रिपोर्ट पदमाकर पाठक
जेई की पुष्टि के बाद दवा का छिड़काव जारी
• सूकर बाड़ों में करायी जा रही साफ-सफाई तथा बायो सिक्योरिटी मीजर्स पर दिया जा रहा ध्यान।
आजमगढ़। आजमगढ़ मंडल के मऊ जिले में सूकरों में जापानी इंसेफ्लाइटिस (जेई) की पुष्टि के बाद पशु चिकित्सा विभाग ने सूकर पालकों को जागरूक करना शुरू कर दिया है। पशु चिकित्सकों की टीमें सूकर बाड़ों का भ्रमण कर दवा का छिड़काव करा रही हैं। सुकर पालकों को साफ-सफाई के प्रति जागरूक किया जा रहा है। वर्तमान में जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में 397 और शहरी क्षेत्रों में 34 सूकर पालक क्रमशः 4441 और 642 सूकर पाल रहे हैं। मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ वीरेन्द्र सिंह ने बताया कि लखनऊ में एक साथ बड़ी संख्या में सूकरों की मौत और मऊ, संत कबीर नगर में बड़ी संख्या में सूकरों के जेई पॉजिटिव मिलने के बाद से पशु चिकित्सा विभाग भी अलर्ट हो गया है। पशु चिकित्सा विभाग की टीमें सूकर बाड़ों की साफ-सफाई और दवा छिड़काव में जुटी है। संचारी रोग अभियान एवं अफ्रीकन स्वाइन फीवर (जेई/एइएस) के अंतर्गत जनपद में वृहद प्रचार-प्रसार कर पशुपालन विभाग, स्वास्थ्य विभाग, पंचायतीराज विभाग तथा जिला प्रशासन के माध्यम से जनता एवं सूकर पालकों को इस बीमारी से बचाव से सम्बंधित उपाय की जानकारी देने के लिए सभी विभागों के द्वारा समन्वय स्थापित कर कार्यवाही की जा रही है।
इस सम्बंध में पशुपालन विभाग द्वारा विभिन्न क्षेत्र से सूकर के सीरम सैम्पल बीमारी की जाँच के लिए प्रयोगशाला में नियमित रूप से भेजा जा रहा है। अब तक कुल 40 सैम्पल परीक्षण के लिए भेजे जा चुके हैं माह जून में 8 सैम्पल भेजे गये थे जिसमें से 6 सैम्पल पॉजिटिव पाए गये थे। शेष निगेटिव थे। यह सैम्पल मेहनगर और मार्टीनगंज से मिले थे। जिसके सम्बंध में मुख्य चिकित्सा अधिकारी, पंचायतीराज विभाग तथा जिला प्रशासन को अवगत करा दिया गया है। सम्बंधित सूकर पालकों तथा पशु चिकित्सा अधिकारियों को विशेषरूप से बाड़ों की साफ-सफाई, एंटी सेप्टिक का छिडकाव, बायो सिक्योरिटी मीजर्स तथा जाली के प्रयोग के लिए निर्देशित करते हुए पशुओं, सूकरों की मृत्यु होने की दशा में छिडकाव किया जाये तथा सूकर पालकों को जेई का टीकाकरण भी कराया जाये। परन्तु अभी किसी भी सूकर की मृत्यु की सूचना नहीं प्राप्त हुई है और ना ही कोई बीमारी के लक्षण पाए गये हैं। जानें इसके बारे में-
जापानी इंसेफ्लाइटिस एक ऐसी बीमारी है, जो मच्छरों के काटने से होती है। यह मच्छर फ्लेविवायरस से संक्रमित होते हैं। यह संक्रामक बुखार नहीं है। यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलता है। जापानी इंसेफ्लाइटिस वायरस से संक्रमित पालतू सूकर और जंगली पक्षियों को काटने की वजह से मच्छर संक्रमित हो जाते हैं और फिर यह इंसानों तक पहुँच जाते हैं। इस वायरस में ज्यादातर एक से 14 वर्ष के बच्चे और 65 वर्ष से ज्यादा के लोग ही चपेट में आते हैं।