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महामृत्युंजय मंत्र की रचना मार्कंडेय ऋषि ने की थी : महंत जगन्नाथ पुरी।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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महामृत्युंजय मंत्र प्रभाव से अल्पायु में मार्कंडेय को भगवान शिव ने अमर रहने का वरदान दिया।
ऋषि मार्कंडेय प्राकट्योत्सव पर महामृत्युंजय पाठ के साथ हुआ रुद्राभिषेक।
कुरुक्षेत्र, 6 अक्तूबर : ऋषि मार्कंडेय प्राकट्योत्सव के अवसर मारकंडा नदी के तट पर श्री मार्कंडेश्वर महादेव मंदिर ठसका मीरां जी में सर्वकल्याण की भावना से अखिल भारतीय श्री मार्कंडेश्वर जनसेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत जगन्नाथ पुरी व अन्य संतों के सान्निध्य में 11 विद्वान ब्राह्मणों द्वारा निरंतर महामृत्युंजय मंत्र पाठ किया जा रहा है। दूसरे दिन यजमान परिवारों ने मंदिर के पवित्र शिवलिंग पर महामृत्युंजय मंत्र जाप के साथ रुद्राभिषेक किया। इस मौके पर मंत्रोच्चारण के साथ यजमान मामराज मंगला, एडवोकेट राज कुमार सैनी, गुरुभजन सैनी,सिद्धार्थ तुली फौजी, परमजीत सिंह, बंटी गुंबर, शर्मा परिवार नैंसी वाले, तरसेम राणा, शिव राणा, राम कुमार पुरी, पूजा राणा, एडवोकेट खरैती लाल डोडा अबोहर, गुरभजन सिंह, बलजीत गोयत, उषा रानी , मीना रानी इत्यादि ने अभिषेक किया। महंत जगन्नाथ पुरी ने बताया कि शिवलिंग पर अभिषेक करते हुए महामृत्युंजय मंत्र का जाप जरूर करना चाहिए। उन्होंने बताया कि इस मंत्र के जाप से आत्मविश्वास बढ़ता है, अनजाना भय खत्म होता है, मन को शांति मिलती है और विचार सकारात्मक बनते हैं। इस मंत्र का सरल अर्थ यह है कि हम त्रिनेत्र भगवान शिव का मन से स्मरण करते हैं। आप हमारे जीवन की मधुरता को पोषित और पुष्ट करते हैं। जीवन और मृत्यु के बंधन से मुक्त होकर अमृत की ओर अग्रसर हों। महंत जगन्नाथ पुरी ने बताया कि महामृत्युंजय मंत्र की रचना मार्कंडेय ऋषि ने की थी। प्राचीन समय में मृगशृंग ऋषि और सुव्रता की कोई संतान नहीं थी। तब उन्होंने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए तप किया। शिवजी प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि आपके भाग्य में संतान सुख नहीं है, लेकिन आपने तप किया है इसलिए हम आपको पुत्र प्राप्ति का वर देते हैं। लेकिन, ये संतान अल्पायु होगी, इसका जीवन 16 वर्ष का ही होगा। कुछ समय बाद ऋषि के यहां पुत्र का जन्म हुआ। उसका नाम मार्कंडेय रखा। माता-पिता ने पुत्र को ज्ञान प्राप्त करने के लिए अन्य ऋषियों के आश्रम में भेज दिया। इसी तरह 15 वर्ष व्यतीत हो गए। जब बालक मार्कंडेय अपने घर आया तो उसके माता-पिता दुखी थे। माता-पिता ने उसके अल्पायु होने की बात बताई। मार्कंडेय ने कहा कि आप चिंता न करें, ऐसा कुछ नहीं होगा। मार्कंडेय ने महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिवजी को प्रसन्न करने के लिए तप करने लगा। इस तरह एक वर्ष व्यतीत हो गया। मार्कंडेय की की आयु 16 वर्ष हो गई थी। यमराज उसके सामने प्रकट हुए तो बालक ने शिवलिंग को पकड़ लिया। यमराज उसे ले जाना चाहते थे, तभी वहां शिवजी प्रकट हुए। शिवजी ने कहा कि हम इस बालक की तपस्या से प्रसन्न हैं और इसे अमरता का वरदान देते हैं। महंत जगन्नाथ पुरी ने बताया कि भगवान शिव ने ऋषि मार्कंडेय से कहा कि अब से जो भी भक्त महामृत्युंजय मंत्र का जाप करेगा, उसके सभी कष्ट दूर होंगे और वह असमय मृत्यु के भय से भी बच जाएगा। इस अवसर पर स्वामी संतोषानंद, स्वामी सीता राम, मयूर गिरि, मामराज मंगला, सुशील शर्मा, दलबीर सिंह, कुलबीर सिंह, मांगे राम नागरा, राम कुमार, श्री पाल राणा, जोगिंदर सिंह, शंटी, नसीब सिंह, साहब सिंह, सुक्खा सिंह, सरजा सिंह, नाजर सिंह, सरवन सिंह व राजिंदर सिंह इत्यादि भी मौजूद रहे।
मंदिर में अभिषेक व पूजन करते हुए श्रद्धालु तथा महामृत्युंजय मंत्र जाप पाठ का महत्व बताते हुए महंत जगन्नाथ पुरी।