जीवात्मा को कर्म बंधन के अनुसार परिणाम भुगतने पड़ते हैं : प. कमल कुश

जीवात्मा को कर्म बंधन के अनुसार परिणाम भुगतने पड़ते हैं : प. कमल कुश।

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
दूरभाष – 9416191877
 
भगवान श्रीकृष्ण एक दीन-हीन को सर्वस्व दान कर देते हैं और गले लगा लेते हैं : प. कमल कुश।  
ऋषि मार्कंडेय प्राकट्योत्सव के अवसर पर आयोजित श्रीमद् भागवत महापुराण कथा का पूर्णाहुति के साथ हुआ समापन।

कुरुक्षेत्र, 9 अक्तूबर : अखिल भारतीय श्री मार्कण्डेश्वर जनसेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत जगन्नाथ पुरी के सान्निध्य में मारकंडा नदी के तट पर श्री मार्कंडेश्वर महादेव मंदिर ठसका मीरां जी में ऋषि मार्कंडेय प्राकट्योत्सव के अवसर पर आयोजित श्रीमद् भागवत महापुराण कथा का रविवार को पूर्णाहुति के साथ समापन किया गया। श्रद्धालुओं एवं यजमानों द्वारा यज्ञ की पूर्णाहुति से पूर्व कथावाचक प. कमल कुश ने व्यासपीठ से कहा कि ईश्वर तत्व एक ही है, जिसे हर धर्म में पूजा जाता है। उन्होंने कहा कि जीवन में उच्च स्थान बनाने के लिए गुरु की शरण में रहना चाहिए। माता-पिता, गुरु की सेवा हर रोग की दवा है। जो इस सेवा की दवा पीते हैं, वह अमर हो जाते हैं। प. कमल कुश ने कथा के अंत में भगवान श्री कृष्ण-सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि सुदामा चरित्र जीवन को सुखमय बनाता है। भगवान श्रीकृष्ण एक दीन-हीन को सर्वस्व दान कर देते हैं और गले लगा लेते हैं। यही सीख हमें लेना चाहिए। उनके द्वारा कथा के दौरान गाए भजनों पर श्रद्धालुओं ने भाव-विभोर होकर नृत्य किया। कथावाचक ने बताया कि श्रीमद भागवत रहस्यात्मक पुराण है। यह भगवत स्वरूप का अनुभव करने वाला और समस्त वेदों का सार है। संसार में फंसे लोग अज्ञान व अंधकार से पार जाना चाहते हैं, उनके लिए आध्यात्मिक तत्वों को प्रकाशित करने वाला यह एक आदित्य दीपक है। प. कमल कुश ने बताया कि जीवन सबसे बड़ी अदालत है और इसके न्यायाधीश आपके कर्म हैं। अच्छे-बुरे कर्मों को हमसे ज्यादा अच्छे तरीके से कौन जानता है। अब आप खुद तय कर लीजिए कि आगे आपको क्या परिणाम मिलेंगे। यदि आपको लगता है कि अच्छे परिणाम मिलेंगे तो और भी अच्छे काम करें और लगता है कि नहीं तो जीवन में कुछ ऐसा नया शुरू कीजिए जो कर्मों की गति सुधार दें। उन्होंने कहा है कि जीवात्मा जिस समय जिस तरह के भाव को हृदय में धारण करता है उसी क्षण उसी समय कर्म का बंधन शुरू हो जाता है। जीवात्मा को कर्म बंधन के अनुसार परिणाम भुगतने पड़ते हैं। उसके न्याय विधान में किसी के लिए कोई वरीयता नहीं है चाहे देव हो या सामान्य जीवात्मा हो। कर्म बंधन को भोगना ही पड़ता है। भागवत कथा के पूर्णाहुति के अवसर पर महंत जगन्नाथ पुरी ने व्यासपीठ पर श्रद्धालुओं के साथ आरती की। आरती के उपरांत विशाल भंडारा दिया गया जिसमें भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया। इस मौके पर मामराज मंगला, पुरुषोत्तम डोगरा, दलबीर सिंह, बलजीत सिंह, गुरमीत सिंह, भगवान गिरी, मयूर गिरी, मनीष, विजय, सुक्खा सिंह, राम कुमार, शीला देवी, कुसुम देवी, उर्मिला देवी, रजनी, सुखविंदर इत्यादि सहित भारी संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे।  
कथा समापन के उपरांत यज्ञ में आहुतियां डालते हुए यजमान एवं श्रद्धालु।

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