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अपने हक का त्याग ही रामायण और दूसरो के हक को छीनना ही महाभारत–आचार्य रमाकान्त दीक्षित

दीपक शर्मा (जिला संवाददाता)

बरेली : जिस राज्य के लिए केकैई ने दुनिया का अपयश अपने सिर पर लिया, वो राज्य भरत ने क्षण में मन से त्याग दिया। अपने हक का त्याग करना ही रामायण है और दूसरे का हक छीनना ही महाभारत है। यह विचार कृष्णा नगर कालौनी, दुर्गानगर में चल रही श्रीमद् भागवत महापुराण कथा के तीसरे दिन सोमवार को कथा व्यास आचार्य रमाकान्त दीक्षित ने श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये। मुख्य अतिथि जिला पंचायत अध्यक्ष रश्मि पटेल, आरएसएस के पूर्व विभाग कार्यवाह सुरेश जी, बार कौंसिल उत्तर प्रदेश के पूर्व चेयरमैन शिरीष मेहरोत्रा, अतुल मिश्रा, नरेन्द्र सिंह, केशव शंखधार, कृष्णकांत दीक्षित, डॉ एमएम अग्रवाल, राजीव शर्मा टीटू अरूण शर्मा, मुंबई से दीपक लाखोटिया, जया लाखोटिया आदि रहे। तथा इससे पूर्व सुबह 8 बजे से 1 बजे तक नव कुण्डीय सहस्त्र चंडी महायज्ञ में साधकों ने याज्ञाचार्य नीलेश मिश्रा के सानिध्य में राष्ट्र व समाज के मंगल की कामना करते हुए आहुतियां दी। इस दौरान बनारस, हरिद्वार, वृंदावन, मध्य प्रदेश, आदि स्थानों से पधारे 51 ब्राहाम्ण, डांडी स्वामी, संत महात्मा आदि उपस्थित रहे । आचार्य रमाकांत दीक्षित ने श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि भक्त प्रहलाद और ध्रुव ईश्वर के प्रति अटल विश्वास, भक्ति और सत्य की प्रतिमूर्ति हैं। दोनों ने माया मोह छोड़कर भगवान विष्णु को अपना आराध्य माना। उनकी भक्ति में इतनी शक्ति थी कि उनकी रक्षा के लिए स्वयं श्रीहरि विष्णु ने मृत्युलोक में कदम रखा था। वह हरि के सच्चे भक्त हैं। प्रभु की भक्ति करनी है तो इन दोनों के जीवन चरित्र से प्रेरणा लेनी चाहिए। दोनों ही कठोरतम दंडों और यातनाओं से भी नहीं डरे और ईश्वर की आराधना करते रहे। ठीक उसी प्रकार हमें भी जीवन के संकटों से नहीं डरना चाहिए और भगवान पर विश्वास कर उनकी आराधना में लीन होना चाहिए। भगवान भक्तों की सच्ची पुकार सुनकर निश्चित ही उन पर कृपा बरसाते हैं। वर्तमान में बच्चों में अच्छे संस्कार के लिए उन्हें भक्त ध्रुव व प्रहलाद की कथा अवश्य सुनानी चाहिए। इससे उनमें अच्छे भाव व संस्कार जन्म लेते हैं।
भागवताचार्य ने कहा कि भरत का अर्थ जीवन में त्याग है, जिस राज्य के लिए केकैई ने दुनिया का अपयश अपने सिर पर लिया। वो राज्य भरत ने मन की भांति त्याग दिया। अपने हक का त्याग करना ही रामायण है और दूसरे का हक छीनना ही महाभारत है। भरत, श्रीराम को लाने के लिए गुरु वशिष्ठ सहित समस्त प्रजा माता कौशल्या, सुमित्रा सहित वन में जाते हैं, लेकिन श्रीराम ने मर्यादा का आभास कराकर चरण पादुका को देकर अयोध्या में वापस भेजा।
कथा व्यास ने कहा कि इस संसार में प्राणी दो रस्सियों में बंधा है, ये अहमता व ममता है। अहमता शरीर को मैं मान लेती है और ममता शरीर के संबंधियों को मानती है। कारण है मन. जब इस मन को संसार की तरफ ले जाओगे तो मोह का कारण बनेगा और जब इसे भगवान की तरफ ले जाओगे तो मुक्ति का साधन बनेगा। इस दौरान श्रद्धालु भाव-विभोर होकर कथा का श्रवण करते रहे। कन्हैया कन्हैया पुकारा करेंगे, नइया ले चल परली पार, आदि भजनो पर भक्त झूम उठे।
इस अवसर पर अजय राज शर्मा, मीडिया प्रभारी एडवोकेट हर्ष कुमार अग्रवाल, दीपेश अग्रवाल, देव दीक्षित, डॉ. मनोज मिश्रा, संजय शर्मा, पंकज भारद्वाज, प्रवीन अग्रवाल, अनुराग अवस्थी, सचिन शर्मा, सुभाष अग्रवाल, छाया दीक्षित, विष्णु शुक्ला, मुकेश अग्रवाल, हेमा अग्रवाल, निशि अग्रवाल समेत काफी संख्या में भक्तगण मौजूद रहे।

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