उपस्थित थे।