हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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पंचकुला : नारी जितनी भी ताकतवर हो परिवार के विषय में उसे अपने अधिकारों की लड़ाई के लिये सँघर्ष करना ही पड़ता है आखिर क्यों ?यह बात अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार ऑब्जर्वर्स की अंतरराष्ट्रीय ब्रेंडम्बेस्डर रीतु वर्मा ने एक प्रेसविज्ञप्ति जारी करते हुए कही ।
उन्होंने कहा जहां हम 21वीं शताब्दी की ओर बढ़ रहे हैं वहीं भारत को आज भी पुरूष प्रधान देश से सम्बोधित किया जाता है आखिर क्यों ? जबकि भारत देश की महिला पुरुषों के साथ हर क्षेत्र में बराबर कार्य कर रही है । चाहे वह देश की सीमा पर देश की रक्षा में तैनात हो या किसी भी ऑफिस में बढ़े पद पर तैनात हो अपने कार्य को पूरी लगन से कार्य को अंजाम दे अपने परिवार का नाम रोशन कर उनको समाज मे कार्य कर एक अलग पहचान देने में सक्षम नजर आती है । फिर भी इस पुरूष प्रधान की मानसिकता महिला के प्रति वो आदर व सम्मान बदलने में नाकामयाब रही है । आखिर क्यों ।
उन्होंने कहा हमेशा से महिला अपने परिवार व ससुराल के सम्मान में अपनी अहम भूमिका निभाने में सर्वश्रेष्ठ साबित नजर आती है । नारी के नाम पर हर वर्ग व सत्ताधारी सरकार कभी नारी रत्न , नारी सम्मान से सम्बोधित करते नज़र आते हैं । उनके इस सम्बोधन में क्या सच मे नारी को सम्मान मिल रहा है । शायद नही ? क्योंकि देश की महिला अपने आपको देश मे सुरक्षित नहीं मानती ।
रितु वर्मा ने कहा कि जन्म से लेकर मृत्यु तक नारी हमेशा अपनी खुशियों की बलदानी परिवार के लिये देती आ रही हैं । मगर इस पुरूष प्रधान देश की मानसकिता महिला के प्रति जस की तस नजर आती है । अगर ससुराल में महिला अपने पति से बेहतरीन कार्य कर रही हो तो भी पति की नजर में पत्नी का हनन होता ही है । आखिर क्यों ? जब महिला मायके से लेकर ससुराल तक अपने परिवार के मानसम्मान की इज्जत को बरकरार रखती है तो नारी का हनन क्यों ?
रितु वर्मा ने कहा कि देश व दुनिया में हर पुरुष को नारी के प्रति अपनी मानसिकता को बदलना होगा कहि ऐसा ना हो कि नारी अपने अधिकार के लिये परिवार में अपना बागी रूप दिखाने के लिये मजबूर ना हो जाये। परिवार के मानसम्मान को बचाने के लिये वो हर सुख दुख में परिवार के साथ खड़ी रहती है इस लिये नारी की सोच के साथ उनके सारथी बन नारी का सम्मान बढ़ायें ताकि परिवार की इज्जत बनी रहे ।