आत्मा और परमात्मा का मिलन है महारास की लीला- आचार्य रमाकांत दीक्षित

आत्मा और परमात्मा का मिलन है महारास की लीला- आचार्य रमाकांत दीक्षित
दीपक शर्मा (जिला संवाददाता)
बरेली : श्रीमद् भागवत कथा के छठवें दिन आचार्य रमाकांत दीक्षित महाराज ने महारास लीला एवं कृष्ण रुक्मणी विवाह की कथा सुनाई उन्होंने कहा रासलीला में भगवान शंकर जी गोपी बनकर इस महारास में आये इस अवसर पर महाराज ने रास पंच अध्याय का वर्णन करते हुए कहा कि महारास में पांच अध्याय हैं। उनमें गाए जाने वाले पंच गीत भागवत के पंच प्राण हैं। जो भी ठाकुरजी के इन पांच गीतों को भाव से गाता है, वह भव पार हो जाता है। उन्हें वृंदावन की भक्ति सहज प्राप्त हो जाती है। कथा व्यास आचार्य रमाकांत दीक्षित महाराज ने कहा कि महारास में भगवान श्रीकृष्ण ने बांसुरी बजाकर गोपियों का आह्वान किया और महारास लीला द्वारा ही जीवात्मा का परमात्मा से मिलन हुआ उन्होंने कहा कि जीव परमात्मा का अंश है। इसलिए जीव के अंदर अपार शक्ति रहती है। यदि कोई कमी रहती है, तो वह मात्र संकल्प की होती है। संकल्प एवं कपट रहित होने से प्रभु उसे निश्चित रूप से पूरा करेंगे।
महारास तो जीव का शिव के मिलन की कथा है। यह काम को बढ़ाने की नहीं काम पर विजय प्राप्त करने की कथा है। इस कथा में कामदेव ने भगवान पर खुले मैदान में अपने पूर्ण सामर्थ्य के साथ आक्रमण किया लेकिन वह भगवान को पराजित नहीं कर पाया उसे ही परास्त होना पडा। रासलीला में जीव का शंका करना या काम को देखना ही पाप है। गोपी गीत पर बोलते हुए कथा व्यास ने कहा जब-जब जीव में अभिमान आता है भगवान उससे दूर हो जाते हैं। जब कोई भगवान को न पाकर विरह में होता है तो श्रीकृष्ण उस पर अनुग्रह करते है उसे दर्शन देते है। रुकमणी बिबाह की कथा सुनाते हुए कहा विदर्भ देश के राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मिणी बुद्धिमान, सुंदर और सरल स्वभाव वाली थीं। पुत्री के विवाह के लिए पिता भीष्मक योग्य वर की तलाश कर रहे थे राजा के दरबार में जो कोई भी आता वह श्रीकृष्ण के साहस और वीरता की प्रशंसा करता, कृष्ण की वीरता की कहानियां सुनकर देवी रुक्मिणी ने उन्हें मन ही मन अपना पति मान लिया था। तय कर लिया था कि वह कृष्ण से ही विवाह करेंगी।
राजा भीष्मक के पुत्र रुक्म का खास मित्र चेदिराज शिशुपाल, रुक्मिणी से विवाह करना चाहता था। रुक्म के कहने पर राजा ने शिशुपाल से देवी रुक्मिणी का विवाह तय कर लिया। लेकिन रुक्मणी श्रीकृष्ण के अलावा किसी को भी अपने पति के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहती थी उन्होंने अपने प्रेम की बात एक संदेश के जरिए श्रीकृष्ण तक पहुंचावाई। श्रीकृष्ण को जब ये बात पता चली तो रुक्मिणी को संकट में देख वह विदर्भ राज्य पहुंच कर रुक्मिणी का हरण कर लाये, इसके बाद श्रीकृष्ण, शिशुपाल और रुक्म के बीच भयंकर युद्ध हुआ और इसमें द्वारकाधीश (कृष्ण) विजयी हुए। भगवान कृष्ण देवी रुक्मिणी को द्वारका ले आए। आयोजन मंडल की ओर से आकर्षक वेश भूषा में श्रीकृष्ण व रुक्मिणी विवाह की झांकी प्रस्तुत कर विवाह संस्कार की रस्मों को पूरा किया गया। आओ मेरी सखिओ मुझे मेहंदी लगा दो मुझे श्याम सुन्दर की दुल्हन बना दो,आज मेरे श्याम की शादी है आदि भजन गाये
भक्त झूम उठे, और नृत्य करने लगे। मीडिया प्रभारी एड्वोकेट हर्ष कुमार अग्रवाल व व्यवस्थापक अजय राज शर्मा ने बताया कि कृष्णानगर कालोनी, दुर्गानगर में आयोजित नव कुण्डीय सहस्त्रचंडी महायज्ञ एवं श्रीमद् भागवत कथा के सुबह के सत्र में 8 बजे से 1 बजे तक नव कुण्डीय सहस्त्र चंडी महायज्ञ में साधकों ने याज्ञाचार्य नीलेश मिश्रा के सानिध्य में राष्ट्र व समाज के मंगल की कामना करते हुए आहुतियां दी। इस दौरान बनारस, हरिद्वार, वृंदावन, मध्य प्रदेश, आदि स्थानों से पधारे 51 ब्राहाम्ण, डांडी स्वामी, संत महात्मा आदि मौजूद रहे।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि वन एवं पर्यावरण मंत्री उत्तर प्रदेश सरकार डॉक्टर अरुण कुमार, श्रुति गंगवार, बार एसोसिएशन अध्यक्ष मनोज कुमार हरित, सीए शरद मिश्रा, अंतरिक्ष सक्सेना, पंकज कुमार एड्वोकेट, डॉ. शरद अग्रवाल,सकट बिहारी, पराग अग्रवाल, दीपेश अग्रवाल, यश अग्रवाल, अनूप अग्रवाल, अनिल अग्रवाल, विष्णु शुक्ला, देव दीक्षित, अनुराग अवस्थी प्रवीण अग्रवाल विवेक मित्तल, छाया दीक्षित, संजय शर्मा, डॉ मनोज मिश्रा आदि उपस्थित रहे।




