इंसान के पुण्य कर्म ही काम आते हैं : महंत राजेंद्र पुरी।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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भीषण गर्मी में अग्नि के ढेरों के बीच महंत राजेंद्र पुरी कर रहे हैं तपस्या।
41 दिवसीय पंच धूणी अग्नि तपस्या के साथ हो रहा है सत्संग।
कुरुक्षेत्र, 11 मई : धर्मनगरी कुरुक्षेत्र के जग ज्योति दरबार के महंत राजेंद्र पुरी की 41 दिवसीय पंच धूणी अग्नि तपस्या निरंतर जारी है। तीर्थों की संगम स्थली के 48 कोस की पवित्र भूमि पर पंच धूणी अग्नि तपस्या के प्रति लगातार भक्तों की आस्था एवं संख्या बढ़ती जा रही है। लोगों को आश्चर्य है कि करीब दो दशकों से हर वर्ष इतनी भीषण गर्मी में कैसे कोई अपने चारों तरफ आग जला कर बैठ सकता है। जबकि गर्मी के मौसम की धूप में खड़ा होना ही असंभव सा लगता है।
महंत राजेंद्र पुरी 41 दिवसीय पंच धूणी अग्नि तपस्या के साथ सत्संग भी कर रहे हैं। उन्होंने वीरवार को श्रद्धालुओं को वैतरणी नदी की कथा सुनाते हुए कहा कि जिसने जन्म लिया है उसे धरती से जाना ही पड़ेगा। जिस दिन इंसान की मृत्यु हो जाती है, उस दिन से अगले 47 दिन का चक्र पृथ्वी लोक से स्वर्ग लोक जाने का है। महंत ने बताया कि पुराणों के अनुसार जब यम के दूत इंसान शरीर को यमलोक में ले जाकर डालते हैं, उसके बाद वापिस पृथ्वी लोक लाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार यह वही समय होता है जब आत्मा अपने प्रिय जनों के द्वारा किए 13 दिन के क्रिया कर्म देखती है। जिसे मोक्ष मिलता और तब आत्मा वापिस यमलोक जाती है। उस सफर में जाते हुए वैतरणी नदी आती है, जहां हर इंसान की आत्मा को होकर गुजरना ही होता है। पुराणों के अनुसार उस नदी को पार करने के लिए सिर्फ हमारी गौ माता ही सहायक है। इस लोक में गौ माता पर किए अच्छे बुरे या कर्मो का हिसाब देना जरूर पड़ेगा। इसलिए इंसान के पुण्य कर्म ही काम आयेंगे। तभी वैतरणी नदी पार करके ईश्वर धाम जाया जायेगा।
महंत राजेंद्र पुरी ने कहा कि ये कहना कि कलयुग आ गया है, कहीं न कहीं सत्य लग रहा है। जिन लोगों ने धर्म को भुला दिया उनके लिए कलयुग ही है। परंतु धर्म के रास्ते पर चलना, अपने धर्म की रक्षा करना, अपना मित्र सखा बनाकर किसी से छल करने वाले इंसान से दूर रहना। आज भी सतयुग और राम राज्य स्थापित करवाने में मदद कर सकता है। महंत राजेंद्र पुरी ने देश और प्रदेशवासियों से अपने धर्म की पालना करने का अहवान किया।
महंत राजेंद्र पुरी पंच धूणी अग्नि तपस्या करते हुए एवं श्रद्धालु।