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भाई और बहन के सच्चे प्रेम का पर्व है भैया दूज : ज्योतिष आचार्य डॉ. सुरेश मिश्रा

कुरुक्षेत्र, संजीव कुमारी : हार्मनी ऑकल्ट वास्तु जोन, पिपली (कुरुक्षेत्र) के अध्यक्ष तथा श्री दुर्गा देवी मन्दिर, पिपली के पीठाधीश ज्योतिष आचार्य डॉ. सुरेश मिश्रा ने बताया कि हिन्दू पंचांग अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भाई दूज एवं यम द्वितीया के रूप में मनाते है। भाई दूज का यह त्यौहार विशेष रूप से भाई और बहन के मध्य स्थापित प्रगाढ़ संबंधों को दर्शाता है। राखी के बाद आने वाला यह पर दूसरा पवित्र बंधन वास्तव में केवल भाई और बहन के प्रेम का प्रतीक है।
23 अक्तूबर, 2025, गुरुवार,स्वाति नक्षत्र, तुला राशि, विशाखा नक्षत्र, आयुष्मान योग, बालव करण,कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के लिये भाई दूज का पर्व बडी धूमधाम से मनाया जायेगा। भाई दूज को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है I भाई दूज पर्व भाईयों के प्रति बहनों के श्रद्धा व विश्वास का पर्व है। इस पर्व को बहनें अपने भाईयों के माथे पर तिलक लगा कर मनाती है और भगवान से अपने भाइय़ों की लम्बी आयु की कामना करती है।
भैया दूज को यम द्वितीया क्यों कहते है ?
हिन्दू समाज में भाई -बहन के स्नेह व सौहार्द का प्रतीक यह पर्व दीपावली दो दिन बाद मनाया जाता है। यह दिन क्योकि यम द्वितीया भी कहलाता है, इसलिये इस पर्व पर यम देव की पूजा भी की जाती है। एक मान्यता के अनुसार इस दिन जो यम देव की उपासना करता है। उसे असमय मृत्यु का भय नहीं रहता है।
हिन्दूओं के बाकी त्यौहारों कि तरह यह त्यौहार भी परम्पराओं से जुडा हुआ है। इस दिन बहनें अपने भाई को तिलक लगाकर, उपहार देकर उसकी लम्बी आयु की कामना करती है, बदले में भाई अपनी बहन कि रक्षा का वचन देता है। इस दिन भाई का अपनी बहन के घर भोजन करना विशेष रुप से शुभ होता है।
भैया दूज का पौराणिक महत्व क्या है ?: भाई दूज के संदर्भ में एक कथा प्रचलित है। जब यमपुरी के स्वामी यमराज को अपनी बहन यमुना से मिले बहुत समय व्यतीत हो जाता है। तब वह बहन से मिलने की इच्छा से उसके पास आते है। यमुना जी भाई यम को अचानक इतने दिनों के उपरांत देखती है तो बहुत प्रसन्न होती है तथा उनका खूब आदर सत्कार करती है। बहन यमुना के इस स्नेह भरे मिलन से तथा उसके द्वारा किए गए सेवा भाव से प्रसन्न हो यमराज उन्हें वर मांगने को कहते है। यमुना जी उनसे कहती हैं कि वह सभी प्राणियों को अपने भय से मुक्त कर दें।
यम उनके इस कथन को सुन कर सोच में पड़ जाते है और कहते है कि ऐसा होना तो असम्भव है। यदि सभी मेरे भय से मुक्त हो मृत्यु से वंचित हो गए तो पृथ्वी इन सभी को कैसे सह सकेगी,सृष्टि संकट से घिर जाएगी I अत: तुम कुछ और वर मांग लो इस पर यमुना उन्हें कहती है कि आप मुझे यह आशीर्वाद प्रदान करें कि इस शुभ दिन को जो भी भाई-बहन यमुना में स्नान कर इस पर्व को मनाएंगे, वह अकाल मृत्यु के भय से मुक्त हो जाएंगे।
इस पर प्रसन्न होकर यमराज ने यमुना को वरदान दिया कि जो व्यक्ति इस दिन यमुना में स्नान करके भाई-बहन के इस पवित्र पर्व को मनाएगा, वह अकाल- मृत्यु तथा मेरे भय से मुक्त हो जाएगा I तभी से इस दिन को यम द्वितीया और भाई दूज के रूप में मनाया जाने लगा। जो भी कोई मां यमुना के जल मे स्नान करता है वह अकाल मृत्यु के भय से मुक्त होता है और मोक्ष को प्राप्त करता है। अत: इस दिन यमुना तट पर यम की पूजा करने का विधान भी है।
चित्रगुप्त जयन्ती : इसके अलावा कायस्थ समाज में इसी दिन अपने आराध्य देव चित्रगुप्त की पूजा की जाती है। कायस्थ लोग स्वर्ग में धर्मराज का लेखा-जोखा रखने वाले चित्रगुप्त का पूजन सामूहिक रूप से तस्वीरों अथवा मूर्तियों के माध्यम से करते हैं। वे इस दिन कारोबारी बहीखातों की पूजा भी करते हैं।
भैया दूज की विधि : इस पूजा में भाई की हथेली पर बहनें चावल का घोल लगाती है उसके ऊपर सिन्दूर लगाकर कद्दू के फूल, पान, सुपारी मुद्रा आदि हाथों पर रखकर धीरे धीरे पानी हाथों पर छोड़ते हुए कुछ मंत्र बोलती हैं जैसे “गंगा पूजे यमुना को यमी पूजे यमराज को, सुभद्रा पूजा कृष्ण को, गंगा यमुना नीर बहे मेरे भाई की आयु बढ़े” इसी प्रकार कहीं इस मंत्र के साथ हथेली की पूजा की जाती है ” सांप काटे, बाघ काटे, बिच्छू काटे जो काटे सो आज काटे” इस तरह के शब्द इसलिए कहे जाते है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि आज के दिन अगर भयंकर पशु काट भी ले तो यमराज के दूत भाई के प्राण नहीं ले जाएंगे। कहीं कहीं इस दिन बहनें भाई के सिर पर तिलक लगाकर उनकी आरती उतारती है और फिर हथेली में कलावा बांधती है। भाई का मुंह मीठा करने के लिए उन्हें माखन मिश्री खिलाती है। संध्या के समय बहनें यमराज के नाम से चौमुखा दीया जलाकर घर के बाहर रखती है। इस समय ऊपर आसमान में चील उड़ता दिखाई दे तो बहुत ही शुभ माना जाता है। इस संदर्भ में मान्यता यह है कि बहनें भाई की आयु के लिए जो दुआ मांग रही हैं उसे यमराज ने कुबूल कर लिया है या चील जाकर यमराज को बहनों का संदेश सुनाएगा। सनातन धर्म में सभी सम्बन्धों में निष्काम भाव,श्रद्धा, भक्ति और प्रेम सिखलाता है। त्रेता युग में भगवान राम जी ने सभी सम्बन्धों को अपने दिव्य गुणों और कर्तव्य निष्ठा पूर्वक निभाया तभी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के नाम से सारे संसार में प्रसिद्ध हुए। सभी के जीवन में सदगुरु होना चाहिए तभी मानव जीवन सफल होता है। क्योंकि जीवित सदगुरु ही ओंकार और जीवन जीने की कला सिखलाते है। सनातन धर्म में दान, सेवा, सुमिरन,भगवान की आरती और जीव जंतुओ की सेवा अभिन्न अंग है।

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