श्रद्धा व विश्वास के साथ श्री मदभागवत श्रवण से मोक्ष की प्राप्ति जरूर होती है : प. कमल कुश
ऋषि मार्कंडेय।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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प्राकट्योत्सव पर दूसरे दिन राजा परीक्षित की कथा सुनाई।
कुरुक्षेत्र, 6 अक्तूबर : मारकंडा नदी के तट पर श्री मार्कंडेश्वर महादेव मंदिर ठसका मीरां जी में आयोजित ऋषि मार्कंडेय प्राकट्योत्सव के अवसर पर श्रीमद भागवत महापुराण कथा के दूसरे दिन व्यासपीठ से यज्ञ आचार्य एवं कथा प्रवक्ता भागवत किंकर प. कमल कुश ने कथा की महिमा के साथ राजा परीक्षित की कथा सुनाई। बताया कि अगर श्रद्धा व विश्वास के साथ श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण किया जाए, तो मोक्ष की प्राप्ति जरूर होती है। प. कमल कुश ने भागवत कथा के दूसरे दिन शुकदेव की वंदना के बारे में वर्णन करते हुए कहा कि श्रीमद भागवत की अमर कथा एवं शुकदेव के जन्म का विस्तार से वर्णन किया। कैसे श्रीकृष्ण ने शुकदेव महाराज को धरती पर भेजा भागवत कथा गायन करने को ताकि कलियुग के लोगों का कल्याण हो सके। कथा वाचक कहा कि भगवान मानव को जन्म देने से पहले कहते हैं ऐसा कर्म करना जिससे दोबारा जन्म ना लेना पड़े। मानव मुट्ठी बंद करके यह संकल्प दोहराते हुए इस पृथ्वी पर जन्म लेता है। प्रभु भागवत कथा के माध्यम से मानव का यह संकल्प याद दिलाते रहते हैं। भागवत सुनने वालों का भगवान हमेशा कल्याण करते हैं। भागवत ने कहा है जो भगवान को प्रिय हो वही करो, हमेशा भगवान से मिलने का उद्देश्य बना लो, जो प्रभु का मार्ग हो उसे अपना लो, इस संसार में जन्म-मरण से मुक्ति भगवान की कथा ही दिला सकती है। प. कमल कुश ने बताया कि भगवान की कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बता देती है। राजा परीक्षित के कारण भागवत कथा पृथ्वी के लोगों को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। समाज द्वारा बनाए गए नियम गलत हो सकते हैं किंतु भगवान के नियम ना तो गलत हो सकते हैं और नहीं बदले जा सकते हैं। प. कमल कुश ने कहा कि शुकदेव जी के जन्म के बारे में यह कहा जाता है कि ये महर्षि वेद व्यास के अयोनिज पुत्र थे और यह बारह वर्ष तक माता के गर्भ में रहे। भगवान शिव, पार्वती को अमर कथा सुना रहे थे। पार्वती जी को कथा सुनते-सुनते नींद आ गयी और उनकी जगह पर वहां बैठे सुकदेव जीने हुंकारी भरना प्रारम्भ कर दिया। जब भगवान शिव को यह बात ज्ञात हुई, तब उन्होंने शुकदेव को मारने के लिए दौड़े और उनके पीछे अपना त्रिशूल छोड़ा। शुकदेव जान बचाने के लिए तीनों लोकों में भागते रहे, भागते-भागते वह व्यास जी के आश्रम में आये और सूक्ष्म रूप बनाकर उनकी पत्नी के मुख में घुस गए। वह उनके गर्भ में रह गए। ऐसा कहा जाता है कि ये बारह वर्ष तक गर्भ के बाहर ही नहीं निकले। जब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं आकर इन्हें आश्वासन दिया कि बाहर निकलने पर तुम्हारे ऊपर माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा, तभी ये गर्भ से बाहर निकले और व्यास जी के पुत्र कहलाये। गर्भ में ही इन्हें वेद, उपनिषद, दर्शन और पुराण आदि का सम्यक ज्ञान हो गया था। इस अवसर पर स्वामी संतोषानंद, स्वामी सीताराम, भगवान गिरि, मयूर गिरि, नरेश शर्मा, संजीव शर्मा, बिल्लू पुजारी, अंकुश, सिंदर इत्यादि भी मौजूद रहे।
व्यासपीठ पर कथा वाचक भागवत किंकर प. कमल कुश साथ में मंच पर महंत जगन्नाथ पुरी। व्यापीठ पर आरती करते हुए यजमान।