अलविदा वर्षान्त कार्यक्रम में कवि ‘रहीम’ को किया गया याद
फारबिसगंज (अररिया)
इंद्रधनुष साहित्य परिषद्, फारबिसगंज के द्वारा प्रोफेसर कॉलोनी में ‘लोककवि रहीम’ स्मृति गोष्ठी बाल साहित्यकार हेमंत यादव की अध्यक्षता में आयोजित हुआ।संचालन विनोद कुमार तिवारी ने किया। साहित्यकारों के द्वारा महाकवि ‘रहीम’ की तस्वीर पर श्रद्धा सुमन अर्पण के बाद हेमंत यादव ने कहा कि लोककवि ‘रहीम’ का मूल नाम अब्दुर्रहीम खानखाना है इनका जन्म 17 दिसंबर 1556 ईस्वी को हुआ था। परिषद् के संस्थापक विनोद कुमार तिवारी ने कहा कि कवि रहीम अरबी, फारसी, संस्कृत और हिंदी के समकालीन विद्वानों में अनोखे थे। सुरेंद्र प्रसाद मंडल (पूर्व प्रअ) ने कहा कि मानवता और सहजता उनके जन्मजात गुण थे जो कठिन विपरीत परिस्थितियों के झंझावतों में भी अविचलित बने रहें। इसलिए उन्हें लोककवि होने का गौरव प्राप्त था। प्रधानाध्यापक हर्ष नारायण दास ने कहा कि भक्ति, श्रृंगार, नीति-रीती के विस्तृत फलक तक फैला उनका काव्य अद्वितीय है।प्रधानाध्यापक प्रेम लाल पाठक ने कहा कि उन्होनें रीतिकाल के आरंभिक आचार्य पद्धति में लोक रीति-नीति को अपने काव्य का विषय बनाया था। हिंदी सेवी अरविंद ठाकुर ने कहा कि ‘रहीम’ ने दोहावली ,बरवै, श्रृंगार, सोरण, मदनाष्टक संस्कृत काव्य के साथ फूटकर सोरठ रचे। प्रोफेसर सुधीर सागर ने कहा कि ‘खेट कौतुकम’ ग्रंथ और मदनाष्टक से भी यह प्रमाणित है कि कवि ‘रहीम’ संस्कृत के अच्छे ज्ञाता थे। 1 अक्टूबर 1627 ई• को वे इस दुनियां से चल बसे। शिक्षक युगल किशोर पोद्दार ने उनकी अमर कविताओं का पाठ कार्यक्रम के अंत में किया। रहिमन विपदा हूँ भली, रहिमन धागा प्रेम का, रहिमन निज मन की व्यथा, रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि आदि।