आम आदमी पार्टी के बिहार प्रदेश प्रवक्ता नियाज अहमद ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बिहार के सरकारी स्कूलों के 65 प्रतिशत छात्रों के पास किताबें उपलब्ध न होने पर रोष प्रकट करते हुए कहा कि इस साल सरकारी स्कूलों के बच्चों के किताबों के लिए सरकार ने 520 करोड़ की राशि का प्रावधान तो किया है परन्तु बिहार के सरकारी स्कूल के 1 करोड़ 10 लाख बच्चों के पास सत्र 2022-23 के लिए अभी तक किताबें उपलब्ध नहीं हो पाईं है। 71 हजार प्राइमरी स्कूलों के क्लास पहली से आठवीं तक के 1.67 करोड़ बच्चों में 1.10 करोड़ से ज्यादा बच्चे बिना किताब ही स्कूल जा रहे। एकतरफ राज्य सरकार बिहार के लाखों छात्रों के भविष्य के साथ किताब खरीदने के लिए उपलब्ध राशि को न भेज कर खिलवाड़ कर रही है तो दुसरी तरफ अभिवावकों के लिए सबसे बड़ी समस्या यह है कि सभी जगह ये किताबें मिलती ही नहीं है जिस कारण छात्र छात्राएं किताबों से वंचित हैं।
नियाज अहमद ने कहा कि ये मामला सिर्फ इसी वर्ष का नहीं है किताबें खरीदने के लिए राशि कभी भी समय पर बच्चों के खाते में नहीं भेजी जाती है। पिछले तीन सत्रों की बात करें तो अप्रैल से शुरू होने वाले सत्र की राशि बच्चों के खाते में कभी अक्टूबर तो कभी दिसंबर और कभी जनवरी में भेजी जाती है। सरकारी स्कूलों में अधिकांश गरीब और कमजोर वर्ग के बच्चे ही पढ़ते हैं ऐसे में महज सरकारी उदासीनता एवं शिक्षा विभाग अपनी लापरवाही से न सिर्फ लाखों करोड़ों बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहा है बल्कि बिहार की पूरी शिक्षा व्यवस्था को चौपट कर रहा है।
बिहार प्रदेश प्रवक्ता ने कहा कि राज्य सरकार को दिल्ली सरकार से सिखना चाहिए कि जहाँ पिछले 7 सालों मे अरविंद केजरीवाल जी ने अपनी लगन से दिल्ली के सरकारी स्कूलों की काया पलट कर सिद्ध किया कि यदि सरकार की मंशा सही हो तो सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों से भी बेहतर बनाया जा सकता है।