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उत्तराखंड: हरिद्वार जमीन घोटाले की जांच पूरी, तीन बड़े अधिकारी संदेह के घेरे में

उत्तराखंड: हरिद्वार जमीन घोटाले की जांच पूरी, तीन बड़े अधिकारी संदेह के घेरे में,
सागर मलिक

हरिद्वार में नगर निगम पर कूड़े के ढ़ेर के पास स्थित अनुपयुक्त और सस्ती 35 बीघा कृषि भूमि को बिना आवश्यकता 54 करोड़ रुपये में खरीदने का आरोप लगा था।

हरिद्वार में करोड़ों की जमीन घोटाले की जांच पूरी हो गई है। जांच अफसर आईएएस रणवीर सिंह चौहान ने अपनी रिपोर्ट शासन को सौंप दी। इसमें तीन बड़े अधिकारी संदेह के घेरे में हैं। अब सरकार को जांच रिपोर्ट के आधार पर जमीन घोटाले पर निर्णय लेना है।

हरिद्वार में नगर निगम पर कूड़े के ढ़ेर के पास स्थित अनुपयुक्त और सस्ती 35 बीघा कृषि भूमि को बिना आवश्यकता 54 करोड़ रुपये में खरीदने का आरोप लगा था। बताया गया कि उस समय जमीन का लैंड यूज कृषि होने के कारण सर्किल रेट करीब 6,000 रुपये प्रति वर्ग मीटर था।

कृषि भूमि के रूप में इस भूमि की कुल कीमत करीब 15 करोड़ रुपये होती, लेकिन इसका लैंड यूज व्यावसायिक कराया गया। इसके बाद जमीन को नगर निगम ने खरीद लिया। आरोप था कि जमीन खरीद में न तो नगर निगम अधिनियम का पालन हुआ, न ही शासन के नियमों का। पारदर्शी बोली प्रक्रिया नहीं अपनाई गई, जो सरकारी खरीद नियमों का खुला उल्लंघन है।

सीएम पुष्कर सिंह धामी ने मामले की जांच सचिव रणवीर सिंह चौहान को सौंपी थी। आईएएस चौहान ने मौके पर पहुंचकर संबंधित अधिकारियों, जमीन से जुड़े पक्षों समेत 24 लोगों के बयान दर्ज किए। उन्होंने नियम, पत्रावली, प्रक्रिया को बारीकी से देखा। बृहस्पतिवार को अपनी रिपोर्ट सचिव शहरी विकास नितेश झा को सौंप दी। सूत्रों के मुताबिक, उन्होंने अपनी जांच में डीएम, नगर आयुक्त, एसडीएम की भूमिका को संदेहास्पद बताया है। अब सरकार इस रिपोर्ट का अध्ययन कराने के बाद फैसला लेगी। सचिव शहरी विकास नितेश झा ने बताया कि उन्हें जांच रिपोर्ट मिल गई है। रिपोर्ट का अध्ययन कर आगे की कार्रवाई की जाएगी।

अब तक ये हो चुकी कार्रवाई
जांच अधिकारी नामित करने के बाद इस घोटाले में नगर निगम के प्रभारी सहायक नगर आयुक्त रविंद्र कुमार दयाल, प्रभारी अधिशासी अभियंता आनंद सिंह मिश्रवाण, कर एवं राजस्व अधीक्षक लक्ष्मीकांत भट्ट व अवर अभियंता दिनेश चंद्र कांडपाल को प्रथम दृष्टया दोषी पाए जाने पर निलंबित कर दिया गया था। संपत्ति लिपिक वेदवाल का सेवा विस्तार भी समाप्त कर दिया गया था। सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें सेवा विस्तार दिया गया था। उनके खिलाफ सिविल सर्विसेज रेगुलेशन के अनुच्छेद 351(ए) के प्रावधानों के तहत अनुशासनिक कार्रवाई के लिए नगर आयुक्त को निर्देश दिए गए थे।

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