ब्रह्मस्वरुप ब्रह्मचारी की प्रेरणा से काम्यकेश्वर तीर्थ पर शुक्ला सप्तमी मेला

ब्रह्मस्वरुप ब्रह्मचारी की प्रेरणा से काम्यकेश्वर तीर्थ पर शुक्ला सप्तमी मेला।

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
दूरभाष – 9416191877

जयराम विद्यापीठ द्वारा की जा रही है श्रद्धालुओं के लिए व्यवस्था।
वनवास के समय में पांडवों की शरणस्थली बना था काम्यकेश्वर तीर्थ।
शुक्ल सप्तमी पर स्नान करने से होती है मोक्ष की प्राप्ति।

कुरुक्षेत्र, 22 फरवरी : जयराम संस्थाओं के परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरुप ब्रह्मचारी की प्रेरणा से तीर्थों की संगमस्थली एवं धर्मनगरी कुरुक्षेत्र के गांव कमोदा में स्थित श्री काम्यकेश्वर महादेव मंदिर एवं तीर्थ पर फाल्गुन महीने की रविवारीय शुक्ला सप्तमी मेला 26 फरवरी को आयोजित होगा। इस दिन को विजय सप्तमी भी कहा जाता है। रविवारीय शुक्ला सप्तमी (विजय सप्तमी) मेले के लिए जयराम विद्यापीठ के सेवकों द्वारा दूर दराज से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए व्यवस्था की जा रही है। सेवक रोहित कौशिक ने काम्यकेश्वर तीर्थ की महत्ता के बारे में बताया कि ऐसी मान्यता है कि प्राचीन तीर्थ में शुक्ला सप्तमी के शुभ अवसर पर स्नान करने से मोक्ष प्राप्त होती है। ग्रामीणों एवं सेवकों द्वारा मेले की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं तथा तीर्थ में स्वच्छ जल भरा गया है। महर्षि पुलस्त्य जी और महर्षि लोमहर्षण जी ने वामन पुराण में काम्यक वन तीर्थ की उत्पत्ति का वर्णन करते हुए बताया कि इस तीर्थ की उत्पत्ति महाभारत काल से पूर्व की है। एक बार नैमिषारण्य के निवासी बहुत ज्यादा संख्या में कुरुक्षेत्र की भूमि के अंतर्गत सरस्वती नदी में स्नान करने के लिए काम्यक वन में आए थे। वे सरस्वती में स्नान न कर सके। उन्होंने यज्ञोपवितिक नामक तीर्थ की कल्पना की और स्नान किया। फिर भी शेष लोग उस में प्रवेश ना पा सके। तब से मां सरस्वती ने उनकी इच्छा पूर्ण करने के लिए साक्षात कुंज रूप में प्रकट होकर दर्शन दिए और पश्चिम-वाहनी होकर बहने लगी। इससे स्पष्ट होता है कि काम्यकेश्वर तीर्थ एवं मंदिर की उत्पति महाभारत काल से पूर्व की है। वामन पुराण के अध्याय 2 के 34 वें श्लोक के काम्यक वन तीर्थ प्रसंग में स्पष्ट लिखा है कि रविवार को सूर्य भगवान पूषा नाम से साक्षात रूप से विद्यमान रहते हैं। इसलिए वनवास के समय पांडवों ने इस धरा को तपस्या के लिए अपनी शरणस्थली बनाया। द्यूत-क्रीड़ा में कौरवों से हारकर अपने कुल पुरोहित के साथ 10 हजार ब्राह्मणों के साथ यहीं रहते थे। जयराम विद्यापीठ के रोहित कौशिक एवं सेवक सुमिंद्र शास्त्री ने बताया कि मंदिर में 26 फरवरी को रविवारीय शुक्ला सप्तमी मेला लगेगा। उनके अनुसार इसी पावन धरा पर पांडवों को सांत्वना एवं धर्मोपदेश देने हेतु महर्षि वेदव्यास जी, महर्षि लोमहर्षण जी, नीतिवेता विदुर जी, देवर्षि नारद जी, बृहदश्व जी, संजय एवं महर्षि मार्कंडेय जी पधारे थे। इतना ही नहीं द्वारकाधीश भगवान श्रीकृष्ण जी अपनी धर्मपत्नी सत्यभामा के साथ पांडवों को सांत्वना देने पहुंचे थे। पांडवों को दुर्वासा ऋषि के श्राप से बचाने के लिए और तीसरी बार जयद्रथ द्वारा द्रोपदी हरण के बाद सांत्वना देने के लिए भी भगवान श्रीकृष्ण काम्यकेश्वर तीर्थ पर पधारे थे। पांडवों के वंशज सोमवती अमावस्या, फल्गू तीर्थ के समान शुक्ला सप्तमी का इंतजार करते रहते थे।
काम्यकेश्वर तीर्थ एवं सरोवर।

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