प्राचीन लिपियों के संरक्षण एवं संवर्धन की आवश्यकताः डॉ. वीरेन्द्र पाल

केयू में दस दिवसीय पाण्डुलिपि कार्यशाला का शुभारंभ।
कुरुक्षेत्र, प्रमोद कौशिक 28 जुलाई : रामायण व महाभारत काल से ब्राह्मी आदि लिपियां अस्तित्व में रहीं हैं। इनके संरक्षण एवं संवर्धन की आवश्यकता है। जो लेखन शैली व लिपि संस्कृत भाषा के पास है वह संसार की किसी भाषा के पास नहीं। प्राचीन लिपियाँ हमारी सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये हमें अपने पूर्वजों के ज्ञान, विश्वासों, और जीवनशैली के बारे में जानकारी प्रदान करती हैं। यह उद्गार कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलसचिव लेफ्टिनेंट (डॉ) वीरेंद्र पाल ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के संस्कृत प्राच्यविद्या संस्थान व संस्कृत पालि एवं प्राकृत विभाग, द्वारा केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय दिल्ली के वित्तीय सहयोग से 10 दिवसीय पाण्डुलिपि कार्यशाला के उद्घाटन अवसर पर बतौर मुख्यातिथि व्यक्त किए। डॉ. वीरेन्द्र पाल ने कार्यशाला के आयोजन के लिए शुभकामनाएं देते हुए इसे एक सकारात्मक पहल बताया।
कार्यशाला के मुख्य वक्ता डॉ. कीर्तिकांत शर्मा, पूर्व-लिपि विशेषज्ञ, आई. जी. एन. सी. ए., दिल्ली ने कहा कि ब्राह्मी लिपि सभी लिपियों की जननी है। प्रायः प्राचीन ग्रंथ प्रथम ब्राह्मी लिपि में ही लिखे गए। उन्होंने ब्राह्मी, शारदा, खरोष्ठी आदि लिपियों की ऐतिहासिकता व विशेषता को प्रतिपादित करते हुए प्रतिभागियों को पाण्डुलिपि के क्षेत्र में शोध के लिए प्रेरित किया तथा पाण्डुलिपि अध्ययन व अनुसंधान में रोजगार के अवसरों पर भी प्रकाश डाला। डॉ. शर्मा अग्रिम तीन दिनों तक कार्यशाला में ब्राह्मी लिपि के विशेषज्ञ रहेंगे। इस कार्यशाला में देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से आए हुए 35 प्रतिभागी प्रशिक्षण लेंगे।
प्राच्य विद्या संकाय की डीन व संस्थान की निदेशिका प्रो. कृष्णा देवी ने आए हुए सभी प्रतिभागियों व अतिथियों का स्वागत व धन्यवाद किया। सत्र का संचालन सहायक आचार्य डॉ. विनोद कुमार शर्मा ने किया। इस अवसर पर प्रो. कृष्णा देवी, आचार्य डॉ. विजय श्री, डॉ. विनोद कुमार शर्मा, डॉ. तेलु राम, डॉ कृष्ण आर्य, प्रो. ललित कुमार गौड़, प्रो. अनामिका गिरधर, प्रो भगत सिंह, प्रो. सुखदेव सैनी, प्रो. आर के देशवाल, प्रो शुचिस्मिता सहित शिक्षक व शोधार्थी उपस्थित थे।