सीमित सरकार, मानव अधिकार, गणतंत्रवाद तथा कल्याणवाद ही लोकतंत्र के वास्तविक आधार: प्रो. राजवीर सिंह यादव

सीमित सरकार, मानव अधिकार, गणतंत्रवाद तथा कल्याणवाद ही लोकतंत्र के वास्तविक आधार: प्रो. राजवीर सिंह यादव।

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
दूरभाष – 9416191877

लोकतंत्र केवल प्रशासनिक व्यवस्था मात्र नहीं बल्कि लोकतंत्र एक महत्वपूर्ण और उच्च आदर्श है: प्रो. संजीव कुमार।
कुवि के राजनीति शास्त्र विभाग द्वारा ‘लोकतांत्रिक आदर्शों तथा सुशासन’ विषय पर एक दिवसीय वेबिनार आयोजित।

कुरुक्षेत्र, 3 अक्टूबर : कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के मानव संसाधन विकास केंद्र तथा राजनीति शास्त्र विभाग के संयुक्त तत्वावधान में सोमवार को ‘लोकतांत्रिक आदर्शों तथा सुशासन’ विषय पर एक दिवसीय वेबिनार का आयोजन किया गया। इस अवसर पर बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय, रोहतक के कुलपति प्रोफेसर राजवीर सिंह यादव ने लोकतंत्र के प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक के विकास पर प्रकाश डाला। लोकतंत्र की विश्व में दशा और दिशा की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों, मौलिक अधिकारों तथा मौलिक कर्तव्यों में लोकतंत्र की विकसित अभिव्यक्ति देखने को मिलती है। उन्होंने लोकतंत्र के चार आधारभूत स्तम्भों की चर्चा करते हुए बताया कि सीमित सरकार, मानव अधिकार, गणतंत्रवाद तथा कल्याणवाद ही लोकतंत्र के वास्तविक आधार हैं।
वेबीनार के दूसरे विशेषज्ञ वक्ता के रूप में प्रोफेसर महेंद्र सिंह ने स्थानीय स्वशासन और लोकतांत्रिक आदर्श के संदर्भ में बोलते हुए कहा कि संविधान के द्वारा तथा राजनीतिक व्यवस्था के द्वारा कई स्तरों पर सुशासन के संदर्भ में प्रयास किए गए हैं परंतु आज़ादी के 75 साल बाद भी बहुत-सी ऐसी सामान्य सुविधाएं हैं जिनकी प्राप्ति के लिए हम अभी भी प्रयासरत हैं। उन्होंने कहा कि सुशासन के मार्ग में आने वाली समस्याओं का जिक्र करते हुए कहा कि आज भी देश के बहुत से क्षेत्रों के लिए धन की कमी की समस्या, प्रशासनिक इच्छा की समस्या, भ्रष्टाचार की समस्या तथा पारदर्शिता का अभाव आदि बाधाएं हैं। इन बाधाओं से पार पाने के लिए हम सबको अपने अधिकारों के साथ कर्तव्यों को समझना होगा और प्रशासनिक अधिकारियों को भी सिविल सर्वेंट या पब्लिक सर्वेंट की परिभाषा को नए सिरे से आत्मसात करना होगा।
गुरुग्राम विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान तथा लोक प्रशासन विभाग की अध्यक्षा डॉ. अन्नपूर्णा शर्मा ने लोकतंत्र के विभिन्न प्रकार और उनकी विशेषताओं का उल्लेख करते हुए बताया कि लोकतंत्र के अर्थ अलग-अलग संदर्भों में तथा विभिन्न समाजों में अलग-अलग ग्रहण किए जाते हैं। उन्होंने कहा कि भारत में लोकतंत्र हमेशा से रहा है प्राचीन काल में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं। उन्होंने कहा कि जब सामान्य नागरिक के आक्षेप के बाद राजाओं को जनमत का सम्मान करते हुए जनता की इच्छा का पालन करना पड़ा था और जनमत का सम्मान करते हुए अपनी इच्छाओं का त्याग करना पड़ा था।
वेबीनार के समापन सत्र के प्रमुख वक्ता महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार के पूर्व कुलपति तथा मेरठ विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर संजीव कुमार ने ऑनलाइन उपस्थित विद्यार्थियों से कहा कि आपातकाल का एक महत्वपूर्ण सकारात्मक योगदान था जिसमें हमारी जनता ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मतदान की स्वतंत्रता तथा जनमत के सम्मान की कीमत पहचानी थी और शांत रहते हुए लोकतान्त्रिक परिवर्तन किया था। उन्होंने स्वतंत्रता को लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण आयाम बताते हुए कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के समय गांधी जी ने नैतिक और आध्यात्मिक स्वतंत्रता का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति वैचारिक और शैक्षिक स्वतंत्रता की बात करती है और हाल ही में प्रधानमंत्री ने औपनिवेशिक मानसिक स्वतंत्रता से मुक्ति का आह्वान किया है।
प्रो. संजीव ने कहा कि लोकतंत्र को केवल प्रशासनिक व्यवस्था मात्र नहीं मानना चाहिए बल्कि लोकतंत्र एक महत्वपूर्ण और उच्च आदर्श है जिसको सही अर्थों में प्राप्त करने के लिए अभी बहुत कुछ करना है और इसके लिए हर एक व्यक्ति को अच्छा नागरिक बनना होगा विशेषकर समाज और देश की शिक्षा प्रणाली को आगे बढ़कर यह दायित्व संभालना होगा कि प्रत्येक विद्यार्थी एक अच्छा नागरिक बने। इस वेबीनार में कई विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों के अध्यापक तथा विद्यार्थी भी उपस्थित रहे।

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